गरियाबंद जिला चिकित्सालय में सिविल सर्जन और बाबू ने मिलकर पिछले डेढ़ साल में 12 से 15 लाख रुपये से अधिक की राशि का गबन कर लिया है. इस बात की पृष्टि जिला चिकित्सालय के डॉक्टरों ने भी की है. हर बुधवार को मेडिकल बोर्ड की तरफ से सर्टिफिकेट बनवाने के लिए जिले भर से लोग जिला चिकित्सालय आते हैं. इसके लिए शासन ने प्रति सर्टिफिकेट 216 रुपये की राशि निर्धारित की है. इस राशि मे से आधी राशि यानी 108 रुपये जीवन दीप समिति के खाते में जमा किया जाता है और बाकी राशि मेडिकल बोर्ड के 10 सदस्य याने स्पेस्लिस्ट डॉक्टरों को मानदेय के तौर पर मिलती है.
रकम को लेकर कोई लेखा-जोखा नहीं
दरअसल, पिछले डेढ़ साल से सिविल सर्जन बी के नाग और बाबू अजय दुबे ने न ही जीवन दीप समिति के खाते में कोई राशि डाली है और न ही डॉक्टरों को मानदेय के तौर पर कोई राशि दी है. डॉक्टरों की मानें तो हर महीने लगभग 4 से 5 सौ लोग सर्टिफिकेट बनवा लेते है. पिछले डेढ़ साल में लगभग 7 हजार से अधिक लोग सर्टिफिकेट बनवा चुके है... लेकिन मामले में हैरान करने वाली बात है कि सिविल सर्जन और बाबू ने इसका कोई रिकार्ड नहीं रखा है. इस बात की शिकायत वरिष्ठ अधिकरियों से की है लेकिन कोई हल नहीं निकला है.
सर्टिफिकेट बनवाने के नाम पर ऐंठे पैसे
कुछ दिनों से लोगों को रसीद देना शुरू कर दिया गया है. सूत्रों की मानें तो प्रयास और नवोदय स्कूल के बच्चों के अलावा दिव्यांग बच्चों को निशुल्क सर्टिफिकेट बनाकर देना है. लेकिन उनसे भी 5-5 सौ रुपये की राशि वसूली की गई है. इस बारे में जब बाबू से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जो करना है कर लो.., कहा- इस दौरान वह नशे में था और सिविल सर्जन ने किसी तरह की कोई बात कैमरे में कहने से मना कर दिया. हालांकि पूरे मामले को लेकर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के.सी.उरांव ने जांच दल गठित कर दोषी के ऊपर कार्रवाई की बात कही है.
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