
Naxalite Ramchandra Reddy: भारत में प्रतिबंधित माओवाद संगठन के क्रूर नेताओं में से एक माड़वी हिड़मा को जिसके विकल्प के रूप में दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी की जिम्मेदारी दी गई हो, वो खुद माओवाद संगठन के लिए कितना महत्वपूर्ण रहा होगा? बस्तर संभाग के नारायणपुर पुलिस मुख्यालय में 23 सितंबर को एक बड़ा वर्ग इसी बात पर चर्चा कर रहा था.
पुलिस आईजी सुंदरराज पी की प्रेस कॉंफ्रेंस को कवर कर रहे बस्तर के हमारे साथी विकास तिवारी कहते हैं कि 22 सितंबर को अबूझमाड़ के जंगलों में सुरक्षा बलों से माओवादियों की भीषण मुठभेड़ की सूचना थी, बाद में माओवादियों के केन्द्रीय समिति के 2 नेताओं को मारने की पुष्टि हुई, लेकिन केन्द्रीय समिति के सदस्यों के साथ किसी नीचले कैडर के हताहत न होना भी चर्चा का विषय रहा.
दरअसल पुलिस ने बीते सोमवार को छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र सीमा पर अबूझमाड़ के जंगलों में मुठभेड़ में माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के दो सदस्यों राजू दादा उर्फ कट्टा रामचंद्र रेड्डी और कोसा दादा उर्फ कादरी सत्यनारायण रेड्डी मारने का दावा किया. यह पहली बार है, जब सेंट्रल कमेटी के दो सदस्य एक साथ मारे गए. यह भी पहली बार हुआ है, जब किसी मुठभेड़ में माओवादियों का एक भी सामान्य कैडर नहीं मारा गया.
माओवादियों का थींक टैंक था
नारायणपुर के कोकामेटा थाना क्षेत्र में हुई इस मुठभेड़ में मारे गए कट्टा रामचंद्र रेड्डी को माओवादियों का थींक टैंक भी कहा जाता था. 63 वर्षीय इस माओवादी नेता रामचन्द्र को रमेश उर्फ विजय उर्फ गुडसा उसेंडी उर्फ सुनील चौधरी उर्फ विकल्प समेत अन्य नामों से भी जाना जाता था. माओवादी दुनिया की पड़ताल पर आधारित एक चर्चित किताब 'उसका नाम वासु नहीं' का 'नायक' या यूं कहें कि उस किताब का वासू रामचन्द्र रेड्डी ही थे.
'उसका नाम वासु नहीं' के लेखक शुभ्रांशु चौधरी उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं बात साल 1988-89 की है. रायपुर में पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी के करीब एक कॉफी हाउस में मैं नियमित अपने एक जान-पहचान वाले से मिलने जाया करता था. वहीं पर पहली बार मेरी मुलाकात 'वासु' से हुई. तब उसने मुझे अपना नाम विजय बताया था.'
लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान के लिए रिपोर्टिंग करने वाले शुभ्रांशु कहते हैं कि माओवाद संगठन को जानने में मेरी रुचि और फिर उनकी दुनिया की पड़ताल वासु उर्फ रामचन्द्र की वजह से ही हुई. मूलत: तेलंगाना के करीमनगर जिले के तेगलुकुंटपल्ली गांव में जन्मे कट्टा रामचंद्र रेड्डी ने युवा अवस्था में ही उन्हें बताया था कि उनकी दादी के हिस्से की जमीन उनके गांव के प्रभावशाली जमींदारों ने जबरदस्ती हथिया ली थी, उनकी दादी ने उसका विरोध किया, जिससे वे प्रभावित हुए. रायपुर में मुलाकात के दौरान मुझे इसका बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि पढ़ने-लिखने में काफी रुचि रखने वाला लड़का विजय माओवाद संगठन का बड़ा नेता है.'
शिक्षक की नौकरी से की थी शुरूआत
रामचन्द्र रेड्डी के बारे में पड़ताल करने पर पता चलता है कि उन्होंने एक साधारण ग्रामीण जीवन से शुरुआत की थी. रामचंद्र रेड्डी के माता-पिता वज्रव्वा और मल्लारेड्डी किसान थे. रामचंद्र रेड्डी ने कोहेड़ा से 10वीं, सिद्दीपेट से डिग्री और वारंगल से टीचर्स ट्रेनिंग पूरी की. बाद में रामचंद्र रेड्डी ने पेंचिकलपेट के एक सरकारी स्कूल में स्कूल ग्रेजुएट टीचर के रूप में करियर की शुरुआत की. लेकिन 1989 में शिक्षक की नौकरी छोड़ दी और अपनी पत्नी शांतिप्रिया के साथ माओवादी संगठन पीपुल्स वार ग्रूप में काम करना शुरु कर दिया.
