Lok Sabha Elections 2024: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की राजधानी रायपुर (Raipur) प्रदेश के मध्य में स्थित है. इसके बारे में एक कहानी मशहूर है कि राजा रामचंद्र के पुत्र ब्रह्मदेव राय (Brahmadev Rai) ने रायपुर की स्थापना की थी. नव निर्मित शहर का नाम ब्रह्मदेव राय के ही नाम पर ‘रायपुर' रखा गया था. आजादी के बाद रायपुर जिले को केंद्रीय प्रांतों (Central Provinces) की सूची में शामिल किया गया. ये छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे बड़ा शहर होने के साथ-साथ राज्य का एक जरूरी औद्योगिक और व्यापारिक केन्द्र है. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) से विभाजन के पहले रायपुर मध्य प्रदेश राज्य का हिस्सा था. बता दें कि रायपुर को स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 में छठा स्थान मिला था.
इस जिले की राजनीति खुद में बहुत खास और अनोखी रही हैं. शुरुआत में जो सीट कांग्रेस (Congress) का गढ़ मानी जाती थी, आज वहां भाजपा (BJP) पूरी तरह अपना हक जमा चुकी है. बल्कि, ये वही सीट हैं जहां से देश की आजादी के समय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे आचार्य कृपलानी चुनाव लड़ चुके है. इस लोकसभा सीट पर 1951 से लेकर अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं. इसमें से आठ बार कांग्रेस, एक जनता पार्टी और आठ बार भाजपा ने सरकार बनाई. यहां के वोटर समीकरण पर विस्तार से बात करेंगे, लेकिन, आइए उससे पहले यहां के इतिहास पर एक नजर डाल लेते हैं.
गांव से शहर और फिर प्रदेश की राजधानी तक का सफर
अधिकांश लोग रायपुर को सिर्फ छत्तीसगढ़ की राजधानी के रूप में जानते हैं. लेकिन ये सिर्फ चुनिंदा लोगों को मालूम होगा कि पहले ये शहर एक छोटा गांव हुआ करता था. रायपुर शहर की स्थापना करीब 1400 ईसवी में हुई. इसके बाद आजादी के दौर में यहां कई तरह के बदलाव देखने को मिले. महात्मा गांधी अपने जीवनकाल के दौरान यहां दो बार आए थे. पहली बार कंडेल ग्राम (अभी धमतरी जिले) में एक सत्याग्रह में शामिल होने के लिए 20 दिसंबर 1920 को पहली बार और दूसरी बार 1933 में आए थे और पं.रविशंकर शुक्ल के घर बूढ़ापारा में रुके थे. 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से विभाजित करके छत्तीसगढ़ को एक नए राज्य के रूप में स्थापित किया गया और रायपुर को यहां की राजधानी के रूप में दर्जा प्राप्त हुआ.
देश के सबसे बड़े इस्पात उत्पादकों में से एक
इस शहर में लगभग 200 स्टील रोलिंग मिल, 195 स्पंज आयरन प्लांट, कम से कम 6 स्टील प्लांट और कई तरह के कारखाने मौजूद हैं. यहां से निर्मित उत्पाद को विदेशों में भी निर्यात किया जाता है. रायपुर को व्यापार के लिए भी देश के सबसे अच्छे शहरों मे से एक माना जाता है. रायपुर पूरे छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के लिए थोक की मंडी भी है.
9 विधानसभा में से सिर्फ एक कांग्रेस के पास
बता दें कि रायपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल 9 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें बालोदा बाजार, भाटापारा, धर्सिवा, रायपुर सिटी ग्रामीण, रायपुर सिटी वेस्ट, रायपुर सिटी नॉर्थ, रायपुर सिटी साउथ, आरंग और अभनपुर शामिल हैं. जिसमें आरंग सीट एससी के लिए आरक्षित है. इस लोकसभा के अंतर्गत दो जिले, बालोदा बाजार और रायपुर आते हैं. वर्तमान में सिर्फ भाटापारा सीट पर कांग्रेस से विधायक है, बाकी सभी आठ सीटों पर भाजपा के विधायक पदस्थ हैं.
जातिगत समीकरण
वर्तमान में रायपुर लोकसभा सीट सामान्य श्रेणी की संसदीय सीट है. इस पूरे लोकसभा क्षेत्र की साक्षरता दर 64.71% है. इस सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या लगभग तीन लाख 63 हजार है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग पूरी जनसंख्या का 17.2% है, तो वहीं, एसटी मतदाताओं की संख्या लगभग एक लाख 28 हजार है. रायपुर संसदीय सीट पर ग्रामीण मतदाताओं की संख्या लगभग नौ लाख 81 हजार और शहरी मतदाताओं की संख्या लगभग 11 लाख 29 हजार है. 2019 के संसदीय चुनाव के अनुसार, रायपुर संसदीय सीट के 2329 मतदान केंद्रों पर कुल मतदाता 21 लाख 11 हजार 104 थे. यहां पर शहरी क्षेत्र में रहने वाले लोगों का वोट गेम चेंजर साबित होता है.
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भाजपा के गढ़ में कांग्रेस मार पाएगी सेंध?
रायपुर की लोकसभा सीट अपने शुरूआती दिनों में कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी. यहां पर 1952 से 1971 तक पांच बार लगातार कांग्रेस ने जीत हासिल की. 1977 में जनता पार्टी ने एक टर्म के लिए जीत हासिल की. लेकिन, 1980 में दोबारा कांग्रेस आई और दो बार यहां से केयूर भूषण सांसद रहें. 1989 के चुनाव में पहली बार भाजपा ने इस सीट पर अपनी पकड़ बनाई लेकिन, 1991 में विद्याचरण शुक्ला ने दोबारा कांग्रेस को जीत दिलाई. इसके बाद 1996 में एक बार फिर रमेश बैस भाजपा से सांसद बने और दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने भाजपा को इस सीट से 1996 से लेकर 2014 तक 6 बार भाजपा को जीत दिलाई. 2019 के चुनाव में पार्टी ने सुनील कुमार सोनी को अपना उम्मीदवार बनाया और वही वर्तमान में यहां से सांसद है. अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा के गढ़ बन चुके इस सीट पर कांग्रेस जीत दर्ज कर पाएगी.
भाजपा ने लगाया विधायक पर दांव
इस बार भाजपा ने एक बार फिर अपना उम्मीदवार बदल दिया है. पार्टी ने रायपुर सिटी साउथ से अपने ही विधायक बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Aggarwal) को लोकसभा का टिकट दिया है. बता दें कि 2019 में भी पार्टी ने सात बार से सांसद रमेश बैस का टिकट काटकर सुनील कुमार सोनी को टिकट दिया था. अगर बात करें कांग्रेस की तो इस बार पार्टी ने विकास उपाध्याय (Vikas Upadhyay) को मैदान में उतारा है.
हालांकि, ये दुसरी बार है जब कांग्रेस किसी ब्राह्मण उम्मीदवार पर अपना दांव खेल रही हैं. इससे पहले 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने प्रमोद दुबे को टिकट दिया था. देखना दिलचस्प होगा कि इस बार यहां भाजपा अपना दबदबा बनाए रखता है या कांग्रेस अपनी जगह बनाने में सफल हो पाता है. क्योंकि यहां 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कुल वोट का अंतर लगभग आधे से ज्यादा का था, जहां कांग्रेस के प्रमोद दुबे को चार लाख 89 हजार वोट आए थे तो वहीं भाजपा के सुनील कुमार सोनी को आठ लाख 37 हजार वोट आए थे.
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