Acharya Vidyasagar Maharaj: जैन समुदाय (Jain Community) के सबसे अहम माने जाने वाले आचार्य विद्यासागर (Acharya Vidyasagar) महाराज ने 18 फरवरी को अपना देह त्याग करके समाधी (Samadhi) ले ली. कर्नाटक (Karnataka) के बेलगांव जिले में जन्मे आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते थे.
आचार्य विद्यासागर के देहत्याग के बाद पूरे जैन समाज में शोक की लहर है. उनके समाधी लेने के बाद कई बड़े लोगों ने शोक व्यक्त किया है. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में इसको लेकर राजकीय शोक का भी ऐलान किया गया है.
ये भी पढ़ें :- कौन थे आचार्य विद्यासागर महाराज जिन्हें गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड ने माना 'ब्रह्मांड का देवता'? शोक में डूबा जैन समाज
आचार्य विद्यासागर महाराज के जीवन से जुड़ी रोचक बातें
जैनमुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ स्थित 'चंद्रगिरि तीर्थ' में 'सल्लेखना' करके रविवार को देह त्याग दी. जैन समाज के लिए यह बेहद दुखद खबर है. चंद्रगिरि तीर्थ की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, 'सल्लेखना' जैन धर्म में एक प्रथा है, जिसमें देह त्यागने के लिए स्वेच्छा से अन्न-जल का त्याग किया जाता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि महाराज ने इसके अलावा कई सारी चीजों का आजीवन त्याग किया था. आइए आपको आचार्य विद्यासागर महाराज के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताते हैं.
1. आजीवन धन-वैभव का त्याग
आचार्य विद्यासागर महाराज का कोई बैंक खाता या कोई ट्रस्ट नहीं है. इसके अलावा उन्होंने मोह-माया का भी त्याग किया हुआ था. जिनके ऊपर अरबों रुपए निछावर होते थे उन्होंने कभी भी धन को स्पर्श तक नहीं किया.
2. इन चीजों का नहीं किया आजीवन सेवन
जैन धर्म के महाराज ने अपने जीवन में कई चीजों का कभी सेवन नहीं किया. जैसे, उन्होंने आजीवन चीनी का त्याग, आजीवन नमक का त्याग, हरी सब्जियों का त्याग, फलों का त्याग, आजीवन दही का त्याग, ड्राई फ्रूट्स और तेल का त्याग कर दिया था.
3. आराम की चीजों से परहेज
ऐशो-आराम की चीजों को लेकर भी महाराज बहुत सरल थे. उन्होंने आजीवन चटाई और भौतिक साधनों का त्याग किया हुआ था. महाराज एक ही करवट सोते थे वह भी बिना चादर, गद्दे या तकिए के.
4. सीमित आहार का सेवन
आचार्य विद्यासागर ने आजीवन सीमित अंजुली जल का सेवन किया, वह भी 24 घंटे में सिर्फ एक बार. वह एक मात्र ऐसे संत महाराज थे जो प्रचार-प्रसार से दूर रहते थे.
5. थूकने का त्याग
किसी को अगर 24 घंटे के लिए थूकने से मना कर दिया जाए तो उसकी हालत खराब हो जाएगी. लेकिन महाराज ने आजीवन थूकने का त्याग किया हुआ था.
6. सभी के पूजनीय
जैन समाज के होने के बाद भी आचार्य विद्यासागर महाराज एक मात्र ऐसे संत थे जो सभी धर्मो में पूजनीय थे. पूरे भारत में वह एकमात्र ऐसे आचार्य थे जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा था.
7. गुरु से अनुमति लेकर परिवार से करते थे बात
गुरू बनने के पहले भी ब्रह्मचारी अवस्था में परिवार जनों से चर्चा करने के लिए वह अपने गुरू से स्वीकृति लेते थे. साथ ही वह अपने परिजनों को पहले अपने गुरू के पास स्वीकृति लेने के लिए भेजते थे.
ये भी पढ़ें :- सल्लेखना प्रथा क्या है जिसका पालन कर आचार्य विद्यासागर ने ली समाधि? चंद्रगुप्त मौर्य ने भी किया था प्राणों का त्याग