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This Article is From Apr 10, 2024

Navratri 2024: छतरपुर के इस मंदिर में संतान प्राप्ति की मनोकामना होती है पूरी, 70 फीट ऊंचे 'चीरा' को लेकर यह है मान्यता

Aber Mata Chhatarpur: छतरपुर के अबेर माता मंदिर की मान्यता है कि यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. खासकर के यहां निःसंतान दंपती को संतान की प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है.

Navratri 2024: छतरपुर के इस मंदिर में संतान प्राप्ति की मनोकामना होती है पूरी, 70 फीट ऊंचे 'चीरा' को लेकर यह है मान्यता

Aber Mata Temple in Chhatarpur: छतरपुर में बुंदेलखंड (Bundelkhand) का प्रसिद्ध अबार माता मंदिर (Abar Mata Mandir) लोगों की आस्था का प्रतीक है. ऐसा माना जाता है कि अबार माता न सिर्फ लोगों की हर मनोकामना पूर्ण करती है, बल्कि वहां स्थित 70 फीट ऊंचा चीरा नि:संतान दंपतियों की गोद भी भरता है. किवदंती है कि अबार माता का मंदिर बुंदेलखंड़ के प्रसिद्ध योद्धा आल्हा और ऊदल (Alha Udal) ने बनवाया था, जबकि 70 फीट ऊंची चट्टान जिसे चीरा कहते हैं, वह स्वतः ऊंची होती गई.

अपने से ऊंची होती गई 'चीरा' चट्टान

यह मंदिर मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले की बड़ामलहरा जनपद पंचायत अंतर्गत रामटौरिया पुलिस चौकी क्षेत्र में स्थित है. अबार माता का यह मंदिर किसी अजूबे से कम नहीं है. यहां तकरीबन सत्तर फीट ऊंची एक चट्टान है, जिसे चीरा कहा जाता है. किवदंती है कि कुछ समय पहले तक ये केवल कुछ फीट का था, लेकिन धीरे-धीरे इसका आकार बढ़ते-बढ़ते क़रीब सत्तर फ़ीट तक पहुंच चुका है. इस ऊंचे चट्टान के बारे में अनोखी मान्यता है कि इसके स्पर्श मात्र से निःसंतान को संतान की प्राप्ति हो जाती है. कहा जाता है कि इस चट्टान (चीरा) के ऊपर बने मंदिर में कोई मूर्ति स्थापित नहीं कराई गई. आस्था है कि चट्टान के ऊपर बने मंदिर से निःसंतान महिलाएं मां बनने का माता से आशीर्वाद मांगती हैं, जिन्हें माता अबार के आशीर्वाद से मां बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है.

Abar Mata Mandir Chhatarpur

अबार माता के मंदिर में एक सत्तर फीट ऊंचा चीरा है.

चीरा को लेकर यह है मान्यता

मंदिर को लेकर ये भी मान्यता है कि किसी भी शुभ काम को लेकर कोई भी मन्नत मांगने के लिए इस मंदिर की चट्टान (चीरा) पर हाथ रखने का अपना ही एक सलीका और तरीका है. पहले हाथ को उल्टा रखकर मनौती मांगी जाती है और मनौती पूरी हो जाने पर हाथ के निशान सीधे करके मां को धन्यवाद दिया दिया जाता है. लोगों का कहना है कि माता अबार के मंदिर के इस ऊंचे चट्टान (चीरा) का क़िस्सा सीधे भगवान भोलेनाथ से जुड़ता है. माना जाता है कि ये चट्टान हर साल शिवरात्रि में तिल भर बढ़ रहा है. यानी इसके आकार को लेकर यहां आने वाले लोगों की आस्था गज़ब की है. इस कहानी का इतिहास सदियों पुराना बताया जाता है. माना तो यह भी जाता है कि बुंदेलखंड के मशहूर ऐतिहासिक योद्धा आल्हा-ऊदल ने इस मंदिर को बनवाया था.

अबेर माता से हो गईं अबार माता

मान्यता है कि आल्हा-ऊदल महोबा से माधौगढ़ जाते वक्त जब अबार माता पहुंचे तो उन्हें अबेर हो गई. जिसका अर्थ बुंदेलखंडी में शाम ढलना या गहराना होता है. जिसके चलते उन्होंने यहीं पर अपना डेरा डाल दिया और हर रोज की तरह रात में जब अपनी आराध्य देवी का आह्वान किया तो मां ने उन्हें दर्शन दिए. बाद में उन्होंने यहां उनका मंदिर बनवा दिया और ये अबेर माता के नाम से प्रसिद्ध हुईं. फिर चंदेल शासन काल के दौरान एक बार उनके लड़ाके सरदार यहां आए, वे यहां रास्ता भटक गए और उन्होंने इसी जंगल में विश्राम किया. यहां उन्हें किसी शक्ति का अहसास हुआ तो उन्होंने उसकी तलाश की और उन्हें यहां देवी जी का मंदिर मिला. जो बाद में अबार माता कहा जाने लगा.

Abar Mata Mandir Chhatarpur

Abar Mata Mandir Chhatarpur

पंचमी व अष्टमी को होता है विशेष श्रृंगार

नवरात्रि में अबार माता का हर दिन श्रृंगार होता है. जबकि पंचमी और अष्टमी को विशेष श्रृंगार किया जाता है. यहां वैशाख माह में दस दिन तक विशेष मेला भी लगता है. हालांकि शारदीय नवरात्रि पर भी मेले जैसा माहौल रहता है, लेकिन बैसाख माह का मेला यहां बेहद प्रसिद्ध है.

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