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देवउठनी एकादशी पर क्यों करते हैं गन्ने की पूजा? गुड़ खाने का खास महत्व, जानिए क्या है मान्यता

एकादशी के दिन मां तुलसी और भगवान विष्णु के विवाह का दिन होता है. इस दिन मां तुलसी और भगवान विष्णु के विवाह में गन्ने का मंडप बनाया जाता है और इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है. इसी दिन से किसान गन्ने की नई फसल की कटाई का काम शुरू करते हैं. 

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देवउठनी एकादशी पर क्यों करते हैं गन्ने की पूजा? गुड़ खाने का खास महत्व, जानिए क्या है मान्यता
सांकेतिक फोटो

Devuthni Ekadashi : कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन देवउठनी एकादशी (Devuthni Ekadashi) या देवउठनी ग्यारस का पर्व मनाया जाता है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) चार माह बाद योग निद्रा से जागे थे इसलिए उनकी इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है. कुछ क्षेत्रों में गन्ने की पूजा भी की जाती है. आइए जानते हैं कि इस दिन गन्ने की पूजा क्यों होती है.

सजाया जाता है गन्ने का मंडप

एकादशी के दिन मां तुलसी और भगवान विष्णु के विवाह का दिन होता है. इस दिन मां तुलसी और भगवान विष्णु के विवाह में गन्ने का मंडप बनाया जाता है और इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है. इसी दिन से किसान गन्ने की नई फसल की कटाई का काम शुरू करते हैं. 

एकादशी से कटाई शुरू करते हैं किसान

इस दिन से किसान नई फसल की कटाई का काम शुरू करते हैं. मौसम के बदलने के साथ ही लोग गुड़ का सेवन करने को बहुत लाभकारी मानते हैं. दरअसल गुड़ गन्ने के रस से बनाया जाता है इसलिए इस दिन गन्ने की पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है. गन्ने को मीठे का स्रोत माना जाता है. मान्यता है इस दिन गुड़ का सेवन करने से घर में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है.

पूजा में 11 दीपक जलाने का विशेष महत्व

एकादशी 23 नवंबर को मनाई जाएगी. इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति अपने घर में तुलसी के पास चावल और आटे से रंगोली यानी चौक बनाते हैं. इसके बाद गन्ने का खास मंडप तैयार किया जाता है. मां तुलसी और भगवान विष्णु की शालिग्राम की पूजा की जाती है. इस दिन दीप जलाए जाते हैं. पूजा में 11 दीपक जलाने का विशेष महत्व है.

शुभ कार्य हो जाते हैं प्रारंभ

आषाढ़ माह में देवशयनी एकादशी से लेकर चतुर्मास माह तक देवता शयन में रहते हैं. उसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'देव उठनी एकादशी' कहा जाता है और इस दिन से भगवान विष्णु शयन निद्रा से वापस आ जाते हैं और तभी से शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, मुंडन इत्यादि कार्य भी प्रारंभ हो जाते हैं.

यह भी पढ़ें : जानिए तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है? माता तुलसी ने भगवान विष्णु को क्यों दिया था ये श्राप 

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