रामचंद्र रेड्डी ने नांदेड़ जाकर कानून की पढ़ाई की और माओवादी संगठन के लिए कानूनी सलाहकार के रूप में काम करना शुरू किया. कुछ समय बाद वह रायपुर में एक 'डेन कीपर' की भूमिका में काम किया और 2007 तक किसी को भनक नहीं लगी कि रामचंद्र रेड्डी मूलतः माओवादियों का एक बड़ा नेता है.
रामचन्द्र की पत्नी शांतिप्रिया उर्फ मालती छत्तीसगढ़ के ही दुर्ग जिले के भिलाई के फरीद नगर में लंबे समय तक रही. इनके एक बेटे और बेटी की स्कूली शिक्षा भिलाई में ही हुई.
पत्नी को पुलिस ने किया था गिरफ्तार
शुभ्रांशु बताते हैं कि 'रामचन्द्र करीब 20 वर्षों तक माओवाद संगठन के अर्बन नेटवर्क के तौर पर काम करते रहे. साल 2007 में जब बस्तर में सलवा जुडूम अपनी चरम पर था, उसी दौरान माओवाद संगठन में भी बड़े पैमाने पर भर्तियां हो रहीं थीं. साल 2007 में ही पुलिस ने रामचन्द्र रेड्डी की पत्नी मालती को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद से माओवादियों का अर्बन ऑर्गनाइजर रामचन्द्र भूमिगत हो गया. बाद में रामचंद्र रेड्डी को 'गुडसा उसेंडी' नाम से जाना गया, जो माओवादी संगठन के आधिकारिक प्रवक्ता का नाम था.'
हिड़मा बना विकल्प
माओवादी विचारधारा और घटनाओं पर बारीक नजर रखने वाले जानकार बताते हैं कि माओवादी आंदोलन के भीतर रामचंद्र रेड्डी ने रणनीति, जनसंपर्क और नेतृत्व के कई स्तरों पर काम किया. रेड्डी दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति (DKSZC) को प्रमुख बनाया गया, फिर 2020 में इसी समिति का प्रभारी और अंततः केंद्रीय समिति का सदस्य नियुक्त किया गया. आज भी डीकेएसजेडसी को माओवाद संगठन का सबसे मजबूत विंग माना जाता है. जनवरी 2024 से सुरक्षा बलों के लगातार बढ़ते खोजी अभियान और माओवादियों के बड़े कैडर के मारे जाने की घटनाओं के बीच कुछ महीने पहले ही माओवाद संगठन के सबसे क्रूर नेताओं में शामिल माड़वी हिड़मा को रामचन्द्र के विकल्प के रूप में डीकेएसजेडसी की कमान दी गई है.
रामचंद्र रेड्डी के नाम कई प्रेस बयानों और साक्षात्कारों के ज़रिए मीडिया में आते रहे, हालांकि असली पहचान लंबे समय तक छिपी रही. बस्तर पुलिस के मुताबिक कट्टा रामचंद्र रेड्डी पर महराबेड़ा में सीआरपीएफ 27 जवान, बुकिनतोर ब्लास्ट 04 जवान और जोनागुडेम व टेकलगुडा में 22-22 जवानों के नरसंहार करने सहित छत्तीसगढ़ में 16 ,आंध्र प्रदेश में 02 , तेलंगाना मे 04 और महाराष्ट्र में 05 कुल 27 अपराध दर्ज हैं.
तीन दशकों तक छत्तीसगढ़, तेलंगाना और बस्तर के जंगलों में सक्रिय रहे रामचंद्र रेड्डी पर कई हिंसक घटनाओं की साजिश रचने का भी आरोप था. सुरक्षा एजेंसियों की निगाह में वह मोस्ट वांटेड था. रामचंद्र रेड्डी ने मालती ऊर्फ शांतिप्रिया से अंतरजातीय विवाह किया था. वह भी माओवादी संगठन की सदस्य थी. मालती ऊर्फ शांतिप्रिया को 2007 में गिरफ्तार किया गया और कुछ वर्ष पहले ही वह जेल से रिहा हुई. मालती का बेटा एक दंत चिकित्सक और बेटी एक चार्टर्ड अकाउंटेंट है. लेकिन कहा जाता है कि वह रामचंद्र रेड्डी की छाया से दूर रहे.
ये भी पढ़ें छत्तीसगढ़ कांग्रेस में जल्द होगा जिला अध्यक्षों के नामों का ऐलान, चयन के लिए 17 पर्यवेक्षक नियुक्त