Naxal in India: देश के विभिन्न राज्यों के अपने गांव, शहर या कस्बे से निकलकर और अपनों को छोड़कर जंगल की कठिन जिंदगी नक्सल मोर्चों पर तैनात केंद्रीय सुरक्षा बलों (central security forces) के जवानों पर भारी पड़ रही है. ड्यूटी भी ऐसी जहां न सोने का निर्धारित समय है न खाने का. इसके अलावा हर वक्त नक्सल हमले (Naxal Attack)का मंडराता खतरा सीधे उनके दिल पर असर डाल रहा है. यही वजह है कि पिछले 5 साल में जहां नक्सल हमले में 145 जवान शहीद हुए हैं तो वहीं हार्ट अटैक से 577 जवानों की जानें गई हैं. इसमें खास बात ये है कि नक्सल हमले में शहीद जवानों में राज्य के पुलिस बल के जवान भी शामिल हैं.ये जानकारी खुद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Rai)ने भी बीते दिनों लोकसभा में दी थी.
दरअसल छत्तीसगढ़ समेत ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व तेलंगाना (Odisha, Jharkhand, West Bengal, Maharashtra, Andhra Pradesh and Telangana) के घने जंगल और उबड़-खाबड़ भरी पथरीली धरती नक्सलियों के लिए पनाहगाह बनी हुई हैं. छत्तीसगढ़ की बात करें तो बस्तर संभाग के बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और कांकेर के अलावा धमतरी, गरियाबंद, राजनांदगांव, मोहला-मानपुर चौकी जैसे जिलों में केंद्रीय सशस्त्र बलों जैसे सीआरपीएफ,बीएसएफ,आईटीबीपी,एसएसबी और सीआईएसएफ के जवान तैनात हैं.नक्सलियों से लड़ाई में ये जवान बहादुरी दिखा रहे हैं, लेकिन लंबी ड्यूटी, अनिश्चित हालात,कई-कई दिनों तक चलने वाले ऑपरेशन और पारिवारिक चिंताओं के कारण वे मानसिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं. इन दबावों के बीच वे आंतरिक रूप से खुद से जूझ रहे हैं और अक्सर इस मानसिक जंग में हार जाते हैं. नतीजा हार्ट अटैक और मौत. इसके अलावा वे कई दूसरी समस्याओं से भी जूझ रहे हैं, जिनमें से अधिकांश का कारण मानसिक ही सामने आया है.
शहादत से ढाई गुना से ज्यादा है हार्ट अटैक से मौत
हार्ट अटैक के मामले सुरक्षा बलों के जवानों में लगातार सामने आ रहे हैं. एक ओर जहां इन जवानों और राज्य के पुलिस जवानों को मिलाकर साल 2019 से 2021 तक 145 की शहादत हुई थी. इसी अवधि में केंद्रीय बलों के 343 जवानों की शहादत हुई. यानी ढाई गुना से भी ज्यादा. वहीं 5 सालों में ये आंकड़ा 577 तक पहुंच जाता है. (AI के सौजन्य से तस्वीर)
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