Savitribai Phule Jayanti: भारतीय इतिहास में ऐसी कई महान शख्सियत जन्मीं, जिन्होंने अपना जीवन समतामूलक समाज के लिए समर्पित कर दिया. इन्हीं शख्सियतों में से एक शालीन व्यक्तित्व सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) थीं. भारतीय शिक्षा (Indian Education) के इतिहास में महिला शिक्षा के आगाज़ का ख्याल आते ही हमें साबित्रीबाई फुले याद आती हैं. उन्होंने देश में ऐसे समय महिला शिक्षा की शुरुआत की, जब महिलाओं का घर से निकलना बेहद मुश्किल था. सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षा रूपी हथियार देने के संघर्ष में समाज से विरोध, अपमान, पत्थर और ना जाने कितना कुछ झेला, तब कहीं जाकर वे महिलाओं को शिक्षा रूपी आभा दे पायीं. वहीं, सावित्रीबाई फुले ने समाज सुधार में भी अपना अहम अवदान दिया है. ऐसे में सावित्रीबाई के महान जीवन, संघर्ष और विचार को याद करने व समाज में फैलाने के लिए उनकी जन्म तारीख 3 जनवरी को हर साल सावित्रीबाई फुले जयंती के रूप में मनाया जाता है.
नारी सशक्तिकरण की दिशा में #SavitribaiPhule जी के प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जा सकता !
— Doordarshan National दूरदर्शन नेशनल (@DDNational) January 3, 2024
महिलाओं के अधिकारों के लिए आजीवन समर्पित रहीं भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले जी को उनकी जन्म जयंती पर शत् शत् नमन। pic.twitter.com/nh36iT864l
ऐसा था जीवन (Savitribai Phule Story)
एक नज़र जब हम सावित्रीबाई के संघर्ष से घिरे जीवन तरफ देखते हैं, तब ज्ञात होता है कि, सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र में सतारा जिले के नायगांव गाँव में हुआ था. सावित्री की माता का नाम लक्ष्मीबाई और पिता खंडोजी था. सावित्रीबाई के जन्म का दौर एक ऐसा दौर था जब समाज बड़ी जटिल असमानताओं से लबरेज था. शिक्षा को लेकर समाज की सोच यह थी कि, शिक्षा का अधिकार केवल उच्च वर्ग के पुरूषों के लिए है. शिक्षा जैसे प्रकाश के लिए महिला और दलित अयोग्य हैं. ऐसे में समाज की इस अक्षम्य मानसिकता ने सावित्रीबाई को भी शुरुआती शिक्षा से वंचित कर दिया. वक्त गुजरने के साथ अल्प आयु में ही सन् 1840 में सावित्रीबाई फुले की शादी महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले से हो गयी थी. शादी की उम्र तक अशिक्षित रही सावित्रीबाई फुले को शादी के उपरांत उनके पति ज्योतिबा फुले ने शिक्षित किया.
राष्ट्र आज आधुनिक भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले को उनकी जयंती पर नमन कर रहा है।#SavitribaiPhule pic.twitter.com/e7jhNEq3Fb
— आकाशवाणी समाचार (@AIRNewsHindi) January 3, 2023
सावित्रीबाई फुले के काल में दलितों को कुएं से पानी नहीं पीने दिया जाता था. तब सावित्रीबाई ने दलितों के लिए एक कुएं का निर्माण किया था. जहां दलित लोग पानी का उपयोग करते थे. आगे जब दाम्पत्य जीवन में सावित्रीबाई के यहां कोई संतान पैदा नहीं हुयी. तब सावित्री और उनके पति ज्योतिबा फुले ने एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र को गोद लिया. जिसका उनके परिवार ने विरोध किया. फिर, उन्होंने अपने परिवार से नाता समाप्त कर दिया.
सावित्रीबाई फुले के विचार (Savitribai Phule Quotes)
- एक सशक्त शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है.
- जाति की जंजीरें तोड़ो, शिक्षा को अपना हथियार बनाओ.
