![Chhattisgarh: खुद दिव्यांग लेकिन 500 महिलाओं को बना दिया आत्मनिर्भर, जानें इनके संघर्ष की कहानी Chhattisgarh: खुद दिव्यांग लेकिन 500 महिलाओं को बना दिया आत्मनिर्भर, जानें इनके संघर्ष की कहानी](https://c.ndtvimg.com/2024-03/q2q7ui_krishna-didi_625x300_08_March_24.jpg?downsize=773:435)
Women's Day Special Story:छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) जिले की दिव्यांग महिला विजया ने अपना जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया है. वह अकेले ही लगभग 500 महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं. शहरी आजीविका मिशन (Urban Livelihood Mission) के साथ जुड़कर विजया ने 35 से भी ज्यादा सेल्फ हेल्पिंग ग्रुप का पंजीयन कराया है. इन समूह में कई दिव्यांग भी अब आत्मनिर्भर बन रहे हैं.
बचपन के दृश्य ने बदल दिया जीवन
बचपन से ही दिव्यांग होने के कारण विजया चलने फिरने में असमर्थ थी. वह बताती हैं कि स्कूल जाने के दौरान ही उन्होंने ऐसे व्यक्ति को देखा जो की दिव्यांग होने के कारण एक ही जगह पर बैठा हुआ था. व्यक्ति को असहाय देखकर विजया के मन पर ऐसा असर हुआ कि उन्होंने समाज सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. विजया बताती है कि वह घर में सबसे छोटी बेटी थी इसके अलावा उनकी तीन बड़ी बहनें और हैं. क्योंकि पिता का साथ बचपन में ही छूट गया था और घर के आर्थिक स्थिति भी खराब थी. 25 पैसे की पेन की निब खरीदने के लिए भी सोचना पड़ता था. इस कारण विजया ने 12वीं तक की पढ़ाई ही पूरी की. लेकिन परिवार के प्रति उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई मां की सेवा करने के साथ ही उन्होंने अपनी बहनों को आगे पढ़ाया.
500 महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
विजया ने स्कूल के दिनों के बाद से ही दिव्यांगों के अधिकार और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं के लिए लड़ना शुरू कर दिया था. क्योंकि वह बेबाकी से अपनी बात रखती थी. इस कारण उन्हें दिव्यांग मंच का जिला और फिर संभाग स्तरीय नेतृत्व करने का अवसर मिला. समाज सेवा के लिए कुछ कर गुजरने की चिंगारी को यहां हवा मिल गई थी. साल 2019 में शहरी आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कार्य करना शुरू किया. साल 2019 से लेकर 2024 तक विजया ने 35 से ज्यादा स्वयं सहायता समूह बनवा दिए गए. इन स्वयं सहायता समूह में मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली महिलाएं और दिव्यांग शामिल थे. अगर आंकड़े के हिसाब से देखा जाए तो इन समूह में लगभग 500 महिलाओं को शामिल किया गया था. सरकारी योजनाओं के माध्यम से इन्हें सिलाई, कढ़ाई , साबुन , मोमबत्ती एलईडी , बल्ब , अचार, पापड़, बड़ी आदि बनाने का प्रशिक्षण दिलाने के बाद बैंक से आर्थिक सहायता और काम का ऑर्डर भी दिलाने की पहल शुरू की गई. वर्तमान में स्वयं सहायता समूह को आर्थिक सहायता मिलने से महिलाएं भी अब आत्मनिर्भर बनी है.
गवर्नर से हो चुकी है सम्मानित
विजया शुरू से ही बेबाकी से महिलाओं और दिव्यांगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाती रही हैं. यही कारण है कि आसपास के क्षेत्र में यह काफी लोकप्रिय है. लोग इन्हें कृष्णा दीदी के नाम से जानते हैं. कृष्णा को बीते कुछ सालों में उत्कृष्ट समाज सेविका दिव्यांगों के हितों की रक्षा करने सहित कई छोटे-बड़े अवॉर्ड मिल चुके हैं. वह बताती हैं कि यह सम्मान सभी दिव्यांगों के लिए है जो कुछ करना चाहते हैं. 24 मार्च 2022 को विजया रानी कृष्णमूर्ति पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके के द्वारा सम्मानित हो चुकी हैं. वही छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने भी कई बार कृष्णा दीदी के कार्यों के लिए इन्हें सम्मानित किया है.
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क्या कहती हैं समूह की महिलाएं
नई पहल समूह की सुमित्रा बताती हैं कि वह जन्म से ही दिव्यांग है. दोनों नेत्र से उन्हें दिखाई नहीं देता है. कृष्णा दीदी के द्वारा उन्हें स्वयं सहायता समूह में जोड़ा गया है. अब वे अपनी योग्यता से मिठाई के डिब्बे पैक करना और कागज के ठोंगे बनाने जैसे काम करेंगी. डोमनहिल निवासी कुमकुम मिश्रा बताती है कि लक्ष्य स्वयं सहायता समूह के द्वारा उन्हें₹10000 की आर्थिक सहायता मिली साथ ही सिलाई के काम से समूह की महिलाओं की आमदनी हो रही है.वह 2000 से 3000 रुपए कमा लेती हैं. लक्ष्य स्वयं सहायता समूह की सचिव मुस्कान बताती है कि कृष्णा दीदी ने उन्हें स्वयं सहायता समूह से जोड़ा था. सिलाई का काम सीखने के बाद अब वह भी समूह के साथ कमाई करने लगी है.