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Chhattisgarh High Court: जजों ने कहा- सूचना के अधिकार से बाहर नहीं EOW, ऐसे चली कानूनी लड़ाई?

Right to Information Act: छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा 7 नवंबर 2006 को एक अधिसूचना जारी कर छत्तीसगढ़ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को सूचना के अधिकार पर जानकारी देने से मुक्त कर दिया गया था. जिस पर आरटीआई एक्टिविस्ट ने चुनौती देते हुए कहा था कि छत्तीसगढ़ सरकार की यह संस्था छत्तीसगढ़ राज्य में भ्रष्टाचार से संबंधित प्रकरणों की ही जांच करती है. इस तरह इस संस्था को सूचना के अधिकार से मुक्त नहीं किया जा सकता.

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Chhattisgarh High Court: जजों ने कहा- सूचना के अधिकार से बाहर नहीं EOW, ऐसे चली कानूनी लड़ाई?

Chhattisgarh High Court Order: आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (Economic Offences Wing) यानी ईओडब्ल्यू अब सूचना के अधिकार के दायरे में आयेगा, ईओडब्ल्यू (EOW) सूचना के अधिकार (Right to Information) यानी RTI से बाहर नहीं है, ऐसा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (Chhattisgarh High Court) का कहना है. हाल ही में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के दो जजों की खंड पीठ ने एक रिट याचिका को लेकर फैसला सुनाते हुए यह कहा है. फैसले में कहा गया है कि ईओडब्ल्यू को सूचना के अधिकार पर सारी जानकारी देनी होगी, ईओडब्ल्यू इससे बाहर नहीं है. ईओडब्ल्यू राज्य की एक ऐसी संस्था है, जिसमें आर्थिक अपराध से जुड़े मामलों की जांच होती है.

वर्षों से लंबित पड़े हैं मामले

राज्य की इस संस्था में कई बड़े चेहरे जैसे आईएएस (IAS Officers) और आईपीएस (IPS Officers) अधिकारियों से जुड़े मामले सालों से लंबित पड़े हैं. ईओडब्ल्यू इससे पहले आरटीआई के तहत जानकारी नहीं देता था, क्योंकि 2006 में राज्य सरकार (Chhattisgarh Government) ने एक अधिसूचना के तहत छत्तीसगढ़ आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (Chhattisgarh Economic Offenses Investigation Bureau) को सूचना के अधिकार पर जानकारी देने से मुक्त कर दिया था.

चिरमिरी निवासी आरटीआई कार्यकर्ता (RTI Activist) राजकुमार मिश्रा ने इस मामले को हाई कोर्ट में चुनौती दी. मिश्रा द्वारा लगाई गई रिट याचिका (Writ Petition) पर हाई कोर्ट ने हाल ही में अपना फैसला सुनाया है.

हालांकि कोर्ट के फैसले के पहले चली प्रोसिडिंग में राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने भी दलील दिए, लेकिन कोर्ट की खंड पीठ के सामने उनकी एक न चली. हाई कोर्ट के फैसले के बाद जहां सोशल एक्टिविस्ट खुश हैं, तो वहीं राज्य के बड़े चेहरे जिनके खिलाफ ईओडब्ल्यू में मुकदमे चल रहे हैं, वह इस आदेश से चुप्पी साधे हुए हैं.

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लंबी चली कानूनी लड़ाई

छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा 7 नवंबर 2006 को एक अधिसूचना जारी कर छत्तीसगढ़ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को सूचना के अधिकार पर जानकारी देने से मुक्त कर दिया गया था. उसके बाद आरटीआई कार्यकर्ता ने 15 नवंबर 2016 को सूचना का अधिकार पर एक आवेदन प्रस्तुत कर छत्तीसगढ़ सरकार के राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो से कुछ जानकारियां चाही. इस संस्था ने इस आधार पर जानकारी देने से इनकार कर कह दिया गया कि 7 नवंबर 2006 को राज्य सरकार ने उसे सूचना के अधिकार पर जानकारी प्रदान करने से मुक्त कर दिया है.

इस अधिसूचना को आरटीआई कार्यकर्ता मिश्रा ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के खंडपीठ के समक्ष यह कहते हुए चुनौती दी कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 24 की उपधारा 4 में उल्लेख है कि भ्रष्टाचार और मानव अधिकारों के हनन से संबंधित सूचना देने से किसी भी संस्था को मुक्त नहीं किया जा सकता.

छत्तीसगढ़ सरकार की यह संस्था छत्तीसगढ़ राज्य में भ्रष्टाचार से संबंधित प्रकरणों की ही जांच करती है. इस तरह इस संस्था को सूचना के अधिकार से मुक्त नहीं किया जा सकता.

इसके बाद छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के खंडपीठ के नोटिस जारी करने पर राज्य सरकार के द्वारा इस रिट याचिका में जवाब प्रस्तुत किया गया. अंतिम सुनवाई के समय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के खंडपीठ के द्वारा यह आदेश किया गया कि याचिकाकर्ता जनहित याचिकाएं प्रस्तुत करने के मामले में नए व्यक्ति नहीं है, इस कारण उनकी यह याचिका निरस्त की जाती है. उसके बाद आरटीआई कार्यकर्ता ने इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया.

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में विशेष अनुमति याचिका प्रस्तुत करने पर सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा याचिकाकर्ता कि इस याचिका को स्वीकार कर लिया गया और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय को निर्देश दिया गया कि इस प्रकरण में फिर से सुने. सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के आधार पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के द्वारा इस याचिका की सुनवाई खंडपीठ तीन में की गई इसमें जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल के द्वारा याचिका को सुना गया और आदेश को 8 फरवरी 2024 को रिजर्व कर लिया गया. इस आदेश को 07 मार्च 2024 को खुली अदालत में जारी किया गया.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के खंडपीठ ने स्पष्ट निर्देश दिया कि छत्तीसगढ़ सामान्य प्रशासन विभाग 7 नवंबर 2006 को जो अधिसूचना जारी कर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को सूचना के अधिकार पर जानकारी प्रदान करने से मुक्त किया था, वह त्रुटिपूर्ण है. भ्रष्टाचार और मानव अधिकारों के हनन से संबंधित सूचना देने से इस तरह के संस्था को मुक्त नहीं किया जा सकता, इसलिए इस आदेश के तीन सप्ताह के भीतर छत्तीसगढ़ सामान्य प्रशासन विभाग इस अधिसूचना में आवश्यक संशोधन कर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को सूचना के अधिकार के दायरे में लाए.

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को निर्देश दिया है कि आरटीआई कार्यकर्ता के द्वारा 15 नवंबर 2016 में प्रस्तुत किए गए सूचना के अधिकार का आवेदन का जवाब आज की स्थिति में इस आदेश के चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को प्रदान करें. इस निर्देश के साथ यह याचिका छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के खंडपीठ के द्वारा स्वीकार कर ली गई है.

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