National Farmers Day 2025: ये कहानी देश की मिट्टी से निकले एक ऐसे योद्धा की है, जिन्होंने सत्ता के शिखर को सिर्फ किसानों की आवाज बुलंद करने के लिए छुआ. देश 23 दिसंबर को पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह की जयंती (Chaudhary Charan Singh Jayanti) मनाएगा. हर साल 23 दिसंबर की तारीख इसलिए खास है, क्योंकि एक किसान के बेटे ने खेतों से निकलकर उन्हें हक और सम्मान दिलाने का सपना देखा. चौधरी चरण सिंह की राजनीति किताबी या चकाचौंधी नहीं थी. यह खेतों की गहराई से उपजी थी.
पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न चौधरी चरण सिंह जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।🙏💐
— BJP (@BJP4India) December 23, 2025
किसानों के सम्मान और हितों को राष्ट्र के केंद्र में रखने वाले उनके विचार आज नए भारत की कृषि नीतियों में जीवंत दिखाई देते हैं।
उनकी सोच से प्रेरणा, हमारा संकल्प — खुशहाल किसान,समृद्ध राष्ट्र।… pic.twitter.com/AYghjKiMXM
जानिए अन्नदाता की कहानी
आज भी जब कोई किसान अपनी पीड़ा बयां करता है तो उसकी जुबान पर अनायास ही वही पुरानी यादें ताजा होती हैं, क्योंकि चौधरी चरण सिंह ने किसानों को एक मतदाता से ऊपर उठकर देश की रीढ़ माना था. उनका जीवन स्वतंत्रता की लड़ाई और किसान मुक्ति के दोहरे संघर्ष का जीता-जागता प्रमाण था. गांधीजी और दयानंद सरस्वती से प्रेरित होकर जेल गए, वकालत के पेशे को छोड़ा और भूमि सुधारों की नींव रखी, जिससे जमींदारी का बोझ टूटा और किसान को उसकी मिट्टी पर हक मिला.
1977 तक जनता ने चौधरी चरण सिंह को आगे बढ़ाया. किसान उनके पीछे दीवार की तरह खड़े रहे. इसकी वजह यह थी कि वे सत्ता में रहे या बाहर, किसानों की आवाज को हमेशा बुलंद करते रहते थे. उन्होंने 28 जुलाई 1979 से लेकर 14 जनवरी 1980 तक प्रधानमंत्री पद संभाला. उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार की दिशा में जितने ठोस कदम उठाए गए, उनकी बुनियाद चौधरी चरण सिंह ने रखी थी. ग्रामीण देनदारों को राहत मिलनी चाहिए, यह सिर्फ विचार नहीं रहा, बल्कि यह 1939 का ऋणमुक्ति विधेयक बनकर दर्ज हुआ. उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने जोत सीमा अधिनियम, 1960 लागू कराया, ताकि कुछ हाथों में भूमि की बेहिसाब पकड़ टूटे और गरीब किसान का हक सुरक्षित हो.
कड़क नेता
चौधरी चरण सिंह भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अक्षमता का जिस तरह विरोध करते थे, उससे उनकी छवि एक कड़क नेता की थी. वे जनता पार्टी सरकार में गृह मंत्री बने, फिर वित्त मंत्री और उप प्रधानमंत्री भी. 28 जुलाई 1979 को वे भारत के प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनके शब्दों में प्रधानमंत्री होना बड़ी बात नहीं, किसान का विश्वास जीतना बड़ी बात है.
उनकी लोकप्रियता का रहस्य क्या था? शायद यह कि उन्होंने कभी यह नहीं माना कि किसान, मजदूर या ग्रामीण भारत मतदाता हैं. वे उनके प्रतिनिधि थे, उनकी जुबान, उनका कंधा, उनकी आवाज. दिल्ली का किसान घाट आज भी याद दिलाता है कि लोकतंत्र की आत्मा गांवों में बसती है.
इसलिए जब 23 दिसंबर आता है, तो यह खेतों और किसानों के लिए एक त्योहार के रूप में होता है, जिनके लिए चौधरी चरण सिंह ने पूरा जीवन समर्पित कर दिया. 29 मई 1987 को उनका निधन हो गया था. देश में आज भी जब किसान की आवाज दबाई जाती है तो एक ही आवाज आती है... 'काश! चौधरी साहब होते.'
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