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Chhath Puja Kharna 2023: छठ महापर्व में खरना का क्या है महत्व?, यहां जानें

साल 2023 में चार दिन के त्योहार छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर को नहाय-खाय (Nahay Khay ) के साथ हो चुकी है. वहीं 18 नवंबर  को छठ पर्व का खरना (Kharna ) होगा.छठ पूजा व व्रत का प्रारम्भ हिन्दू माह कार्तिक माह के शुक्ल की चतुर्थी तिथि से होता है.

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Chhath Puja Kharna 2023: छठ महापर्व में खरना का क्या है महत्व?, यहां जानें

Chhath Puja Kharna 2023: छठ लोक आस्था का सबसे पड़ा पर्व माना गया है. छठ महापर्व (Chhath 2022) ही एकमात्र ऐसा पर्व है जब डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठ पर्व का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि द्रौपदी ने भी सूर्य देव (Surya Dev) की उपासना के लिए छठ का व्रत रखा था. साल 2023 में चार दिन के त्योहार छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर को नहाय-खाय (Nahay Khay ) के साथ हो चुकी है. वहीं 18 नवंबर को छठ पर्व का खरना (Kharna ) होगा. छठ पूजा व व्रत का प्रारम्भ हिन्दू माह कार्तिक माह के शुक्ल की चतुर्थी तिथि से होता है.

खरना में क्या किया जाता है? 
खरना का अर्थ साफ़ और शुद्ध करना और शुद्ध खाना खाना हैं. खरना को लोहंडा भी कहते हैं .इस दिन भोजन प्रसाद बनाने में शुद्धत्ता का पालन किया जाता है. खरना के दिन से ही 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारम्भ हो जाता है. खरना कार्तिक शुक्ल पंचमी को रहता है. इस दिन खरना का भोजन और छठ का प्रसाद बनाया जाता है. इस दिन प्रसाद बनाने के लिए नए मिटटी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है, जिस पर साठी के चावल, दूध और गुड़ की खीर बनाई जाती है. खरना में पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर, घी लगी रोटी और फलों का सेवन करते हैं. इसके बाद व्रत शुरू हो जाता है. इस पूरे दिन पानी भी नहीं पिया जाता है. इसके बाद जब भोजन करते हैं तो अच्छे से शुद्ध जल ग्रहण करते हैं. खरना का प्रसाद या भोजन जो बच जाता है उसे घर के सभी सदस्यों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है. शाम के समय नदी या तालाब पर जाकर सूर्य को जल दिया जाता है और इसके बाद छठ का कठिन व्रत की शुरुआत हो जाती है.

खरना का महत्व 
धार्मिक मान्यता के अनुसार खरना (Kharna) का अर्थ शुद्धिकरण है. कई स्थानों पर खरना को लोहंडा भी कहा जाता है. खरना के दिन ही छठ पूजा के लिए ठेकुआ, पूड़ी समेत कई तरह के प्रसाद बनाए जाते हैं. खरना के दिन छठ पूजा का प्रसाद तैयार करने के लिए महिलाएं शुद्ध होकर छठी मैया का ध्यान करते हुए पूजन सामग्री बनाती हैं. इसके अलावा खरना के दिन व्रती महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और इसके अगले दिन उगते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. खरना से लेकर छठ पूजा संपन्न होने तक व्रत रखा जाता है.

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