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कानून भूल जब लालच की 'ट्रेडिंग' में उतरे वकील साहब, लगा लाखों का चूना !

कहानी युगल पटेल की है, उम्र 27, पेशे से अधिवक्ता. अप्रैल 2025 में उनकी मुलाकात हुई कोरबा निवासी छत्रपाल पटेल से, जिसने खुद को ‘ऑनलाइन ट्रेडिंग का माहिर खिलाड़ी' बताकर करोड़ों का मुनाफा दिलाने का दावा किया. छत्रपाल ने व्हाट्सएप पर फर्जी ऐप, नकली स्क्रीनशॉट और लुभावने ग्राफिक्स दिखाए और वकील साहब को यकीन हो गया.

कानून भूल जब लालच की 'ट्रेडिंग' में उतरे वकील साहब, लगा लाखों का चूना !

Korba Online fraud: ऑनलाइन ट्रेडिंग के नाम पर अधिवक्ता से 25.50 लाख की ठगी. ये सुनकर किसी को भी हैरानी हो सकती है. वजह साफ है- जब कोई किसान, मजदूर या भोला-भाला आदमी लालच में आकर फर्जी स्कीम का शिकार बन जाए तो लोग कह देते हैं- ‘अरे बेचारों को क्या पता'. लेकिन जब खुद वकालत करने वाला, अदालत में तर्क-वितर्क करने वाला, दूसरों को ठगों से बचाने की सलाह देने वाला अधिवक्ता ही जाल में फंस जाए तो मामला वाकई दिलचस्प हो जाता है.

'माया' की मायाजाल में फंसे वकील साहब!

कहानी युगल पटेल की है, उम्र 27, पेशे से अधिवक्ता. अप्रैल 2025 में उनकी मुलाकात हुई कोरबा निवासी छत्रपाल पटेल से, जिसने खुद को ‘ऑनलाइन ट्रेडिंग का माहिर खिलाड़ी' बताकर करोड़ों का मुनाफा दिलाने का दावा किया. छत्रपाल ने व्हाट्सएप पर फर्जी ऐप, नकली स्क्रीनशॉट और लुभावने ग्राफिक्स दिखाए और वकील साहब को यकीन हो गया. सोचिए जो अदालतों में हर सबूत को शक की नजर से देखता होगा, यहां स्क्रीनशॉट देखकर ही मोहित हो गया.

फ्रॉड के खाते में कर बैठे निवेश

इसके बाद 17 अप्रैल से 15 अगस्त के बीच पटेल परिवार के अलग-अलग बैंक खातों में वकील साहब ने 23.10 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए. इतना ही नहीं, 2.40 लाख रुपये नकद भी सीधे घर पर छत्रपाल को थमा दिए. यानी कुल रकम 25.50 लाख रुपये. अब इसे क्या कहेंगे- वकालत का अनुभव, भोलेपन की हद या लालच में अंधा हो जाने वाली कहावत का सच. 

जब चूना लग गया तो होश आया !

जब रकम वापस मांगने की बारी आई तो स्क्रिप्ट वही पुरानी निकली—‘लॉकिंग पीरियड'. और जब जांच की तो खुलासा हुआ कि बाजार में एक भी रुपया निवेश नहीं किया गया था. सारी रकम आराम से निजी खर्च में उड़ा दी गई. अब सकरी थाना पुलिस ने आरोपी छत्रपाल पटेल, उसकी मां गंगा पटेल, पिता मुरली मनोहर पटेल और भाई प्रकाश पटेल के खिलाफ धारा 3(5) BNS और 318(4) BNS के तहत केस दर्ज कर लिया है. यानी पूरा परिवार ही ‘ट्रेडिंग कंपनी' चला रहा था- फर्क बस इतना है कि ये कंपनी मुनाफे की नहीं, ठगी की थी. 

लालच और ओवरकॉन्फिडेंस का सबक

सोचिए, जिस अधिवक्ता का पेशा ही है दूसरों के लिए न्याय मांगना, वही अब खुद न्याय की गुहार लगा रहा है. और ठगों की चतुराई भी देखिए- एक ही नहीं, चार-चार अकाउंट में पैसे बंटवाए, जैसे कोई इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन कर रहे हों. कहावत है- लालच बुरी बला है, लेकिन यहां तो लालच के साथ-साथ ‘ओवरकॉन्फिडेंस' भी जुड़ गया. शायद अधिवक्ता साहब को लगा होगा कि ठगी सिर्फ आम जनता के साथ होती है, उनके साथ नहीं. पर ठगों की नजर में कोई आम-खास नहीं होता. स्कैम का फॉर्मूला एक ही है- जहां लालच, वहां जाल. अब सवाल ये है कि जब कानून जानने वाले खुद ही ऐसे जाल में फंस जाएं तो आम आदमी को कौन चेताएगा? सरकार सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक जागरुकता अभियान चला रही है, मगर धोखेबाज़ उतनी ही तेज़ी से नए- नए आइडिया गढ़ रहे हैं. और लोग? लोग अब भी सोचते हैं- थोड़ा रिस्क लूंगा, बड़ा फायदा मिलेगा. मगर हकीकत यही है कि फायदे का वादा करने वाले अक्सर आपकी जेब ही हल्की कर जाते हैं.

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