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31 Naxalite Killed: बस्तर में इकट्ठा हुए 70 से अधिक नक्सली, गांव से आ रही थी रसद...और यही बना मौत कारण

Chhattisgarh Naxalite Encounter: शुक्रवार, 4 अक्टूबर को बस्तर जिले में सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में कुल 31 नक्सली मार गिराए थे. बड़ी बात यह थी कि मुठभेड़ से पूर्व बस्तर में जमा 70 से अधिक नक्सलियों को भनक तक नहीं लगी. बस्तर के इतिहास में सुरक्षाबलों ने नक्सली संगठनों को सबसे बड़ा नुकसान पहुंचा दिया.

31 Naxalite Killed: बस्तर में इकट्ठा हुए 70 से अधिक नक्सली, गांव से आ रही थी रसद...और यही बना मौत कारण
माड़ के पहाड़ी जंगलों में इकट्ठा हुए नक्सली (फाइल फोटो)

31 Naxalite Killed In Baster: छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद को मार्च 2026 तक खत्म करने के केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दावे के बीच गत शुक्रवार को बस्तर पुलिस ने 31 नक्सलियों को मार गिराया. ताजा खुलासा हुआ है कि नक्सलियों के लिए सबसे महफूज इलाके बस्तर जिले में घटना वाले दिन 70 से अधिक नक्सली मौजूद थे, जो किसी बड़ी घटना को अंजाम देने के लिए वहां इकट्ठा हुए थे.

शुक्रवार, 4 अक्टूबर को बस्तर जिले में सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में कुल 31 नक्सली मार गिराए थे. बड़ी बात यह थी कि मुठभेड़ से पूर्व बस्तर में जमा 70 से अधिक नक्सलियों को भनक तक नहीं लगी. बस्तर के इतिहास में सुरक्षाबलों ने नक्सली संगठनों को सबसे बड़ा नुकसान पहुंचा दिया.

मुठभेड़ के दूसरे दिन ग्राउंड जीरो पर पहुंची एनडीटीवी की टीम

रिपोर्ट के मुताबिक मुठभेड़ वाले दिन माओवादियों के पूर्व बस्तर और अबूझमाड़ डिवीजन इलाके के एसजेडसीएम और डीवीसीएम रैंक के नक्सलियों की बड़ी टीम माड़ के पहाड़ी क्षेत्र में मीटिंग के लिए इकट्ठा हुए थे. सुरक्षाबलों को मुखबिर के माध्यम से नक्सिलयों के जमावड़े का पता चल गया और हमला कर 31 नक्सलियों को मौत के घाट उतार दिया.

बड़ी संख्या में नक्सलियों के जमावड़े पर फोर्स ने किया हमला

बताया जाता है कि माड़ के पहाड़ी क्षेत्र में मीटिंग के लिए करीब 70 से अधिक नक्सली इकट्ठा हुए थे. वहां नक्सलियों के लिए खाने-पीने के इंतजाम के लिए मिलिशिया कैडर्स द्वारा आसपास के इलाकों से बड़ी मात्रा में राशन इकट्ठा किया जा रहा था. यह सूचना फोर्स तक पहुंची, इसके बाद फोर्स ने बड़ा एंटी नक्सल ऑपरेशन लांच किया.

मुठभेड़ वाले दिन नक्सली बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में खुल रहे नए पुलिस कैंप से माओवादी संगठन पर पड़ रहे असर,  सुरक्षाबलों को माड़ इलाके में घुसने से रोकने और 21 सितंबर से 30 अक्टूबर तक मनाए जा रहे पीपुल्स वॉर और एमसीसी के विलय की 20वीं वर्षगांठ पर बड़े आयोजन पर चर्चा के लिए इकट्ठा हुई थी.

सुरक्षाबलों का पहला मुठभेड़ सुबह नारायणपुर टीम के साथ हुआ

छ्त्तीसगढ़ में नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित इलाके के रूप में पहचान बना चुके अबूझमाड़ नक्सलियों के महफूज नहीं रह गए हैं. अबूझमाड़ के जंगल में बड़ी संख्या में नक्सलियों के होने की सूचना पुख्ता होते ही सुरक्षाबलों ने ठोस रणनीति  के तहत नक्सलियों को ऐसे घेरा कि उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी. माड़ की पहाड़ियों में करीब 6 स्थानों पर मुठभेड़ हुआ.

एकाएक हुई फायरिंग में कई बड़े नक्सली लीडर शिकार हो गए

फोर्स मौके को खाली हाथ जाने देना नहीं चाहती थी, क्योंकि एक ही जगह पर इतनी बड़ी संख्या में नक्सली आमतौर पर कभी इकट्ठा नहीं होते हैं. पहला मुठभेड़ थुलथुली गांव के करीब जंगल में नारायणपुर जिले से निकली पुलिस पार्टी के साथ हुआ. एकाएक हुए फायरिंग से नक्सली कुछ समझ पाते कि कई बड़े नक्सली लीडर शिकार हो गए.

1500 से ज्यादा जवान नक्सलियों को चारों ओर घेर लिया था

क्सली मोर्चा संभालने पेड़ों और पहाड़ी का सहारा लिया, लेकिन सुरक्षाबलों की गोलियों का शिकार होने से खुद को नहीं बचा सके, क्योंकि नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिले से निकले करीब 1500 से ज्यादा जवान उन्हें चारों ओर घेर लिया था. माओवादियों व सुरक्षाबलों के बीच गोलीबारी हुई, लेकिन STF, DRG और बस्तर बटालियन के जवान उन पर भारी पड़े.  

अब तक प्रशासन की पहुंच से दूर था पहाड़ी क्षेत्र माड़ इलाका

उल्लेखनीय है गत 4 अक्टूबर को सुरक्षाबलों ने अबूझमाड़ के थुलथुली, मेंदूर, इतावाड़ा और गेवाड़ी के जंगल में  माओवादियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए 31 नक्सलियों को ढेर कर दिया था. जिस माड़ को माओवादियों का गढ़ माना जाता है, लेकिन अब तक सरकार और प्रशासन की पहुंच से दूर इलाके पर सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को मार गिराया.

माड़ के जंगलों में ट्रेनिंग कैंप और विभिन्न गतिविधि चलाते थे नक्सली

माओवादी माड़ के जंगलों में ट्रेनिंग कैंप और विभिन्न नक्सली गतिविधियों और सुरक्षाबलों के खिलाफ रणनीति तैयार करते हैं. लंबी पहाड़ों की श्रृंखला के बीच बसे इन गांवों में सुरक्षाबलों के अलावा अन्य किसी के पैर नहीं पड़े हैं. आदिवासी अपने जीवन यापन के लिए पहाड़ों में ही खेती कर रहे हैं, क्योंकि वहां तक सरकारी राशन तक नहीं पहुंचता है.

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