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छत्तीसगढ़ में पानी हुआ जहरीला: यूरेनियम की मात्रा 3-4 गुना ज्यादा, आंवले के पेड़ की छाल से साफ करने का तरीका तैयार

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के कई इलाकों के पानी में जहर घुलता जा रहा है. पानी में यूरेनियम की मात्रा 3 गुना ज्यादा बढ़ गई है. इसकी वजह से कैंसर का खतरा बढ़ गया है. ऐसे में आवंले की छाल से पानी को साफ करने का नया प्लान तैयार कर लिया गया है.

छत्तीसगढ़ में पानी हुआ जहरीला: यूरेनियम की मात्रा 3-4 गुना ज्यादा, आंवले के पेड़ की छाल से साफ करने का तरीका तैयार
BIT ने किया खास प्रयोग, आंवले की छाल से ऐसे साफ होगा दूषित पानी

Uranium in River Water: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के 6 जिलों में लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हो रहे हैं... क्योंकि यहां के पानी में यूरेनियम (Uranium) की मात्रा तय अनुपात से तीन गुना ज्यादा हो गई है. जिससे इन ज़िलों में कैंसर, किडनी फेल होने और त्वचा की गंभीर बीमारियां का खतरा बढ़ता जा रहा है. चिंता की इस खबर के बीच एक दूसरी खबर ये है कि छत्तीसगढ़ में ही एक संस्थान ने औषधीय गुणों से भरे आंवले के पेड़ की छाल से पानी से यूरेनियम हटाने का तरीका तैयार कर लिया है. इस तकनीक का पेटेंट भी कराया गया है. 

यूरेनियम की मात्रा है बहुत अधिक

पानी में यूरेनियम की मात्रा 30 से अधिक नहीं होनी चाहिए. लेकिन, इन इलाकों के लिए पानी के सैंपल की जांच में यूरेनियम की मात्रा 86 से 105 पाट्र्स पर बिलियन तक पहुंच गई है. भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने इस रिसर्च के लिए 6 जिलों में जीपीएस की मदद से 6 स्क्वेयर किलोमीटर का सैंपल लिया. इसी संस्थान ने पानी से यूरेनियम हटाने के लिये आंवले के पेड़ की छाल से एक खास यूरेनियम रिमूवल भी तैयार किया है.

कांकेर के पानी में 106 पीपीबी यूरेनियम पाया गया है, तो वहीं बालोद के देवतारयी गांव में ये 130 पीपीबी तक पहुंच गया है. खनिज संपदाओं से धनी छत्तीसगढ़ की धरती में कई नायाब खनिज हैं. लेकिन, पानी में तय मात्रा से ज्यादा थोड़ा फिक्र बढ़ाने वाला है.

ऐसे पानी को साफ करेगा आंवले की छाल 

बीआईटी दुर्ग की रिसर्चर पूनम देशमुख ने कहा कि मशीनरी के बारे में तो हमने बहुत ब्रॉड लेवल पर नहीं सोचा है, लेकिन ये बोल सकते हैं कि अभी तो हम लोगों ने इसे बैच तकनीक से डेवलप किया है. लेकिन, अगर इसे लॉर्ज वाटर को ट्रीट करना है, तो उसके लिए कॉलममोड ज्यादा इफेक्टिव होता है. नेचर में बहुत सारे मैटल आयन होता है, जिसके लिए इंडस्ट्रियल लेवल पर ये सब टेक्निक डेवलप होती है. हम सोच सकते हैं कि कॉलम मोड पर इसे ले जाने से ज्यादा इफेक्टिव होगा.

25 साल पुराना है बोर-सरपंच

गांव के सरपंच  दानेश्वर सिन्हा ने बताया कि यहां बोर 25 साल पुराना है. 25 वर्ष से ग्रामवासी इसका पानी पीते आ रहे हैं. देवतरई में और कोई साधन नहीं है. केवल एक ही बोर है, जिससे पानी सप्लाई होता है. एक दिन पता चला कि बीआईटी के छात्रों द्वारा यहां के पानी को ले जाकर शोध किया गया,  जिसमें यूरेनियम की मात्रा पाई गई है. उसके बाद हमने पीएचई विभाग में भागम-भाग और दौड़धूप की. उसके बाद फिर से एक बार जांच के लिए यहां से पानी ले जाया गया है. हम पानी के लिए दूसरा बोर भी कराए हैं और ये स्रोत बंद कर रहे हैं.

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पीएचई विभाग ने कही जांच की बात

बालोद पीएचई विभाग के ईई सुक्रान्त साहू ने कहा कि गांव के सभी जल स्रोतों से सैंपल लेकर बीआईटी दुर्ग में जांच के लिए भेजा जा रहा है. वहां से जैसे ही रिपोर्ट आएगी, आगे की कार्रवाई की जाएगी. भारत सरकार ने नेशनल यूरेनियम प्रोजेक्ट की कल्पना के तहत भाभा एटैमिक रिचर्स सेंटर से एक सर्वे कराया था, जिसमें इसकी पुष्टि हुई है.

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