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छत्तीसगढ़ शराब घोटाला: पूर्व IAS की 78 प्रॉपर्टी और करोड़ों की FD जब्त, जानिए क्या था पार्ट-B का खेल

Chhattisgarh Liquor Scam:छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में ED की बड़ी कार्रवाई. पूर्व IAS निरंजन दास समेत 31 अधिकारियों की 38.21 करोड़ की संपत्ति कुर्क. 78 आलीशान बंगले और 197 बैंक खाते सीज. जानें क्या था 'पार्ट-बी' का 2800 करोड़ का काला खेल.

छत्तीसगढ़ शराब घोटाला: पूर्व IAS की 78 प्रॉपर्टी और करोड़ों की FD जब्त, जानिए क्या था पार्ट-B का खेल

ED Action on Niranjan Das: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई में से एक को अंजाम दिया है. ED के रायपुर जोनल ऑफिस ने पूर्व आईएएस अधिकारी और तत्कालीन आबकारी कमिश्नर निरंजन दास समेत 31 आबकारी अधिकारियों की करीब 38.21 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति को प्रोविजनल तौर पर कुर्क (Attach) कर लिया है. जांच में खुलासा हुआ है कि इन अधिकारियों ने सरकारी तंत्र का इस्तेमाल कर खजाने को 2800 करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगाया है.

कमिश्नर की 'फिक्स इनकम': हर महीने 50 लाख की घूस

 ED की जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि पूर्व IAS निरंजन दास ने इस घोटाले से अकेले 18 करोड़ रुपये से ज्यादा की काली कमाई की. वह इस पूरे फ्रॉड को अंजाम देने के लिए हर महीने 50 लाख रुपये की बंधी-बंधाई रिश्वत लेते थे. कुल मिलाकर 31 अधिकारियों ने मिलकर सरकारी सिस्टम की आड़ में 89.56 करोड़ रुपये का अवैध मुनाफा कमाया.

जब्त संपत्तियों की फेहरिस्त: 

लग्जरी बंगले से लेकर म्यूचुअल फंड तक ED द्वारा कुर्क की गई संपत्तियों में अधिकारियों की वह विलासिता शामिल है, जो भ्रष्टाचार के पैसों से खड़ी की गई थी.

  1. अचल संपत्ति (21.65 करोड़): इसमें 78 बंगले, प्रीमियम कॉम्प्लेक्स में फ्लैट, कमर्शियल दुकानें और बड़ी मात्रा में कृषि भूमि शामिल है.
  2. चल संपत्ति (16.57 करोड़): अफसरों के 197 से ज्यादा बैंक अकाउंट्स, भारी-भरकम फिक्स्ड डिपॉजिट (FD), लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी, शेयर बाजार में निवेश और म्यूचुअल फंड्स को सीज किया गया है.

क्या था 'पार्ट-बी' का काला खेल? 

ED ने अपनी जांच में उस सिंडिकेट को बेनकाब किया है जिसने पूरे आबकारी विभाग को ही हाईजैक कर लिया था. निरंजन दास और एपी त्रिपाठी (तत्कालीन एमडी, CSMCL) ने मिलकर एक समानांतर आबकारी व्यवस्था खड़ी कर दी थी. इस खेल को 'पार्ट-बी' नाम दिया गया था. इसके तहत बिना किसी रिकॉर्ड के सरकारी दुकानों से कच्ची शराब बेची जाती थी. इसके लिए नकली होलोग्राम और बिना रजिस्ट्रेशन वाली बोतलों का इस्तेमाल होता था. फैक्ट्रियों से शराब सीधे दुकानों तक पहुंचती थी और बीच में सरकारी गोदामों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया जाता था. इस अवैध काम के लिए आबकारी अधिकारियों को प्रति केस 140 रुपये का फिक्स कमीशन मिलता था.
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