
Chhatarpur : 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है. इस बीच छतरपुर जिले के नौगांव में स्थित पुराना टीबी हॉस्पिटल अपनी बदहाली से जूझ रहा है. इसके सामने कई प्रकार की चुनौतियां हैं. यहां इलाज और बुनियादी सुविधाओं का सूखा पड़ा हुआ है. ऐसे में टीबी मुक्त अभियान कैसे सफल होगा ? मरीजों ने यहां टीबी मुक्त अभियान के तमाम दावों की पोल दी है. बदा दें, ये हॉस्पिटल बुंदेलखंड का एकमात्र टीबी हॉस्पिटल है. यह हॉस्पिटल 1919 में खोला गया था.
प्राइवेट डॉक्टरों की बल्ले-बल्ले
भारत सरकार ने देश को 2025 तक टीबी से मुक्त करने की डेडलाइन रखी है. लेकिन टीबी हॉस्पिटल्स की ऐसी जर्जर स्थिति की वजह से ये मुहिम अधर में लटकी हुई दिख रही है. 105 साल पुराने बुंदेलखंड के एक मात्र टीबी हॉस्पिटल में न तो डॉक्टर बैठते हैं, और न ही दवाइयां मिलती हैं. इसकी वजह से मरीज परेशान हो रहे हैं. मरीज और परिजन प्राइवेट डॉक्टर के पास जाते हैं, जो मनमानी फीस और दवाइयां के नाम पर कमीशन लेते हैं. सरकारी अस्पताल की ऐसी बेहाली की वजह से जिले के प्राइवेट डॉक्टर्स की चांदी है. मरीज लूट रहे हैं.
खाना पूर्ती क्यों ?
टीबी मरीजों को अस्पताल में दिए जाने वाले पोषण आहार पर भी सवाल खड़े हुए हैं. क्योंकि मरीजों ने NDTV से कहा कि अस्पताल में दूध के नाम पर पानी दिया जा रहा है.रोटियां आधी जली और आधी कच्ची रहती हैं. दाल समेत अन्य भोजन गुणवत्ता विहीन रहता है. मरीजों को फल बांटने का प्रावधान है. पर ऐसा नहीं होता है. चारो तरफ गंदगी है. मरीजों की देखरेख करने वाले स्टाफ और डॉक्टर्स की बहुत कमी है. हालांकि, इस मामले पर जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों का खबर लिखे जाने तक कोई पक्ष नहीं आया है.
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