What is Sallekhana: जैनमुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ स्थित 'चंद्रगिरि तीर्थ' में 'सल्लेखना' करके रविवार को देह त्याग दी. चंद्रगिरि तीर्थ की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, 'सल्लेखना' (Sallekhana) जैन धर्म में एक प्रथा है, जिसमें देह त्यागने के लिए स्वेच्छा से अन्न-जल का त्याग किया जाता है. आचार्य विद्यासागर (Acharya Vidyasagar) के निधन पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आधे दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गई है.
सल्लेखना प्रथा को जानिए
सल्लेखना जैन धर्म की एक प्रथा है. इसमें देह त्याग करने के लिए स्वेच्छा से अन्न और जल का त्याग किया जाता है. 'सल्लेखना' शब्द 'सत्' और 'लेखन' से मिलकर बना है जिसका मतलब है 'अच्छाई का लेखा-जोखा'. एक खास विचार के चलते जैन धर्म में सल्लेखना प्रथा का पालन किया जाता है.
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माना जाता है कि अकाल, बुढ़ापे और बीमारी की स्थिति में जब कोई समाधान नजर न आए तो धर्म का पालन करते हुए सल्लेखना विधि से व्यक्ति को स्वेच्छा से प्राणों का त्याग कर देना चाहिए. सल्लेखना विधि का मूल अर्थ सुख के साथ बिना किसी शोक, कष्ट या दुख के मृत्यु को स्वीकार करना है. यही कारण है कि इस विधि में व्यक्ति पूरी तरह से अन्न और जल को छोड़ देता है और देह का त्याग कर देता है.
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चंद्रगुप्त मौर्य ने किया था सल्लेखना का पालन
इतिहास में पहले भी लोग सल्लेखना के माध्यम से प्राण त्याग चुके हैं. मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने सल्लेखना विधि से ही अपने प्राणों का त्याग किया था. उन्होंने कर्नाटक के श्रावणबेलगोला में अन्न और जल का त्याग किया था. उन्होंने सल्लेखना विधि इसलिए अपनाई क्योंकि उस वक्त उत्तर में स्थित उनके साम्राज्य में अकाल पड़ा था.