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MCB जिले में कहां है विकास? गड्ढे का पानी पीने को मजबूर कारीमाटी गांव के आदिवासी, इनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं!

Water Problem in Chhattisgarh: एमसीबी जिले के ग्राम पंचायत उमरवाह के अंतर्गत आने वाला कारीमाटी गांव जंगल से घिरा हुआ है. यहां के लोगों के लिए साफ पानी मिलना अब सिर्फ सपना बनकर ही रह गया है. यहां के निवासी आज भी गंदा और धुंधला पानी पीने को मजबूर हैं.

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MCB जिले में कहां है विकास? गड्ढे का पानी पीने को मजबूर कारीमाटी गांव के आदिवासी, इनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं!
कारीमाटी गांव के लोग पानी की समस्या को लेकर जिम्मेदारों से शिकायत कर चुके हैं, लेकिन इनकी सुनवाई किसी ने नहीं की.

Manendragarh-Chirmiri-Bharatpur: छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बने हुए 23 साल से ऊपर का समय हो चुका है. सरकारें राज्य में चौतरफा विकास (Development in Chhattisgarh) का दावा करती आई हैं. लेकिन, राज्य में अभी भी ऐसे इलाके हैं जहां मूलभूत जरूरतों की कमी है. छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले (MCB District) का कुछ ऐसा ही हाल है. भरतपुर जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत उमरवाह के लोग आज भी गड्ढे और नाले का पानी (Water Problem) पीने को मजबूर हैं. इस आदिवासी बहुल्य गांव (Adiwasi Majority Village) को लोगों ने कई बार इसकी शिकायत सरपंच, सचिव, अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से की. लेकिन, इनकी आज तक सुनवाई नहीं हो सकी है.

पीने के लिए साफ पानी महज एक सपना

ग्राम पंचायत उमरवाह के अंतर्गत आने वाला कारीमाटी गांव जंगल से घिरा हुआ है. यहां के लोगों के लिए साफ पानी मिलना अब सिर्फ सपना बनकर ही रह गया है. यहां के निवासी आज भी गंदा और धुंधला पानी पीने को मजबूर हैं. इसी गंदे पानी से यहां के लोगों को गुजारा करना पड़ रहा है. क्षेत्र के विधायक तक ने इन लोगों की सुध नहीं ली. ग्रामीणों ने बताया कि चुनाव के वक्त ही इस गांव में नेता आते हैं और लोगों की सुनते हैं. इसके बाद यहां की समस्याओं को सब भूल जाते हैं और उस पर कोई एक्शन ही नहीं होता है.

Drinking Water Problem in Villages of Chhattisgarh

कारीमाटी गांव के लोग गड्ढे का मैला पानी पीने को मजबूर हैं.

गांव में सड़क भी नहीं

पानी के साथ ही इस गांव में सड़क की भी समस्या है. यहां की सड़क इतनी खराब है कि चार पहिया वाहन जाना मुश्किल है. इस गांव में सिर्फ बाइक से ही पहुंचा जा सकता है. यहां कुल 37 परिवार रहते हैं, जिन्हें राशन कार्ड दिया गया है. भरतपुर के तहसील मुख्यालय जनकपुर से कारीमाटी गांव की दूरी 26 किमी है. यह गांव में आदिवासी बाहुल्य है. सरकारें आदिवासियों के विकास के लिए कई दावे करती आई हैं, फिर भी यह गांव आज भी विकास के लिए तरस रहा है. सरकार की अनदेखी का खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है.

हम अपना दुख किसे बताएं?

गांव की एक वृद्ध महिला फूलबाई कहती हैं कि क्या करें? हम गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. वृद्ध अवस्था होने के कारण अब दूर से पानी नहीं ला पाते हैं. बस किसी प्रकार गुजारा कर रहे हैं. वहीं ढोड़ी यानी गड्ढे से पानी पीने पर उन्होंने कहा कि क्या करें, अगर ढोड़ी से पानी पी रहे हैं? जब उसमें पानी नहीं निकलता, तब नदी जाकर पानी लाते हैं. गुजारा करते हैं. वृद्ध आदमी क्या करे? उसी पानी में अपना निस्तार करते रहते हैं. यहां न सचिव आता है और न ही सरपंच आता है. जो कुछ हमें दुख होता है हम किसे बताएं.

Drinking Water Problem in Villages of Chhattisgarh

इसी गड्ढे के पानी का उपयोग कारीमाटी गांव के लोग पीने के लिए करते हैं.

वृद्ध महिला ने बड़े ही बेबसी से कहा कि झूठ नहीं बोल रहे हैं साहब, 45 साल हो गया है हमको पानी की परेशानी से जूझते हुए. कौन देखे? देखने वाला कोई नहीं है. अगर हम मर भी जाएं तो देखने वाला कोई नहीं है.

पूर्व विधायक से भी लगाई गुहार

गांव के अन्य ग्रामीण सकसूदन सिंह बताते हैं कि यहां पानी की समस्या है. पानी नहीं है. नदी-नाला से लेकर पानी पीते हैं. नहाने धोने के लिए परिवार को लेकर बनास नदी जाते हैं. इसी प्रकार गुजर बसर कर रहे हैं. यहां के सरपंच को आवेदन दिए थे और बताए थे कि पानी की बहुत समस्या है. कई बार आवेदन ग्राम सभा में भी दिए लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ और जब पूर्व विधायक गुलाब कमरों आए थे, उसको भी बोला गया. फिर भी कुछ नहीं हुआ.

गांव का पंच भी बेबस

गांव के पंच दल प्रताप सिंह बताते हैं कि हमारे पारा में भी पानी नहीं है. हम खुद कई बार शिकायत किए हैं. पानी की समस्या को सरपंच भी जानता है. पंच बताते हैं कि हमारे यहां भी पानी नहीं है. हम खुद पानी लेने दूर जाते हैं. नहाने धोने के लिए बनास नदी जाते हैं. कई बार पानी के लिए लिख चुके, अभी तक पानी की सुविधा नहीं मिल पाई है.

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