
First White Tiger of the World: दुनिया के पहले सफेद बाघ मोहन (White Tiger Mohan) की 54वीं पुण्यतिथि पर महारानी लक्ष्मी बाई बालिका विद्यालय सतना (Satna) में भावांजलि दी गई. विद्यालय की छात्राओं ने परिसर में सफेद बाघ मोहन का चित्र उकेर कर उसका पुण्य स्मरण किया. इस दौरान प्राचार्य कुमकुम भट्टाचार्य सहित विद्यालय परिवार की ओर से उन्हें भावांजलि अर्पित की गई. जानकारी के अनुसार विंध्य (Vindhya) क्षेत्र की शान सफेद बाघ मोहन का निधन दिसंबर 1969 को हुआ था. ऐसे में हर साल उसका पुण्य स्मरण किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि दुनिया में जहां पर भी सफेद बाघ और बाघिन मौजूद हैं वह सभी विंध्य की शान सफेद बाघ मोहन के ही वंशज हैं.
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जानिए पहले सफेद बाघ का इतिहास
बताया जाता है कि 27 मई 1951 को सीधी के कुसमी क्षेत्र के पनखोरा गांव के नजदीक रीवा राजघराने के महाराजा मार्तण्ड सिंह शाही मेहमान जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह के साथ बाघिन का शिकार करने पहुंचे थे. उन्हें देख जंगल में हलचल हुई और तीन शावक तेजी से भाग गए लेकिन एक सफेद रंग का अद्भुत शावक वहीं गुफा में छिप गया. यह देख मार्तण्ड सिंह ने उसे मारने के बजाय पकड़ने की योजना बनाई. महाराजा के आदेश पर पिंजड़ा लगाकर शावक को पकड़ लिया गया. सफेद शावक को गोविंदगढ़ किले में लाया गया और उसका नामकरण मोहन के तौर पर किया गया. तब से विंध्य क्षेत्र को 'सफेद बाघों का गढ़' भी कहा जाता है.
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देश-विदेश में हैं मोहन के वंशज
विंध्य क्षेत्र की पहचान सफेद बाघ आज दुनिया के तमाम देशों में मौजूद हैं. मुकुंदपुर टाइगर सफारी की स्थापना से पहले यहां पर सफेद बाघ नहीं थे लेकिन जब महाराजा मार्तण्ड सिंह जू देव टाइगर सफारी की स्थापना सतना जिले में हुई तब यहां विंध्या नाम की सफेद बाघिन आई. फिलहाल सफेद बाघिन विंध्या की भी मई 2023 में मौत हो चुकी है.