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Kohinoor Diamond: भारत के इस खादान से निकला था कोहिनूर, मुर्गी के अंडे के बराबर था इसका आकार, पूरी दुनिया को ढाई दिन तक खिला सकते थे खाना

Kohinoor Diamond: कोहिनूर हीरा मूल रूप से लगभग 190.5 कैरेट का था, लेकिन अब यह लगभग 105.6 कैरेट का रह गया है. कोहिनूर के बारे में ऐसा कहा है कि इसे बेच कर पूरी दुनिया के लोगों को ढाई दिन तक खाना खिलाया जा सकता था. 

Kohinoor Diamond: भारत के इस खादान से निकला था कोहिनूर, मुर्गी के अंडे के बराबर था इसका आकार, पूरी दुनिया को ढाई दिन तक खिला सकते थे खाना

Kohinoor Diamond Price-History: प्राचीन भारत (Ancient India) की शान कोहिनूर (Kohinoor Diamond) का नाम जब भी जहन में आता है, तो लोगों को इस बात का अफसोस होने लगता है कि यह बेशकीमती हीरा कभी भारत का था, जो अब इंग्लैंड के कब्जे में है. कोहिनूर का अपना इतिहास है और इसका सफर काफी लंबा रहा. इंग्लैंड पहुंचने से पहले यह कई राजाओं के पास शोभा बढ़ाया. कोहिनूर की खास बात ये भी है कि इसे नहीं कभी खरीदा गया और ना ही बेचा गया. यह हमेशा या तो उपहार में दिया गया है या युद्ध में जीता गया है.

क्यों इतना खास है कोहिनूर हीरा?

वैसे इस दुनिया में कई हीरे बेशकीमती हैं, लेकिन सबसे मशहूर है वो कोहिनूर हीरा... कोहिनूर का मूल रूप से लगभग 190.5 कैरेट का था, लेकिन अब यह लगभग 105.6 कैरेट का रह गया है. 

किस खादान से निकाला गया था कोहिनूर

लगभग 800 साल पहले आंध्र प्रदेश के गुंटूर स्थित गोलकोंडा की खदान (Golconda mine) से कोहिनूर हीरा निकाला गया था. उस वक्त खोजा गया यह सबसे बड़ा हीरा था, जिसका वजह करीब 190.5 कैरेट का था. हालांकि तब से लेकर इंग्लैंड पहुंचने तक इसे कई बार तराशा गया और अब यह मूल रूप 105.6 कैरेट है. यानी इसका कुल वजन 21.12 ग्राम है. कई इतिहासकार बताते हैं कि कोहिनूर मुर्गी के छोटे अंडे के बराबर था और इसे बेच कर पूरी दुनिया के लोगों को ढाई दिन तक खाना खिलाया जा सकता है. 

जानें कोहिनूर की असली कीमत कीतनी है

कोहिनूर के बारे में एक और दिलचस्प बात है. इतिहासकार ये भी कहते हैं कि कोहिनूर की कीमत करीब 1.67 लाख करोड़ रुपये है. वहीं बुर्ज खलीफा महज 12500 करोड़ रुपये में बनी थी. ऐसे में इस कोहिनूर की कीमत में 13 बुर्ज खलीफा का निर्माण कराया जा सकता है.

कौन था कोहिनूर हीरे का पहला मालिक

कोहिनूर हीरा सबसे पहले काकतिय राजवंश के पास आया था यानी इसका मालिक काकतिय राजवंश था, लेकिन इस वंश के पैस ये कैसे आया इसकी जानकारी नहीं मिली. वहीं काकतिय ने इसे अपनी कुलदेवी भद्रकाली की बाई आंख में जड़वाया था, लेकिन 14वीं शताब्दी में जब अलाउद्दीन खिलजी भारत आया तो उसने इसे लूट लिया. इसके बाद पानीपत के युद्ध (Battle of Panipat) में मुगल शासक बाबर (Babar) ने आगरा और दिल्ली किले को जीता तो यह हीरा मुगलों के पास पहुंच गया. वहीं जब शाहजहां शासक बना तो उसने कोहिनूर को मयूर सिंहासन में जड़वाया था. 

कैसे नादिर शाह के हाथ लगा कोहिनूर

मोहम्मद शाह रंगीला के शासन में मुगल सत्ता कमजोर होने लगा और इस दौरान नादिरशाह ने भारत पर हमला कर दिया और दिल्ली पर कब्जा कर लिया. हालांकि एक महीने बाद नादिर शाह ने दरबार बुलाया और मोहम्मद शाह रंगीला के सिर पर एक बार फिर हिंदुस्तान का ताज रख दिया. दरअसल, इसके पीछे मोहम्मद शाह रंगीला से कोहिनूर लेना था. बता दें कि दरबार की एक नर्तकी नूर बाई ने नादिर शाह से मुख़बरी की थी कि मोहम्मद शाह ने अपनी पगड़ी में कोहिनूर को छिपा रखा है. नादिर शाह ने ये सुन कर मोहम्मद शाह से कहा कि हम दोनों भाइयों जैसे हैं, इसलिए हमें अपनी पगड़ियां बदल लेनी चाहिए.' जिसके बाद ये कोहिनूर नादिर शाह के हाथ में चला गया. 

इस तरह कोहिनूर नादिर शाह के हाथ में आया. वहीं जब उसने पहली बार कोहिनूर को देखा... तो देखता ही रह गया. नादिशाह ने ही इसका नाम कोहिनूर यानी रोशनी का पहाड़ (Mountain of light) रखा था.

कोहिनूर हीरे का इतिहास 

दिल्ली में 57 दिनों तक रहने के बाद 16 मई, 1739 को नादिर शाह अपने देश ईरान का रुख किया. इस दौरान वो पीढ़ियों से जुटाई गई मुगलों की सारी दौलत और तख़्ते-ताऊस ले गया. हालांकि नादिर शाह के पास भी कोहिनूर हीरा बहुत दिनों तक नहीं रह पाया. नादिर शाह की हत्या के बाद उसके पोते ने कोहिनूर को अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी को उपहार में दे दिया. वहीं इसके बाद कई हाथों से होते हुए 1813 में ये बेशकीमती कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के पास पहुंचा. 

ऐसे इंग्लैंड पहुंच गया कोहिनूर हीरा

हालांकि 1839 में महाराजा रणजीत सिंह (Maharaja Ranjit Singh) की मृत्यु हो गई. काफी संघर्ष के बाद 1843 में दलीप सिंह को पंजाब का राजा बनाया गया, लेकिन दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध में अंग्रेजों की जीत के बाद उनके साम्राज्य और कोहिनूर पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया और उसे महारानी विक्टोरिया को भेंट कर दिया.1850 में यह हीरा बकिंघम पैलेस पहुंचा, जहां इसे महारानी के मुकुट में जड़ा गया. 

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