- शिक्षा के माध्यम से पीड़ितों को सशक्त बनाओ, वंचितों का उत्थान करो.
- महिलाओं को शिक्षित करें, वे दुनिया बदल देंगी.
- स्त्रियां सिर्फ रसोई और खेत पर काम करने के लिए नहीं बनी है, वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है.
- कोई तुम्हें कमजोर समझे इससे पहले,तुम्हें शिक्षा के महत्व को समझना होगा.
- हमारे शिक्षाविदों ने स्त्री शिक्षा को लेकर अधिक विश्वास नहीं दिखाया, जबकि हमारा इतिहास बताता है, पूर्व समय में महिलाएं भी विदुषी थीं.
- पितृसत्तात्मक समाज यह कभी नहीं चाहेगा कि स्त्रियां उनकी बराबरी करें.
- शिक्षा स्वर्ग का मार्ग खोलता है, स्वयं को जानने का मौका देता है.
कुप्रथाओं का विरोध किया
वहीं, समाज में व्याप्त जाति प्रथा, दहेज़ प्रथा जैसी विभिन्न कुरीतियों से लड़ने के सावित्रीबाई फुले ने उनके पति ज्योतिबा फुले के साथ सत्यशोधक समाज की स्थापना की. जिससे समाज सुधारक आंदोलन को एक नई राह मिली. हम सावित्रीबाई के विचारों की तरफ गौर फ़रमाते हैं तब समझ आता है कि, वे शिक्षा को लेकर अपने प्रखर विचार रखती थीं. उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पहले थे.
सावित्रीबाई फुले का मानना था कि, जाति और धर्म के बजाए किसी के मूल्य को आंकने का पैमाना मात्र शिक्षा होना चाहिए. इसलिए, विशेषतः महिलाओं से वह कहती थी कि चौका और बर्तन से ज्यादा जरूरी शिक्षा है. शिक्षा ही हर महिला की मुक्ति की कुंजी है. महिला अधिकार कोई विशेषाधिकार नहीं बल्कि मानवता का एक पहलू है. उनका मानना था कि, बेटियों को विवाह से पहले शिक्षित करना चाहिए ताकि, वे अच्छे और बुरे में फर्क समझ सकें. कोई तुम्हें कमजोर समझे इससे पहले तुम्हें शिक्षा की महत्वता को समझना होगा.
सावित्रीबाई यह भी कहती थी कि, जब पीड़ितों के ऊपर जुल्म बड़ता है तब वे शिक्षा के और अधिक अधिकारी हो जाते हैं. पीड़ितों को जागकर, उठकर, शिक्षित होकर दिमाग को आजाद करते हुए परंपराओं को तोड़ना चाहिए, ताकि समाज को बदला जा सके.
ऐसे दुनिया को छोड़ा
सन् 1897 के समय एक प्लेग बीमारी चरम पर थी. उस वक्त सावित्रीबाई गंभीरता से मरीजों का इलाज और देखभाल कर रही थी. ऐसे में महिला, शोषित, पिछड़े वर्ग के उत्थान को लेकर अपनी जिंदगी न्यौछावर करने वाली शख्सियत सावित्रीबाई फुले ने 10 मार्च 1897 को अन्तिम सांस ली और दुनियां को अलविदा कह दिया. सावित्रीबाई फुले एक महान शिक्षिका, समाज सुधारक होने के साथ-साथ कवयित्री भी थी. सावित्रीबाई के जीवन अनुभव का एक गहरा विचार यह था कि, यदि आपके पास ज्ञान, शिक्षा और बुद्धि नहीं है और इसकी चाहत भी नहीं रखते तब आप मनुष्य कैसे कहला सकते हैं? सावित्रीबाई के जीवन से यह सीखा जा सकता हैं कि हम धरती पर जन्म जरूर लेते हैं लेकिन, धरती पर हमारा त्याग, समर्पण, संघर्ष और प्रेम ही हमें मनुष्य बनाता है.
(सतीश भारतीय, एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. मानवाधिकार और समाजिक न्याय के मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते हैं)
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