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This Article is From Oct 16, 2023

Chhindwara के दर्जनों गांव ऐसे..जहां लोगों को नहीं आती हिंदी, नेताओं को रखना पढ़ता है ट्रांसलेटर

Chhindwara News: करीब 6 हजार आबादी मवासी भाषी है. मुख्यत: खेती-किसानी से जुड़े ये लोग समय के साथ आधुनिक संसाधन का उपयोग करने लगें हैं, लेकिन भाषा और संस्कृति में उनके ख्याल परंपरागत हैं.

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Chhindwara के दर्जनों गांव ऐसे..जहां लोगों को नहीं आती हिंदी, नेताओं को रखना पढ़ता है ट्रांसलेटर
फाइल फोटो
छिंदवाड़ा:

Chhindwara News: छिंदवाड़ा जिले की बिछुआ विकासखंड में 12 गांव ऐसे भी हैं, जहा लोगों को हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं है. आजादी के 75 साल बाद भी इन गांवों के लोग हिंदी से कोसों दूर हैं.यहां बड़ी संख्या में मवासी आदिवासी रहते हैं, जिन्हें मवासी के अलावा दूसरी भाषा समझ में नहीं आती है. अगर कोई नेता चुनावी समय में प्रचार करने के लिए पहुंचता है तो संवाद के लिए उसे ट्रांसलेटर की जरूरत पड़ती है.

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मवासी भाषा में ही बातचीत करना करते हैं पसंद 

विकासखंड मुख्यालय से 6 किमी दूरी से ये मवासी जनजातीय क्षेत्र शुरू हो जाते हैं. ग्राम गुलसी, खदबेली, डगरिया, बिसाला, राघादेवी, तिवड़ी, पनियारी, चकारा, मोहपानी, टेकापार, मझियापार, मुग्नापार, चिचगांव, बड़ोसा जनजाति आधारित पंचायतें हैं. यहां करीब 6 हजार आबादी मवासी भाषी है. मुख्यत: खेती-किसानी से जुड़े ये लोग समय के साथ आधुनिक संसाधन का उपयोग करने लगें हैं, लेकिन भाषा और संस्कृति में उनके ख्याल परंपरागत हैं. वे अपनी मवासी भाषा में ही बातचीत करना पसंद करते हैं. कोई हिंदी भाषी मिल जाए और उनसे कुछ कहते हैं तो वे उसे समझ नहीं पाते हैं. जब तक दोनों भाषाओं का जानकार मध्यस्थता न करे.

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स्थानीय कार्यकर्ताओं की लेनी पड़ती है मदद

इन गांवों में सबसे ज्यादा परेशानी तब आती है. जब कोई नेता या प्रत्याशी पहुंच जाए और अपनी भाषा में भाषण देना चाहे. वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाता है. उसे स्थानीय कार्यकर्ताओं की मदद लेनी ही पड़ती है. अपनी बात समझाने के लिए फिर घंटेभर की मशक्कत करनी पड़ती है. हालांकि इन गांव में शिक्षा, सड़क, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंच चुकीं हैं, लेकिन तब भी यह के लोगों का लगाव मवासी भाषा से बना हुआ है.

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