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पंचायतों के विकास के पैमाने में छत्तीसगढ़ देश में सबसे 'फिसड्डी' ! केन्द्र सरकार की रिपोर्ट से खुली पोल

छत्तीसगढ़ को गावों का प्रदेश है. यहां शहर से कहीं ज्यादा गांव हैं. इन्हें चलाने और इनका विकास करने की जिम्मेदारी पंचायतों की है. लेकिन केन्द्र सरकार के पंचायती राज विभाग की रिपोर्ट बताती है कि छत्तीसगढ़ के गावों का बुरा हाल है. केन्द्र के पंचायत उन्नति सूचकांक में D ग्रेड में छत्तीसगढ़ के पंचायतों की संख्या सबसे ज्यादा है.

पंचायतों के विकास के पैमाने में छत्तीसगढ़ देश में सबसे 'फिसड्डी' ! केन्द्र सरकार की रिपोर्ट से खुली पोल

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के गांवों में सरकार के वादे कागज़ों में चमक रहे हैं, लेकिन हकीकत में गांव अब भी पानी, पढ़ाई, और इलाज के लिए तरस रहे हैं.  ये हम नहीं कह रहे बल्कि खुद भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के ताज़ा आंकड़े ये बातें बयान कर रहे हैं. दरअसल देशभर की पंचायतों की हालत जांचने के लिए पंचायती राज विभाग ने हाल ही में 'पंचायत उन्नति सूचकांक' (PAI) जारी किया है. इसमें छत्तीसगढ़ सबसे निचले पायदान पर है. देश में सबसे ज्यादा जिन पंचायतों को 'D' ग्रेड में डाला गया है और उसमें छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर है. इस रिपोर्ट में केस स्टडी के साथ हालात की बात करेंगे. पहले आंकड़ों पर निगाह डाल लेते हैं.  

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3 किमी दूर पानी भरने जाती थी छात्रा

इन आंकड़ों के सामने आने के बाद NDTV ने ग्राउंड पर जाकर हालात को समझने की कोशिश की. रायपुर के रीवां गांव में जब हम पहुंचे तो वहां हमें छात्रा पिंकी साहू मिलीं. वे बताती हैं गांव में पानी के लिए इतनी मारामारी है कि शादी-ब्याह तक रुक गए हैं. पिंकी बताती हैं कि 12वीं बोर्ड की परीक्षा के समय में भी उसने 3 किलोमीटर दूर जाकर पानी भरना पड़ता था. पानी भरने के बाद ही वो पढ़ाई कर पाती थी. कुछ ऐसा ही दर्द इसी गांव के अक्षय का भी है. 

सड़कें उखड़ी पड़ी हैं गावों में

इसके बाद हम पहुंचे दुर्ग के अंजोरा गांव. यहां भी पानी की जर्बदस्त किल्लत है. इसके साथ ही सड़कें उखड़ी पड़ी हैं. गांव में खुलेआम शराब बिक रही है और स्कूलों में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है. यहां के पूर्व सरपंच सुमरन साहू बताते हैं कि गांव तक जो पहुंच मार्ग है उस पर चलना संभव ही नहीं है.हमने कई बार प्रशाशन के पास गुहार लगाई लेकिन  किसी ने ध्यान नहीं दिया. आसमाजिक तत्वों की वजह से महिलाओं के लिए भी सुरक्षा संबंधित समस्या होती है. 

'आवाज जंगलों में गुम हो जाती है'

हमारी जांच-पड़ताल के दौरान बालोद के नलकसा इलाका में भी हमें बुरा हाल दिखा.यहां नारंगसुर और हिड़कापार जैसे गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. यहां के जिला पंचायत सदस्य मिथिलेश निरोटी बताते हैं कि हम आवाज उठाते हैं पर वो जंगलों में कहीं खो जाती है. बिलासपुर के लोफंजी गांव की भी स्थिति बेहद चिंतनीय है. यहां फरवरी में अवैध शराब के जाल ने 9 लोगों की जान ले ली थी. यहां की ग्रामीण पूर्णिमा बताती हैं कि शिकायत करते हैं, कई बार करते हैं, लेकिन पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती, कुछ लोगों को पकड़ती है फिर छोड़ देती है. अब इसके साथ ही ये भी जान लेते हैं कि केन्द्र में पंचायती राज विभाग ने जो पंचायत उन्नति सूचकांक जारी किया है उसमें मूल्यांकन का पैमाना क्या है? 

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पंचायती राज मंत्रालय द्वारा जारी पीएआई रिपोर्ट बताती है कि गांवों में सरकारों को बहुत कुछ करना बचा है. मूलभूत और बुनियादी मुद्दों पर भी हमारी पंचायतों की हालत खराब है. गांवों के हालात सुधारने के लिए सरकार क्या कदम उठाएगी यह तो भविष्य में ही देखने को मिलेगा. 
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