बतौर प्रशासनिक अधिकारी अपने कार्यकाल में भोपाल के कलेक्टर आशीष सिंह ने कई बेहतरीन उपलब्धियां हासिल की हैं. पर नक्सल प्रभावित बालाघाट में अपने कार्यकाल को वो सबसे बेहतर मानते हैं. वहां हासिल उपल्बिधियां उनके दिल के करीब हैं. दरअसल बतौर प्रशासनिक अधिकारी उनकी पहली पोस्टिंग बालाघाट के बैहर में ही थी. पोस्टिंग पहली थी लेकिन आजादी के आधी सदी के बाद भी जो काम वहां नहीं हुआ था उसे अंजाम देने में उन्होंने सफलता हासिल की थी.
हुआ यूं कि वे इलाके में बतौर एसडीएम तैनात थे. नक्सल प्रभावित होने की वजह से वहां के डेढ़ सौ गांव ऐसे थे जहां कोई सरकारी सेवा नहीं पहुंच सकी थी. आशीष सिंह ने छोट-छोटे कैंप लगवाए और भारी जद्दोजहद के बाद आम लोगों को बीपीएल कार्ड और सरकारी पेंशन जैसी सुविधाएं दिलाई शुरू की. यही नहीं इलाके में 50 स्कूल ऐसे थे जिनकी बिल्डिंग तो बनी थी लेकिन वहां ताले लगे थे. आशीष सिंह ने इन्हें भी खुलवाया.
दो बार इंदौर को देश में बनाया नंबर वन
इसके बाद जब वे इंदौर में जिला पंचायत सीईओ के तौर पर तैनात थे तब भी उन्होंने पूरे जिले को ओडीएफ यानी (Open Defecation Free ) जिला बनाने में कामयाबी हासिल की. तब ये उपल्बधि हासिल करने वाला देश का दूसरा जिला था. इसके बाद तो जैसे साफ-सफाई आशीष सिंह के लिए जुनून जैसा बन गया. उन्होंने इंदौर नगर निगम में कमिश्नर रहते हुए में दो बार इंदौर को सफाई में नंबर वन का तमगा दिलवाया. देवगुराड़िया डंपिग ग्राउंड में रिकॉर्ड टाइम में 12 लाख टन कचरा रिकॉड टाइम में साफ करवाया. यही नहीं उज्जैन में बतौर कलेक्टर उन्होंने महाकाल लोक की पूरी संकल्पना को साकार करने की भी उपल्बधि हासिल की.
आशीष मूल रुप से उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एक छोटे से गांव तेरवा दहिगवा के रहने वाले हैं. शुरुआती पढ़ाई गांव से ही की और बाद में दिल्ली में जाकर यूपीएससी के लिए कोचिंग की. उनके माता-पिता दोनों ही स्कूल में टीचर थे. अब वे रिटायर हो गए हैं और अपने आम के बगीचे की देखभाल करते हैं. परिवार में पत्नी के अलावा दो बच्चे और बहन हैं.
आशीष के मुताबिक उनका डेली रूटीन फिक्स नहीं रहता. कभी-कभी सुबह 5 बजे ही काम की शुरुआत हो जाती है और रात ग्यारह बजे तक काम चलता है. हालांकि आम तौर पर वे सुबह 6.30 बजे उठ जाते हैं और योग वैगरह करके दफ्तर चले जाते हैं जहां शाम तक काम चलता रहता है.
अब भोपाल को ट्रैफिक समस्या से निजात दिलाना है लक्ष्य
वर्क क्लचर के बारे में उनका साफ मानना है कि ज्यादातर जगहों पर ऐसा लगता है कि लोग कम हैं और काम ज्यादा है, लेकिन यदि बेहतर प्लानिंग हो तो सफलता हासिल की जा सकती है. छुट्टियों की बात करें तो फिर कलेक्टर साहब का कहना है कि उनके प्रोफेशन में शनिवार-रविवार जैसी कोई चीज नहीं होती है. हालांकि उनकी कोशिश रहती है कि 6-8 महीने में एक बार परिवार के साथ भारत के अलग-अलग टूरिस्ट प्लेस में कुछ वक्त बीता आएं. पिछली दफा वे परिवार के साथ महाबलीपुरम गए थे. श्रीनगर भी उनकी पसंदीदा जगहों में शुमार है. कलेक्टर साहब ने भोपाल के लिए अपना लक्ष्य तय कर रखा है. आशीष बताते हैं कि वे भोपाल में चरणबद्ध तरीके से विकास करना चाहते हैं. उनके मुताबिक मास्टर प्लान आ गया है. जिसे देखते हुए , पुराने भोपाल को संवारना है. इसके अलावा होशंगाबाद रोड में ट्रैफिक की बहुत समस्या है उसपर ध्यान देना है और शहर को स्वच्छता में नंबर-वन बनाना है.