जैन मुनि आचार्य विद्यासागर का छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित जैन तीर्थ स्थान चंद्रगिरी में शनिवार की रात 2 बजकर 35 मिनट पर निधन हो गया. उनकी मौत पर देश भर में शोक की लहर व्याप्त हो गई. जैन आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का देवलोक प्रयाग हुआ है. वे भारतीय संस्कृति की श्रवण परंपरा के बहुत बड़े संत थे. उनके प्रयाण से पूरी संस्कृति को अपूरणीय क्षति हुई है और देश पर वज्रपात हुआ है. ये बात मध्य प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री चेतन्य कश्यप ने भावुक होते हुए कही.
कश्यप ने बताया कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने जैन संत को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मध्य प्रदेश में आधे दिन का राजकीय शोक घोषित किया है. इसके साथ ही CM मोहन यादव ने आदेश दिया है कि राज्य सरकार की ओर से वे संत शिरोमणि की अंतिम यात्रा में शामिल होकर प्रदेश सरकार की तरफ से श्रद्धा सुमन अर्पित करें. इसलिए मंत्री कश्यप इंदौर से हवाई जहाज के माध्यम से राजनांदगांव के लिए रवाना हुए. कश्यप ने इसे जैन समाज के साथ भारतीय संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति होना बताया और कहा कि उनके प्रेरणादाई वचन, सभी के जीवन को प्रेरणा देते रहेंगे.
जानिए कौन है आचार्य विद्यासागर महाराज
जैन संत संप्रदाय में सबसे ज्यादा विख्यात संत विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था. उनके पिता का नाम मल्लप्पा था, जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने. उनकी माता का नाम श्रीमंती था, जो बाद में आर्यिका समयमति बन गई थी. 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर को आचार्य का पद दिया गया था. उनके भाई महावीर, अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योग सागर और मुनि समय सागर, मुनि उत्कृष्ट सागर कहलाए.
इन भाषाओं में थी महारत
आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं जैसे हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते थे. उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएं भी की हैं. सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है. उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं. उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है. विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है. आचार्य विद्यासागर कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं.
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