Chhattisgarh: बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में चुनाव को लेकर बहिष्कार की खबरें अक्सर सुनने को मिलती है. वहीं छत्तीसगढ़ के सुकमा में लोकतंत्र का हिस्सा बनने के लिए लोग धरना प्रदर्शन कर रहे है. सुकमा जिला मुख्यालय में गुरुवार को कई सारे ग्रामीणों ने मतदान बूथ की शिफ्टिंग के विरोध में एक दिवसीय धरना प्रदर्शन दिया. गांववासियों ने जिला तहसीलदार को मुख्य निर्वाचन अधिकारी के नाम से ज्ञापन सौंपा. ग्रामीणों की मांग है कि पोलिंग बूथ को गांव में पहले की तरह ही रखा जाए. शिफ्टिंग से मतदाताओं को बड़ी परेशानी होगी. मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए मतदाताओं को 10-15 किमी लंबा सफर तय करना होगा.
मतदान बूथ की शिफ्टिंग को लेकर भड़के लोग
दरअसल, सुकमा जिला प्रशासन ने मारोकी, गुफड़ी, गोंदपल्ली, गोंडेरास, डब्बा और पाण्डूपारा के मतदान केंद्रों को अतिसंवेदनशील बताते हुए शिफ्ट कर दिया है. बताए गए सभी मतदान बूथ में करीब 5 हजार से ज्यादा मतदाता हैं. ग्रामीणों का कहना है कि आदिवासी लोकतांत्रिक पर्व में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहते हैं लेकिन जिला व स्थानीय पुलिस प्रशासन की तरफ से माओवाद का डर दिखाकर वोट देने से वंचित किया जा रहा है. गांव के मतदाता गांव मेंं वोटिंग के लिए बहुत उत्सुक हैं.
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बुजुर्ग और महिला मतदाताओं को होगी परेशानी
ग्रामीणों ने बताया कि शिफ्टिंग मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए मतदाताओं को नदी-नाले और पहाड़ को पार कर पहुंचना पड़ेगा. युवा मतदाता किसी तरह केंद्रों तक पहुंच जाएंंगे लेकिन बुजुर्ग एवं महिलाओं को भारी परेशानी होगी. सभी मतदान केंद्रों को 10 से 15 किमी दूर शिफ्ट किया गया है जबकि ज्यादातर मतदान केंद्रों के पास पुलिस कैंप स्थापित किए गए हैं. ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि प्रशासन मंत्री कवासी लखमा को चुनाव में लाभ पहुंचाने के लिए मतदान केंद्रों को शिफ्ट किया रहा है.
2018 के चुनाव में यथावत थे पोलिंग बूथ...
आदिवासियों ने प्रशासन के निर्णय पर सवाल उठाते हुए बताया कि 2018 के विधान सभा चुनाव में पोलिंग बूथ यथावत थे. ग्रामीणों ने गांव में ही मतदान किया था लेकिन पांच साल में सरकार और प्रशासन, माओवाद को बैक फुट में धकेलने और अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने का दावा कर रही है. इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में माओवाद का डर क्यों दिखाया जा रहा है? पोलिंग बूथ के पास नए पुलिस कैंप क्यों खोले गए हैं?
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