छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में एक गांव है, गमपुर...यह गांव वैसे तो बीजापुर जिले में स्थित है, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल में स्थित ऊंची-ऊंची पहाड़ियों को पार कर जाना होता है. यह गांव आज भी शासन और उसकी योजनाओं से कोसों दूर है. यहां पहुंचने के लिए पगडंडी की मदद लेनी होती है. लेकिन हम आज जिस घटना का आपसे जिक्र कर रहे है हैं उसे जानकर आप और भी चौंक जाएंगे. जी हां...यहां एक शव पिछले तीन सालों से कब्र में अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहा है और एक मां को न्यायलय पर भरोसा है और पूरी उम्मीद कि कभी न कभी उन्हें इंसाफ जरूर मिलेगा.
न्याय के उम्मीद में बैठी मां...
बस्तर में कई ऐसे एनकाउंटर हुए, जिनपर ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पुलिस के जवानों के द्वारा निहत्थे ग्रामीणों की केवल माओवादी होने के शक में गोली मारकर हत्या कर दी गई. ऐसे आरोपों के बाद इन एनकाउंटर्स की न्यायिक जांच भी हुई और मुठभेड़ फर्जी साबित भी हुए. इसी से बस्तर के ग्रामीणों में न्याय के प्रति उम्मीद जगी है और यही वजह है कि दंतेवाड़ा में लोहा उगलने वाली पहाड़ियों के पीछे से न्याय की उम्मीद में बैठी एक मां की कहानी निकल कर सामने आई है, जो तीन साल बीत जाने के बाद भी अपने बेटे के शव को केवल इसलिए संभाल कर रखी है कि कभी न कभी इस मामले की जांच होगी. उसके बेटे के शव का फिर से पोस्टमॉर्टम होगा और उसे न्याय मिलेगा.
अब जानते हैं पूरा मामला?
यह घटना 19 मार्च, 2020 की है. परिजन कहते हैं, "गमपुर गांव का एक युवक जिसका नाम बदरू माड़वी था. वह अपने छोटे भाई सन्नू के साथ जंगल की ओर महुआ बीनने जा रहा था. इसी दौरान जवानों की एक टुकड़ी भी जंगलों में माओवादियों की तलाश में पहुंची थी. जवानों की नजर बदरू और उसके भाई सन्नू पर पड़ी तो उन्होंने दोनों भाइयों को नक्सली समझ कर उनपर गोलियां बरसानी शुरू कर दी. अचानक चली गोली के बीच बदरू संभल नहीं पाया और जवानों का निशाना बन गया. उसके ठीक पीछे चल रहा छोटा भाई सन्नू गड्ढे में कूद गया, जिससे उसे गोली नहीं लगी और जान बच गई. उसने सुरक्षाबलों के हाथों अपने भाइयों को छलनी होते देखा."
पुलिस के दावे अलग, ग्रामीणों की राय अलग
ग्रामीणों ने कहा, "सन्नू ने पूरी घटना गांव पहुंच कर लोगों को बताई. जब तक ग्रामीण घटनास्थल पहुंचते, जवान बदरू के शव को अपने साथ ले जा चुके थे. पुलिस ने इस घटना को नक्सलियों और जवानों के बीच बड़ी मुठभेड़ बताया और बदरू की मौत को सुरक्षाबलों की कामयाबी. यह भी बताया कि बदरू पर लाखों रुपए का इनाम घोषित था. दरअसल बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों के हालात इसी तरह हैं, कि यहां बाहर से आने वाले सभी को हर ग्रामीण नक्सल संगठन का सदस्य या सहयोगी ही नजर आता है, जिसका खामियाजा उन्हें समय-समय पर भुगतना पड़ता है."
शव को अंतिम संस्कार का इंतजार...
बदरू भले ही पुलिस की नजर में नक्सली हो, लेकिन उसके परिवार और उसकी मां की नजर में वह निर्दोष है. बदरू की मां माडवी मारको अपने बेटे की हत्या से सदमे हैं. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि जिस तरह से बस्तर में हुए अन्य फर्जी मुठभेड़ों की जांच की गई है, यदि उसके पुत्र की हत्या मामले की फाइल भी फिर से खुले तो कभी न कभी उसे भी इंसाफ मिलेगा. इसी उम्मीद के साथ बदरू की मां ने अपने बेटे के शव का अंतिम संस्कार नहीं किया और उसे अब तक संभाल रखा है.
3 साल बाद भी शव सुरक्षित कैसे?
