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This Article is From Apr 15, 2024

Anti TB Drugs: बगैर दवाओं के 2025 तक कैसे खत्म होगा टीबी? राजधानी भोपाल में ही दर-दर भटक रहे मरीज

Tuberculosis Treatment: केन्द्र सरकार ने साल 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है लेकिन जब आप इस लक्ष्य को लेकर मध्यप्रदेश पहुंचते हैं तो स्थिति डावांडोल लगती है. पूरे सूबे का हाल तो छोड़िए राजधानी भोपाल में भी TB के मरीजों को दवा नहीं मिल रही है. इतनी किल्लत है कि मरीजों को बार-बार अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. हालत हैं कि डोज पूरा करने के लिये बड़ी उम्र के मरीज़ों को बच्चों की दवा का ज्यादा डोज दिया जा रहा है. परेशानी की बात ये भी है कि टीबी मरीजों में ज्यादातर संख्या भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की है. यानी वे दोहरी मार झेल रहे हैं.

Anti TB Drugs: बगैर दवाओं के 2025 तक कैसे खत्म होगा टीबी? राजधानी भोपाल में ही दर-दर भटक रहे मरीज

TB patients in Bhopal: केन्द्र सरकार ने साल 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है लेकिन जब आप इस लक्ष्य को लेकर मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh News) पहुंचते हैं तो स्थिति डावांडोल लगती है. पूरे सूबे का हाल तो छोड़िए राजधानी भोपाल (Bhopal News) में भी TB के मरीजों को दवा नहीं मिल रही है. इतनी किल्लत है कि मरीजों को बार-बार अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. हालत हैं कि डोज पूरा करने के लिये बड़ी उम्र के मरीज़ों को बच्चों की दवा का ज्यादा डोज दिया जा रहा है. परेशानी की बात ये भी है कि टीबी मरीजों (TB patients) में ज्यादातर संख्या  भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की है. यानी वे दोहरी मार झेल रहे हैं. 

दरअसल टीबी के मरीजों को चार दवाओं का निश्चित खुराक (4FDC) और (3FDC) दिया जाता है, आइसोनियाज़िड + रिफैम्पिसिन + एथमबुटोल + पाइराज़िनामाइड (Isoniazid + Rifampicin + Ethambutol + Pyrazinamide) निश्चित खुराक कॉम्बिनेशन के रूप में. लेकिन भोपाल में ये दवाएं उपलब्ध नहीं हैं तो टीबी के मरीजों को पीडियाट्रिक यानी बच्चों के एफडीसी चार दिया जा रहा है. टीबी मरीजो की परेशानी ये है कि यदि वे समय पर दवा नहीं लेते हैं तो फिर छह महीने पहले जो शिकायत थी वो दोबारा से शुरू हो जाएगी. भोपाल के टीबी अस्पताल में आने वाले कई मरीज बताते हैं कि उन्हें 10 से 15 दिनों से दवाएं नहीं मिल रही हैं. आगे बढ़ने से पहले जरा आंकड़ों के आइने में हालात को समझ लेते हैं. 

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टीबी पीड़ित नुसरत की की पीड़ा सुनकर आप हालात को समझ सकते हैं. वे गैस पीड़ित हैं और उन्हें कुल सालों पहले ही पता चला की उन्हें टीबी है. दवा नहीं होने की वजह से डॉक्टर उन्हें बच्चों की दवा की खुराक बढ़ा कर दे रहे हैं. 

गले में गांठ की जांच कराई तो TB का पता चला 15 दिन से दवाई नहीं मिली है. हाथ पाँव सुन रहते हैं बुखार रहता है. बहुत तक़लीफ हो रही है ,मैं तो गैस पीड़ित भी हूँ ,कमर में दर्द है कोई काम भी नहीं कर सकते इतनी बुरी हालत है ,बच्चों की दवाई TB वालों की दे दी है कह रहे हैं कि डबल डोज खालो सिर्फ़ 10 दिन की दवाई दी है. 

