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Gauri Vrat 2025: अखंड सुहाग और मनचाहे वर की कामना के लिए करें गौरी व्रत, मुहूर्त से पूजा तक सबकुछ जानिए

Gauri Vrat 2025: मान्यता है कि देवी पार्वती ने भी भगवान शिव को प्राप्त करने हेतु कठोर तप और उपवास किया था. उसी के अनुसरण में कन्याएं यह व्रत करती हैं, ताकि उन्हें एक योग्य या मनचाहा वर और सुखमय वैवाहिक जीवन प्राप्त हो. व्रत में मुख्य रूप से मां गौरी की पूजा की जाती है.

Gauri Vrat 2025: अखंड सुहाग और मनचाहे वर की कामना के लिए करें गौरी व्रत, मुहूर्त से पूजा तक सबकुछ जानिए
Gauri Vrat 2025: अखंड सुहाग और मनचाहे वर की कामना से किया जाता है गौरी व्रत

Gauri Vrat 2025: गौरी व्रत हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से आरंभ होकर पूर्णिमा को समाप्त होता है. यानी की यह व्रत 6 जुलाई से शुरू होकर 10 जुलाई को समाप्त होगा. गौरी व्रत विशेष रूप से कन्याएं और सुहागिन स्त्रियां मां गौरी की कृपा पाने के लिए करती हैं ताकि उन्हें मां गौरी की कृपा से योग्य वर और सुखमय वैवाहिक जीवन प्राप्त हो. यह व्रत मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाता है. आइए जानते हैं पूजा विधि से शुभ मुहूर्त तक.

क्या है मान्यता?

मान्यता है कि देवी पार्वती ने भी भगवान शिव को प्राप्त करने हेतु कठोर तप और उपवास किया था. उसी के अनुसरण में कन्याएं यह व्रत करती हैं, ताकि उन्हें एक योग्य या मनचाहा वर और सुखमय वैवाहिक जीवन प्राप्त हो. व्रत में मुख्य रूप से मां गौरी की पूजा की जाती है. साथ ही भगवान शिव, गणेश जी और कई जगह पर देवी गौरी की मिट्टी या धातु की प्रतिमा का पूजन किया जाता है.

व्रत के दौरान क्या करें? Gauri Vrat 2025 Puja Vidhi

व्रत को रखने के लिए आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें. एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर कलश स्थापना करें और उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें. इसके बाद मां गौरी को हल्दी, कुमकुम, चूड़ी, बिंदी, वस्त्र और सुहाग की सामग्री चढ़ाएं. फिर मां गौरी की व्रत कथा सुनें. घी का दीपक जलाएं और मां की आरती करें और "ऊँ गौरी त्रिपुरसुंदरी नमः" मंत्र का जाप करें. व्रत समाप्ति के बाद छोटी कन्याओं को भोजन करवाएं व वस्त्र भेंट करें.

शुभ मुहूर्त Gauri Vrat 2025 Shubh Yog and Muhurat

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (सुबह 09 बजकर 14 मिनट) 5 जुलाई को पड़ रही है. दृक पंचांगानुसार, 6 जुलाई को एकादशी तिथि सुबह 09 बजकर 14 मिनट तक रहेगी, फिर उसके बाद द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी. रविवार के दिन त्रिपुष्कर योग, रवि योग के साथ भद्रा का साया भी रहेगा.

'त्रिपुष्कर योग' तब बनता है जब रविवार, मंगलवार व शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी में से कोई एक तिथि हो एवं इन 2 योगों के साथ उस दिन विशाखा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, पुनर्वसु व कृत्तिका नक्षत्र हो. इसके साथ ही रवि योग तब बनता है जब चंद्रमा का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से 4, 6, 9, 10, 13 और 20वें स्थान पर हो.

रविवार के दिन भद्रा का समय सुबह 05 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर रात के 10 बजकर 42 मिनट पर खत्म हो जाएगा. वहीं, त्रिपुष्कर योग का समय रात के 09 बजकर 14 मिनट से शुरू होकर रात के 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. साथ ही रवि योग का समय सुबह 05 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर रात के 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा.

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