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MP की 25 फीसदी शहरी सरकारों पर फंड का टेंशन; कर्मचारियों की छंटनी से लेकर जनता पर टैक्स बढ़ने की आशंका

MP Nagariya Nikay: लंबे समय से खराब माली हालत से जूझ रहे नगरीय निकाय जल्द संपत्ति कर और जलकर जैसे टैक्स बढ़ा सकते हैं. साथ ही साथ अगर यहां काम करने वाले कर्मचारियों की बात करें तो 10 से 20% स्टाफ की छंटनी भी संभव है. प्रदेश में 413 नगरीय निकाय हैं. जिनमें से 25% से ज्यादा की हालत खस्ता है.

MP की 25 फीसदी शहरी सरकारों पर फंड का टेंशन; कर्मचारियों की छंटनी से लेकर जनता पर टैक्स बढ़ने की आशंका
MP की 25 फीसदी शहरी सरकारों पर फंड का टेंशन; कर्मचारियों की छंटनी से लेकर जनता पर टैक्स बढ़ने की आशंका

MP Nagriya Nikay Fund Shortage: मध्य प्रदेश की 413 नगरीय निकाय सरकारें जनता को सुख सुविधा देने की बात कहते हुए अपना काम कर रही हैं, लेकिन इन्हीं 413 शहरी सरकारों में से 25% शहरी सरकारें ऐसी हैं जो कंगाली के दौर से गुजर रही हैं, जहां उनकी माली हालत को सुधारने के लिए अब जनता पर भार बढ़ने की संभावना दिखाई दे रही है. इन नगरीय निकायों में हालात यह है कि 7-8  महीने से ऊपर हो जाने के बावजूद भी काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन दिए जाने में परेशानी आ रही है. विकास के कई काम ऐसे हैं जो बजट के अभाव में रुके पड़े हैं और योजनाएं प्रभावित हो रही हैं. इस बीच नगरीय विकास एवं आवास के PS संजय दुबे ने भी साफ तौर पर यह कह दिया है कि नगरीय निकाय खुद अपनी आमदनी जुटाऐं और अपना खर्च उठाएं.

टैक्स का टेंशन

लंबे समय से खराब माली हालत से जूझ रहे नगरीय निकाय जल्द संपत्ति कर और जलकर जैसे टैक्स बढ़ा सकते हैं. साथ ही साथ अगर यहां काम करने वाले कर्मचारियों की बात करें तो 10 से 20% स्टाफ की छंटनी भी संभव है. प्रदेश में 413 नगरीय निकाय हैं. जिनमें से 25% से ज्यादा की हालत खस्ता है, ऐसे में मध्य प्रदेश के नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने खुद निकायों को निर्देश जारी किए हैं कि अतिरिक्त कर्मचारियों को हटाकर खर्च कम करने की कोशिश करें टैक्स बढ़ाएं और जिन निकायों में 3 साल से अधिक समय से प्रॉपर्टी टैक्स नहीं बढ़ाया गया है, वहां एक साथ 20% टैक्स बढ़ाने पर विचार करें. अगर ऐसा हुआ तो जनता पर इसका सीधा असर पड़ना तय है.

नगरीय विकास एवं आवास विभाग की निकायों को सलाह

मध्य प्रदेश सरकार के नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने निकायों को सलाह देते हुए कहा है कि नगरीय निकाय अपनी आमदनी और खर्च पर नियंत्रण रखकर सुचारू रूप से विकास कार्यों को गति देने की कोशिश करें. नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने साफ तौर पर निकायों को कहा है कि वह खर्चे पर नियंत्रण करके गैर जरूरी खरीदी बंद करें जरूरत से ज्यादा रखे गए कर्मचारियों की संख्या नियंत्रित करें. बिजली की खपत पर ध्यान दें. नई प्रॉपर्टी की तलाश कर आमदनी जुटाने की कोशिश करें, तो मध्य प्रदेश शासन कुछ मदद करने की स्थिति में होगा.

क्यों बढ़ने लगा है निकायों का खर्च?

मध्य प्रदेश में 2018 तक 378 नगरीय निकाय हुआ करते थे, अब इनकी संख्या बढ़कर 413 हो गई है. 191 ग्राम और नगर पंचायत को भी नगर निगम में शामिल किया गया है. चुंगी क्षतिपूर्ति राशि में से बिजली बिल और 20% पेंशन अंशदान जैसी राशि काटी जाती है. जानकारी बताती है कि 2024 जुलाई से तहबजारी वसूलना भी नगरीय निकायों का बंद है, यही वजह है कि नगरीय निकायों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है.

इन जगहों पर कर्मचारियों को नगरीय निकायों में वेतन के लाले

मध्य प्रदेश में नगरीय निकायों की खस्ता हालात को कई नगरीय निकाय सामने लाते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के चंदेरी, धामनोद, धर्मपुरी, ब्यावरा, राजगढ़, बैरसिया, लटेरी, कुरवाई, धार और पचोर जैसे कई नगरीय निकाय हैं जो इस समय बेहद खराब माली हालत के दौर से गुजर रहे हैं. हालांकि यह आंकड़ा आधिकारिक नहीं है, इसे मध्य प्रदेश नगर निगम/ नगर पालिका संघ से मिली जानकारी के आधार पर लिया गया है.