नुसरत जहां

मरीज 

कुछ ऐसा ही हाल पुष्पा राजपूत नाम की मरीज का भी है. वे कहती हैं कि टाइम से दवाएँ मिल जाए तो अच्छा रहेगा लेकिन डॉक्टर बोल रहे हैं की दवाई आएगी तो दे देंगे. हमन कहा कि छूट जाएगा तो कह रहे हैं कि हम कवर कर देंगे. 

घर में मेरे पति के अलावा कोई नहीं है. मुझे TV की शिकायत है खाँसी के दौरान खून भी आ रहा है. सीने में बहुत दर्द होता है साँस लेने में दिक़्क़त जा रही है. एक महीने से दवाई नहीं मिली है.एक महीने से दवाई नहीं खाई पूरे शरीर में तक़लीफ़ हो रही है,कहते है दवाई है ही नहीं 

पुष्पा राजपूत

मरीज़ 

कुछ ऐसा ही हाल आसिफ खान की पत्नी का भी है. आसिफ बताते हैं कि मेरी पत्नी को टीबी की शिकायत है.जवाहर-लाल नेहरू अस्पताल में इलाज चल रहा था .और सर्जरी भी हुई है छह महीने से तो दवा मिल रही थी लेकिन 15 दिनों से दवा नहीं मिल रही है .रोज़ कहते हैं कि मेडिसन नहीं है और अगर दवाई नहीं लेते हैं तो छः महीने पहले जो शिकायत थी वो दोबारा से शुरू हो जाएगी, रोज़ इतने पेशेंट आते हैं लेकिन यही सुनने को मिलता है कि दवाई मौजूद नहीं है. इसी तरह का मामला शाहिद खान के साथ भी है. उनकी दोनों बेटियों को टीबी है. लेकिन उन्हें दवा नहीं मिल पा रही है. वे बताते हैं कि 10 दिनों से वे दवा के लिए ही भटक रहे हैं. 

गांधी चिकित्सा महाविद्याल में डॉक्टर भी हैं, मरीज भी हैं लेकिन नहीं है तो दवाएं. लिहाजा मरीज परेशान हो रहे हैं.

गांधी चिकित्सा महाविद्याल में डॉक्टर भी हैं, मरीज भी हैं लेकिन नहीं है तो दवाएं. लिहाजा मरीज परेशान हो रहे हैं.

हालांकि मरीजों की इस परेशानी से डॉक्टर इत्तेफाक नहीं रखते. डॉक्टर अनिल जैन कहते हैं कि सभी दवाई दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमारे पास आदेश आ चुका है. मरीजों को दवाएं हम स्थानीय स्तर पर खरीद कर उपलब्ध कराएंगे. बच्चों की दवाई देने के संबंध में भी हमने निर्देशों का ही पालन किया है. उससे हटकर हम कुछ भी नहीं दे रहे हैं. दूसरी तरफ सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढिंगरा का कहना है कि जिस तरह से कोरोना की समस्या गैस पीड़ितों में अत्याधिक थी ठीक उसी तरह से TB की समस्या भी उनमें काफी अधिक है. क्योंकि गैस की वजह से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर हुआ है. पिछले कुछ महीनों से ऐसा माहौल है कि पूरे देश के अंदर TB की दवाइयां कम हुई हैं. भोपाल में भी डॉट सेंटर में दवाएं नहीं आ रही है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वे लिस्ट बनाए और ऐसी व्यवस्था बनाए की मरीजों खासकर गैस पीड़ितों की दवा एक भी दिन न छूटे. दरअसल ये एक प्रकार का टिकिंग बॉम है क्योंकि एक टीबी का मरीज एक ही दिन में 3-4 मरीजों को प्रभावित कर सकता है. सवाल ये भी है देश में लोकसभा चुनाव होने हैं लेकिन न तो सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष को इसकी चिंता है. 

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