गांव में कोई ऐसी सुविधा तो नहीं है, जिससे शव को संभाल कर रखा जा सके. लेकिन गांव वालों ने मां की भावना का सम्मान करते हुए बदरू के शव को पारम्परिक तरीके से सहेज कर रखने की कोशिश की है. इसके लिए उन्होंने गांव के ही बगल श्मशान के पास एक 6 फ़ीट का गड्ढा खोदा और उसमे बदरू के शव को जंगल से जड़ी बूटी लेकर उसका लेप लगाकर सफेद कपड़े में लपेट कर रखा है. घटना को आज तीन बरस बीत गए हैं और शव पूरी तरह कंकाल में बदल गया है. लेकिन बदरू की मां माडवी मारको की उम्मीद अभी भी जिन्दा है। उम्मीद ये कि कभी न कभी अदालत के कानों तक उसकी गुहार पहुंचेगी. जांच होगी और बदरू निर्दोष साबित होगा. माड़वी मारको कहती हैं पिता की मौत के बाद घर में बतौर पुरुष बदरू ही सबसे बड़ा था. जिसके कंधों पर परिवार चलाने का दारोमदार था. लेकिन वो पुलिस की गोलियों का शिकार बन गया.
"नक्सलवाद के नाम पर मेरे बेटे की हत्या..."
बदरू के शव को अभी तक रखने के सवाल पर माडवी मारको की आंखें डबडबा उठीं. वो कहती हैं, "पुलिस बेवजह ग्रामीणों की हत्या कर रही है. नक्सलवाद के नाम पर बदरू की भी हत्या कर दी गई. जब तक इस मामले को न्यायालय द्वारा संज्ञान में नहीं लिया जाएगा तब तक शव का अंतिम संस्कार नहीं करेंगी."
"पुलिस ने सबकुछ बर्बाद कर दिया"
पोदी का कहना है कि पुलिस ने उसका सब कुछ बर्बाद कर दिया. आज घर की जिम्मेदारी उठाने वाला कोई भी नहीं है. घर की छोटी बड़ी जरूरतों के लिए और घर खर्च के लिए भी उसे ही जद्दोजहद करनी होती है. पोदी आगे ककहती है, उसका सबकुछ लुट चुका है. पर न्याय पर अब भी भरोसा है. मामले की जांच हो और दोषी पुलिस वालों को जेल भेजा जाए. ताकि आगे कोई बदरू न बने.
"यह पहली घटना नहीं..."
गांव के ही एक युवा अर्जुन कड़ती का कहना है कि बदरू की हत्या गांव के लिए कोई पहली घटना नहीं है. उन्होंने अपनी आपबीती बताते हुए कहा कि ऐसी ही घटना उनके परिवार में भी हो चुकी है. 2017 में उनके बड़े भाई भीमा कड़ती और उनकी साली जो कि अपनी बच्ची के छट्ठी के कार्यक्रम की तैयारी के लिए बाजार गए हुए थे, उन्हें भी पुलिस ने मारकर नक्सली घोषित कर दिया था.
न्यायलय के आदेश का इंतजार....
बस्तर में लम्बे समय से आदिवासियों के हक़ की आवाज उठाने वाली सामाजिक कार्यकर्त्ता सोनी सोरी ने बताया, बदरू के शव को न्याय की उम्मीद में सुरक्षित रखा गया है. उन्होंने इस मामले को अपने साथी वकीलों के माध्यम से हाईकोर्ट तक पहुंचाने की कोशिश की है. अब इस मामले में न्यायलय के आदेश का इंतजार है. सोनी सोरी मुताबिक बस्तर में नक्सलवाद के नाम पर लम्बे समय से हजारों आदिवादियों पर अत्याचार किया गया है और हत्याएं भी की गई हैं. समय-समय पर हमने सभी मामलों को उच्च न्यायलय तक पहुंचाया है, फिर चाहे वह सारकेगुड़ा में बीज पंडुम मन रहे आदिवासियों की हत्या का मामला हो या गोमपाढ में मड़कम हिड़मे नमक युवती की हत्या और अन्य मामला हो, पर बीते कुछ दिनों से जिस तरह से न्यायलय द्वारा बस्तर के कई ऐसे मामले, जिनमें आदिवासियों पर अत्याचार हुए हैं उन्हें ख़ारिज कर दिया गया है. इसे देखते हुए गमपुर के मामले में भी कुछ निराशा आई है. लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी है.
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