जीएफ का पैसा जमा करने का संकट बरसों से लंबित

शिवपुरी नगर पालिका की बात करें तो शिवपुरी नगर पालिका में वेतन तो देर सवेर कर्मचारियों को मिल रहा है, लेकिन कर्मचारियों का आरोप है कि उनके जीएफ की राशि को नगरपालिका काट तो लेती है लेकिन उनके खातों में जमा नहीं करवाती जो बरसों से लंबित है और यही वजह है कि कर्मचारियों को अपने जीपीएफ खाते में ब्याज का नुकसान उठाना पड़ता है.

जिन पर है काम का लगभग सारा बोझ वही कर्मचारी खतरे में

मध्य प्रदेश की 413 नगरीय निकायों की बात करें तो लगभग एक लाख से भी ज्यादा दैनिक वेतन भोगी विनियमित और स्थाई कर्मचारियों की संख्या है. जानकारी में सामने आया है कि साल 2003 से दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को विनियमित किया गया है. अब जो कानून कहता है उसके मुताबिक विनियमित कर्मचारियों को नहीं हटाया जा सकता, लेकिन दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हटाऐ जा सकते हैं. यही वजह है कि सफाई कर्मी, सड़क, बिल्डिंग मेंटिनेस और जल कर्मी जैसे दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों पर संकट है. अकेले चंदेरी में 153 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को हटाया गया है, नियम कहता है कि जिन निकायों में स्थापना खर्च अपने खुद के बलबूते 65% से ज्यादा है वहां अतिरिक्त कर्मचारियों को हटाया जाना जरूरी है.

क्या कहते हैं कर्मचारी?

शिवपुरी नगर पालिका में RI के पद पर पदस्थ सुधीर मिश्रा बताते हैं कि सैलरी तो देर सवेर हम कर्मचारियों को मिल रही है लेकिन जीएफ का जो पैसा है वह समय पर जमा नहीं होता जिस कारण हमें ब्याज का नुकसान हो रहा है.

गैर जरूरी खर्च एक बड़ी वजह

नगरीय निकायों में गैर जरूरी खरीदी को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ी है और कई ऐसे खर्चे हैं, जिन्हें नगरीय निकाय से संबंधित जानकार गैर जरूरी बताते हैं. लेकिन यह खरीदी लगातार सामने आती है. यही वजह है कि नगरीय निकायों की माली हालत पर इसका बुरा असर पड़ता है. रिटायर्ड सीएमओ नगर पालिका राम निवास शर्मा के अनुसार नगरीय निकायों पर स्वयं के खर्चे पर व्यवस्थाओं को बनाने की जिम्मेदारी है, लेकिन आम तौर पर नगरीय निकाय बेहद गैर जरूरी सामान की खरीदी करते हैं. यही वजह है कि वित्तीय संकट बढ़ रहा है.

टैक्स स्लैब में बदलाव के लिए मांगी अनुमति

बढ़ते आर्थिक बोझ से निपटने के लिए बुरहानपुर नगर निगम ने संपत्ति कर में बढ़ोतरी के लिए विभाग से अभीमत मांगा. जानकारी में सामने आया है कि 15 साल से यहां संपत्ति कर में कोई बदलाव नहीं किया गया. इस प्रस्ताव के बाद संचालनालय में सभी निकायों की आय पर एक विचार मंथन शुरू हुआ. इसके बाद संशोधन हुआ कि अधिक समय से कर नहीं बढ़ा है तो एक साथ 20% संपत्ति कर और 25% जलकर बढ़ाने की बात की जा सकती है.

चुंगी छतिपूर्ति राशि 475 करोड रुपए की जगह मिलती है 300 करोड़

नगरीय निकायों की आमदनी का प्रमुख जरिया है टैक्स और चुंगी क्षतिपूर्ति जानकारी में सामने आया है कि वर्तमान में इन नगरीय निकायों को लगभग 300 करोड रुपए चुंगी क्षतिपूर्ति के रूप में मिल रहा है. जबकि जरूरत के मुताबिक यह राशि 475 करोड़ रुपये के आसपास होनी चाहिए 1986 में निकायों से चुंगी वसूली को समाप्त किया गया और उसके बाद 10% क्षतिपूर्ति बढ़ाने का प्रावधान किया गया था, लेकिन 1997 में इसे स्थिर माना गया और 2006 में जब नगरीय निकायों की वित्तीय स्थिति बेहद खराब सामने आने लगी तब फिर से  इसे बढ़ाया गया, लेकिन एक बार फिर अब निकाय आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं. ऐसे में अब देखना होगा कि मध्य प्रदेश शासन के द्वारा इस दिशा में क्या कदम उठाए जाते हैं?

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