Khekhasa Cultivation: खेखसी यानी काकोड़ा… जंगल की सीमाओं से निकलकर अब खेतों में नई पहचान बना रही है. भाटापारा स्थित दाऊ कल्याण सिंह कृषि महाविद्यालय में चल रहे वैज्ञानिक शोध ने इस फसल को किसानों के लिए वरदान साबित करने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है. मानकीकृत उत्पादन तकनीक विकसित होने के बाद किसान अब कम लागत में ज्यादा मुनाफे की उम्मीद कर रहे हैं.
तकनीकी परीक्षण के लिए आधा एकड़ क्षेत्र में की गई खेखसी की खेती
बलौदा बाजार जिले के दाऊ कल्याण सिंह कृषि महाविद्यालय व अनुसंधान केंद्र भाटापारा में पारंपरिक सब्जी खेखसी की वैज्ञानिक खेती पर रिसर्च जारी है. आधा एकड़ क्षेत्र में तकनीकी परीक्षण और प्रायोगिक खेती की गई है, जिससे यह फसल व्यावसायिक उत्पादन की दिशा में महत्वपूर्ण अवसर बनकर उभर रही है. महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. देवेंद्र उपाध्याय बुवाई की तिथि, प्लास्टिक मल्च, ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन तकनीकों का मानकीकरण पर अध्ययन कर रहे हैं.
पौधों की लगातार बढ़ रही मांग
इंदिरा काकोड़ा-2 प्रजाति पर काम करते हुए महाविद्यालय स्वयं पौध उत्पादन भी कर रहा है, जिसे किसानों तक पहुंचाया जा रहा है. शोध की जानकारी फैलते ही किसानों में गजब का उत्साह देखा जा रहा है. अब तक 15–20 किसान पौधे लेकर लगाना शुरू कर चुके हैं और पौधों की मांग लगातार बढ़ रही है- बलौदा बाजार जिला ही नहीं बल्कि अन्य जिलों और पड़ोसी राज्यों के किसान भी पौधों के लिए संपर्क कर रहे हैं.
इस फसल की सबसे खास विशेषता यह है कि इसे एक बार लगाने के बाद पौधे हर वर्ष प्राकृतिक रूप से उगते रहते हैं, यानी लंबे समय तक स्थायी आय इस सब्जी के पौध को लगाकर कमाया जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक पौधे डायोइशियस होते हैं, इसलिए 8:1 या 8:2 के अनुपात में मादा और नर पौधे रोपना जरूरी है, तभी फल उत्पादन संभव है.
खेखसी में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं खनिज तत्व
पारंपरिक सब्जी खेखसी के पोषण और औषधीय गुणों की बात करें तो इसमें एंटीऑक्सिडेंट, बीटा कैरोटीन, विटामिन सी और कई आवश्यक खनिज तत्व भरपूर पाए जाते हैं. पारंपरिक चिकित्सा में इसकी पत्तियों व बीजों का उपयोग बुखार, सिरदर्द और कंठ रोगों सहित कई उपचारों में किया जाता है. मधुमेह और उच्च रक्तचाप के मरीजों के लिए भी यह लाभकारी बताया गया है.
200 से 250 रुपये किलो मिलता है खेखसी
कम उत्पादन और जंगल पर निर्भरता के कारण इसकी बाजार में कीमत काफी ऊंची रहती है—थोक में 110 से 130 रुपये प्रति किलो और खुदरा में 200 से 250 रुपये किलो तक यह सब्जी अभी बारिश के शुरुआती दिनों में पाया जाता है. इधर इस पर रिसर्च करके कृषि महाविद्यालय किसानों के लिए जुलाई से दिसंबर तक फसल उत्पादन तकनीक इजाद कर रहा है, जिससे यह किसानों के लिए अत्यधिक लाभदायक विकल्प बनकर उभर रही है.
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