मध्य प्रदेश में चुनावी मौसम आ चुका है. हर तरफ राजनीतिक वादे और घोषणाएं सुनने को मिल रही हैं. सभी पार्टियां अलग-अलग वर्ग को साधने के लिए लोक-लुभावने वादे कर रही हैं. लेकिन मध्य प्रदेश पर लगातार बढ़ता कर्ज सरकार के साथ-साथ जनता की टेंशन भी बढ़ा रहा है. अर्थशास्त्री मानते हैं कि जो योजनाओं सरकार को जनता की वाह-वाही दिलवा रही हैं, कल को वही योजनाएं प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर भारी पड़ सकती हैं.
मुश्किल में आम आदमी
एक उदाहरण से इसे समझते हैं- सरकारी कर्मचारी शिवमोहन मिश्रा के परिवार में 8 सदस्य हैं. उनका एक बेटा एमबीए की तैयारी कर रहा है जबकि दूसरा बेटा बेरोजगार है. एक ओर जहां पेट्रोल, दूध-दही, दाल-सब्जी समेत अन्य आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ गए हैं. वहीं दूसरी ओर शिवमोहन की तनख्वाह लगभग ठहरी हुई है, ऐसे में उनके लिए घर चलाना मुश्किल साबित हो रहा है. शिवमोहन तो एक उदाहरण हैं, उनके जैसे कई निम्न और मध्यम वर्गीय लोगों को जीवन-यापन करने में कठिनाई हो रही है.
सरकार पर कितना कर्ज?
अर्थशास्त्री कपिल होलकर का कहना है कि सरकार पर हर साल कर्ज बढ़ता जा रहा है. यह कर्ज सरकार पर नहीं बल्कि हर प्रदेशवासी पर है. जैसे-जैसे सरकार पर कर्ज बढ़ता है वैसे-वैसे आम आदमी पर इस भार बढ़ता जाता है. आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश सरकार ने जनवरी 2023 में 2000 करोड़, फरवरी 2023 में 12000 करोड़, मार्च 2023 में 10000 करोड़, मई 2023 में 2000 करोड़, जून 2023 में 4000 करोड़ और सितंबर 2023 में 1000 करोड़ रुपये के कर्ज लिए हैं. इस प्रकार सरकार ने लगभग पौने चार लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लिया.
सरकार को घेर रहा विपक्ष
कांग्रेस के प्रवक्ता और नेता अब्बास हफ़ीज़ का आरोप है, 'बीजेपी सरकार हर योजना की इवेंटबाजी में काफी पैसा बर्बाद करती है. ख़ुद के प्रमोशन के लिए पैसों की जितनी बर्बादी बीजेपी की सरकार में हुई है, उतनी इतिहास में कभी नहीं हुई. यह जनता की गाढ़ी कमाई की बर्बादी है.' दूसरी तरफ मध्यप्रदेश के सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया का कहना है कि जनता जनार्दन की सुविधाओं के लिए हम खर्च कर रहे हैं. सड़क, बिजली, पानी और इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के लिए हमें जितनी जरूरत होगी उतना कर्ज लेते रहेंगे. हम जो कर्ज लेते हैं उसे चुकाते भी हैं. हमारे पास टैक्स के माध्यम से पैसा आता है उसे हम जनता के हित के लिए खर्च करते हैं.