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अर्जुन अवाॅर्डी बने कपिल, जानें कैसा रहा खेतों से लेकर पेरिस पैरा ओलंपिक तक का सफर

Para Judo Player Kapil Parmar : पैरा-जूडो खिलाड़ी कपिल परमार ने अपनी सफलता से एक बार फिर से देश समेत अपने प्रदेश का नाम रोशन किया है. पैरा-जूडो खिलाड़ी कपिल परमार को अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया.

अर्जुन अवाॅर्डी बने कपिल, जानें कैसा रहा खेतों से लेकर पेरिस पैरा ओलंपिक तक का सफर
अर्जुन अवाॅर्डी बने कपिल, जानें कैसा रहा खेतों से लेकर पेरिस पैरा ओलंपिक तक का सफर.

Para Judo Player Kapil Parmar : पैरा-जूडो खिलाड़ी कपिल परमार ने अपनी सफलता से एक बार फिर से देश समेत अपने प्रदेश का नाम रोशन किया है. शुक्रवार को पैरा-जूडो खिलाड़ी कपिल परमार को अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया. इस अवसर पर जानें, कैसा रहा था कपिल का खेतों से लेकर पेरिस पैरा ओलंपिक तक का सफर. पैरा-जूडो खिलाड़ी कपिल परमार को अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया है. इसके बाद कपिल के परिजनों में काफी ज्यादा खुशी का माहौल है, बता दें कि कपिल ने पेरिस पैरा ओलंपिक में जूडो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा था, जिसके बाद उन्हें पीएम मोदी सहित तमाम दिग्गजों ने बधाई दी थी. 

बता दें, सीहोर के रहने वाले कपिल परमार ने पेरिस पैरालंपिक 2024 में इतिहास रच दिया था. उन्होंने 5 सितंबर 2024 को मेंस के 60 किग्रा J1 वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. इसी के साथ वे जूडो में पैरालंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट बन गए थे.

कपिल का सबसे छोटा भाई भी जूडो खिलाड़ी है

कपिल परमार ने अपने संघर्ष के दिनों के बारे में एक बार कहा था कि अपने जीवन में काफी बलिदान दिया. अपनी डाइट और जूडो की प्रैक्टिस के लिए भी उनको खुद ही पैसे का इंतजाम करना होता था. ऐसे में कपिल अपनी मां के साथ गांव के जमींदारों के खेत में काम करते थे. यहां से जो भी पैसा मिलता था, उसे वो अपने खेल में लगाते थे. पैरालंपिक तक पहुंचने में उनको कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. करीब 8 से 10 घंटे तक वो दूसरों के खेतों में काम करते थे, इसके बाद घर पर ही जूडो की प्रैक्टिस करते थे. कपिल का सबसे छोटा भाई भी जूडो खिलाड़ी है. वहीं, कपिल को जूडो की प्रैक्टिस करता है.

कपिल ने पुरुष 60 किग्रा जे1 स्पर्धा के कांस्य पदक मुकाबले में ब्राजील के एलिएलटन डि ओलिवेरा को 10-0 से हराया था और कांसा लाने में सफल रहे थे. भारत ने इस तरह पेरिस पैरालंपिक में अपने पदकों की संख्या 25 पहुंचा गई थी. कपिल परमार ने कांस्य पदक अपने नाम किया था.

पिता टैक्सी ड्राइवर और मां भी करती है खेतों में काम

वो तीन भाई और एक बहन हैं. उनके पिता टैक्सी ड्राइवर और मां गांव के ही जमींदारों के खेतों में काम करती थी. ऐसे में घर खर्च भी चलाना बहुत मुश्किल था. हम चार भाई बहनों की पढ़ाई लिखाई भी गांव के ही स्कूल में हुई.'' कपिल ने बताया कि, ''जब वो कक्षा आठवीं में थे, तब से उनकी आंखों की रोशनी जाना शुरु हो गई थी. उन्हें केवल 80 प्रतिशत दिखाई देता था. जिसके बाद कपिल ने स्कूल जाना भी बंद कर दिया. हालांकि, इस दौरान घर पर पढ़ाई जारी रखी. उस समय उनके पास इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे. सीमित कमाई में परिवार का खर्च चलाना भी बड़ा कठिन होता था.

'अनुभव साझा किया था'

पहले भारतीय पैरालंपिक जूडो पदक विजेता कपिल परमार ने प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत के बाद कहा था कि, "मुझे प्रधानमंत्री से बात करके बहुत अच्छा लगा, उन्होंने मेरे साथ अपना अनुभव साझा किया. प्रधानमंत्री ने जाने से पहले भी मुझसे बात की थी और मेरी जीत के बाद भी बात की. उन्होंने मुझे यह कहकर प्रेरित किया कि मैंने एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड हासिल किया है."

'लोग उन्हें सूरदास कहकर ताने मारने लगे थे'

करंट लगने से उनकी आंखों की 80% रोशनी चली गई. लोग उन्हें सूरदास कहकर ताने मारने लगे, तब उनके मन में आत्महत्या करने तक का ख्याल आया. लेकिन, कपिल ने हार मानने की बजाय ठान लिया कि वह अपने आलोचकों को जूडो में मेडल जीतकर जवाब देंगे. करंट लगने के बाद स्कूल टीचर ने कह दिया हम आपको नहीं पढ़ा सकते, ब्लाइंड स्कूल जाओ. मेरा भाई ललित राइटर बना तभी सभी परीक्षाएं पास की. कपिल कहते हैं- जब लगा कि कुछ भी नहीं होने वाला है, तब सिर्फ मां को यकीन था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. मां बोलीं बस खेलते रहो. बस यहीं से हिम्मत मिली. तभी जूडो के प्रशिक्षक भगवान सर ने मुझसे कहा कि तू ब्लाइंड कैटेगरी के लिए तैयारी कर. यहां से मुझे अपने जीवन में नई ऊर्जा मिली.

सेमीफाइनल में हारकर स्वर्ण लाने से चूके

परमार ने 2022 एशियाई खेलों में इसी वर्ग में रजत पदक जीता था. उन्होंने क्वार्टर फाइनल में वेनेजुएला के मार्को डेनिस ब्लांको को 10-0 से शिकस्त दी थी, लेकिन सेमीफाइनल में ईरान के एस बनिताबा खोर्रम अबादी से पराजित हो गए थे. परमार को दोनों मुकाबलों में एक एक पीला कार्ड मिला था. कपिल भले ही स्वर्ण नहीं ला सके, लेकिन कांस्य पदक जीतने में सफल रहे थे. पैरा जूडो में जे1 वर्ग में वो खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं, जो दृष्टिबाधित होते हैं या फिर उनकी कम दृष्टि होती है.

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