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This Article is From Apr 19, 2024

NDTV Exclusive : 20 सालों से नक्सलियों के कब्जे में था ये गांव, अब पोलिंग बूथ बना तो भाड़े की गाड़ियां लेकर वोट डालने पहुंच गए ग्रामीण 

Loksabha Election: छत्तीसगढ़ के बस्तर लोकसभा क्षेत्र के नक्सलियों के कब्जे में रहे कई गांवों में पहली बार वोटिंग हुई है. कल तक मतदान पर जहां लाल आतंक का पहरा था, उसी गांव में लाल आतंक का बैरियर को तोड़कर लोग मतदान करने के लिए पहुंचे. दुर्गम रास्तों, IED के खतरों, घने जंगल को पार कर NDTV की टीम भी इस गांव में पहुंची. पढ़िए लाल आतंक के गढ़ में भारी पड़े लोकतंत्र की ये Exclusive रिपोर्ट... 

पालनार गांव में वोट देने पहुंचे ग्रामीण.

Loksabha Election 2024: छत्तीसगढ़ के बस्तर में इस लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) में ऐसे गांवों में भी वोटिंग हुई है, जो सालों से नक्सलियों के कब्जे में थे और वीरान पड़े हुए थे, उनमें से एक है बीजापुर (Bijapur) का गांव पालनार.  यहां जब पहली बार पोलिंग बूथ बना और ग्रामीणों को पता चला कि गांव में वोटिंग होगी तो कोई पैदल चलकर तो कोई वाहनों में सवार होकर वोट डालने पहुंच गया. ये तब सम्भव हो पाया जब यहां सुरक्षा बलों का कैम्प खुला है. 

ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा

साल 2005 को शुरू हुए सलवा जुडूम के बाद बस्तर में कई गांव खाली हो गए. नक्सलियों ने ऐसा कहर बरपाया कि ग्रामीणों को अपनी सम्पति, मवेशी, ज़मीन-जायदाद सबकुछ छोड़कर जान बचाकर भागना पड़ा. ये ग्रामीण शहर के आसपास के इलाकों या कैम्पों में रहने लगे. नक्सलियों के खौफ के कारण गांव वापस नहीं आए. लेकिन अब दो दशक बाद जब गांव में सुरक्षा बलों का कैम्प खुला तो ग्रामीणों की आस फिर से जाग गई. इस लोकसभा चुनाव में पहली बार इस गांव में पोलिंग बूथ बनाकर यहीं वोटिंग कराने का प्रशासन ने बीड़ा उठाया और ये सफल भी हुआ. जब गांव के रहवासियों को इस बात की जानकारी मिली तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और वे शुक्रवार को पोलिंग बूथ में वोट डालने पहुंच गए. 

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दुर्गम रास्तों, जंगलों बेहद कठिन रास्तों को पार कर NDTV की टीम भी चुनावी माहौल को जानने के लिए इस गांव में पहुंची. नक्सलगढ़ होने के कारण चप्पे-चप्पे पर जवानों का पहरा था. हम यहां बने पोलिंग बूथ पहुंचे तो वोटिंग के लिए लगी ग्रामीणों की लंबी लाइन यहां बदल रहे हालातों का सुखद अहसास करा रही थी.  
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यहां बड़ी संख्या में महिलाएं पेड़ के नीचे बैठकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी. जिन्होंने वोट दे दिया वो अपनी उंगली पर लगे अमिट स्याही को दिखाकर बेहद उत्साहित दिख रही थी. 

दरअसल बीजापुर जिले का ये गांव उन 600 बदनसीब गांव में शामिल था, जो सलवा जुडूम में उजड़ गए थे. वीरान हो चुके इस गांव में हाल में सुरक्षा बलों ने कैम्प स्थापित किया. नतीजा यह की 20 सालों के बाद यहां मतदान सम्भव हो पाया है. 

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अपने गांव में वोट देकर खुश दिखे ग्रामीण 

इस गांव में वोट डालने के लिए पहुंचे ग्रामीण वोटर्स ने बताया कि वोट देकर हमें बहुत ख़ुशी हो रही है. इस बार हमने भी लोकतंत्र के इस महापर्व में बड़ी भूमिका निभाई है. 20 सालों से ये गांव वीरान पड़ा था. कैम्प खुलने के बाद यहां पहली बार वोट हो रहा है. ग्रामीणों ने बताया कि कई लोग विस्थापित होकर दूसरे गांवों में बसे हैं. यहां पोलिंग बूथ की जानकारी मिली तो  वे भाड़े पर ऑटो, पिकअप व अन्य वाहनों से लगभग 30 किमी दूर वोट करने पहुंचे. अपने ही गांव में डेढ़ दशक बाद वोटिंग करने पर गामीणो की खुशी का ठिकाना नहीं था. साथ ही सुरक्षा में मौजूद CRPF के जवानों ने इलाके से जुड़ी चुनौती को कैमरे पर बेबाकी से व्यक्त किया. 

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