Seema Muchaki Success Story: नक्सलगढ़ दंतेवाड़ा के मारजूम गांव में पली-बढ़ी सीमा मुचाकी दिल्ली में आयोजित गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होंगी. वो बस्तर का प्रतिनिधित्व दिल्ली के दस जनपथ में करेगी. इसके अलावा पीएम आवास में सांस्कृतिक संगीत की प्रस्तुति भी देगी. नक्सलगढ़ में सीमा का सफर संघर्ष और चुनौतीपूर्ण रहा, क्योंकि सीमा की एक बहन चेतना ईडो 2 साल की जेल काटकर घर लौटी है और उनके सिर पर 1 लाख रुपये का इनाम घोषित था. ईडो पर नक्सली नाट्य दल मंडली से जुड़ने का आरोप था.
दोषमुक्त होकर लौटी घर
चेतना न्यायालय से दोषमुक्त होकर घर वापस लौटी है. नक्सलियों और उसके संगठन से उसका अब कोई नाता नहीं है. अपनी बहन सीमा मुचाकी की कामयाबी से वो काफी खुश हैं.
दरअसल, सीमा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है. मारजूम की सीमा राजधानी दिल्ली में अपना लोहा मनवाने के लिए पहुंच गई है. नक्सलवाद की गंभीर परिस्थितियों को कुचलकर वह यहां तक पहुंची है. एनडीटीवी की संवाददाता पंकज सिंह भदौरिया ने सीमा मुचाकी से फोन पर बातचीत की.
चुनौतियों से भरा रहा सीमा मुचाकी का सफर
सीमा बताती है कि वो गाटम आश्रम में रह कर पढ़ाई की है. इसके बाद वो 2013 में जिले के संस्थान नन्हें परिंदे में पहंची. इसी दौरान उसका बारसूर नवोदय विद्यालय के लिए चयन हुआ. हालांकि दस्तावेज में त्रुटि के चलते वो वंचित हो गई. उसने हार नहीं मानी. इसके बाद वो एकलव्य आवासीय विद्यालय कटेकल्याण में चयनित हुई. यहां से उसने 12वीं तक की पढ़ाई की और जिला प्रशासन के द्वार संचालित 'छू लो आसमां' से वो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की. इस दौरान उन्होंने PTE की परीक्षा पास की. फिर गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज रायपुर में एडमीशन लिया, जहां इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकॉम की पढ़ाई कर रही है.
कैसे गणतंत्र दिवस परेड में शामिल हुई सीमा?
सीमा मुचाकी कॉलेज में द्वितीय वर्ष में थी. इसी दौरान एनएसएस से जुडक़र परेड की तैयारी करने लगी. कॉलेज की अन्य छात्र छात्राएं भी एनएसएस से जुड़ी.
सीमा मुचाकी बताती है कि यह सात दिन का यूनिट कैंप था. यहां अनुशासन में रहना सीखा. यूनिवर्सिटी स्तर पर परेड के लिए मेरा चयन हुआ. इसके बाद पटना बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में 10 दिन का कैंप लगा. इन 10 दिनों में बेहद कठिन प्रक्रिया में दक्षता हासिल की, जिसके बाद दिल्ली के लिए चयन हुआ है. यहां दस जन पथ में परेड का हिस्सा बनना है और पीएम हाउस में सांस्कृतिक प्रस्तुति देनी है.
सीमा कहती हैं कि वो मारजुम में रहने वाले पुलिस और माओवादियो दोनों की रडार पर रहे हैं. जब मैं बहुत छोटी थी, तब मारजुम के जंगलपारा में अचानक से गोली चलने लगी. इस गोली बारी में जंगलपारा के दो लोग मारे गए. इन दोनों का नाम पाडिय़ामी बिज्जा और मंगलू मडक़ामी थे. उस दौरान वो महज 8 से 9 वर्ष की थी. आज तक गोलियों की इस तड़तड़ाहट को नहीं भूल पाई हूं. जब भी वो दिन जहन में आता है तो सिहर जाती हूं.
मारजूम में अब न हो खून-खराब
बचपन में गोली-बारी देखी. अपनी बहन को गिरफ्तार होकर जेल जाते देखा. पुलिस के सामने मां को गिड़गिड़ाते देखा. मारजूम में वो सब कुछ छोटी सी उम्र में देख लिया है, अब खून खराबा देखने की हिम्मत नहीं बची है. बहन इड़ो, मां हिडमे और भी बहने सभी साथ है और सुरक्षित है, इससे ही संतोष मिलता है. परिवार सुरक्षित है. गांव में अब शांति है. उन्होंने आगे कहा कि मारजूम में प्रशासन वो सब कुछ पहुंचा दे जो जरूरत है. आदिवासी बच्चों में पढ़ने और आगे बढ़ने की खूब ललक है. उन्हें सही दिशा और मंच देने की जरूरत है. प्रशासन इस दिशा में काम कर रही है.
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