
Vinayak Chaturthi 2023: हिन्दू धर्म में भगवान गणेश (Lord Ganesh) की पूजा के बिना किसी भी देवी-देवताओं को नहीं पूजा जाता है. हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है. इस साल की आखिरी मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) 16 दिसंबर को है, यदि आप भगवान गणेश के मंदिर जाकर उनकी पूजा अर्चना करना चाहते हैं तो मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सीहोर ज़िले के ऐतिहासिक सिद्धिविनायक गणेश मंदिर के दर्शन ज़रूर करें, सीहोर (Sehore) स्थित सिद्धिविनायक गणेश मंदिर (Siddhivinayak Ganesh Mandir) देश के चार स्वयंभू पीठों में से एक हैं. आइए जानते हैं मध्यप्रदेश के इस मंदिर के इतिहास के बारे में..
400 साल पुराना है मंदिर
मध्य प्रदेश के सीहोर स्थित सिद्धिविनायक गणेश मंदिर का इतिहास 400 साल पुराना पेशवा क़ालीन माना जाता है. सीहोर के पश्चिमी उत्तर छोर पर वायव्य कोण पर स्थित यह मंदिर अपनी कलित-कीर्ति के लिए दूर-दूर तक प्रचलित है.
बाजीराव पेशवा ने कराया था निर्माण
भगवान गणेश की चार सिद्ध प्रतिमाएँ देश के चार स्थानों पर विराजित स्वयंभू पीठ मानी जाती हैं. इनमें राजस्थान के सवाई माधोपुर रणथंभौर गणेश मंदिर, उज्जैन में चिंतामन गणेश, गुजरात में सिद्धपुर और सीहोर की सिद्धि विनायक गणेश प्रथम स्वयंभू पीठ माने जाते हैं. सीहोर के गणेश मंदिर की कहानी बेहद रोचक है. मान्यता है कि इस चिंतामन गणेश मंदिर के सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा ने करवाया था, मंदिर का स्तूप श्रीयंत्र के कोण पर स्थित है
मूर्ति की है ख़ास विशेषता
सिद्धिविनायक गणेश मंदिर में भगवान कि वर्तमान स्वरूप में दिखने वाली मूर्ति वास्तव में धरती में कमर तक धंसी प्रतिमा का बाहरी रूप है. कहा जाता है कि साक्षात प्रतिमा कमर से नीचे तक जमीन में धँसी हुई है. प्राचीन काल में उसे खोजने के भी प्रयास किए गए लेकिन सफल नहीं हो सके. आमतौर पर मंदिरों में भगवान श्री गणेश की सूंड बाई ओर रहती है लेकिन सिद्धि विनायक गणेश मंदिर में भगवान की सूंड दायीं ओर है, इसीलिए भगवान सिद्ध और स्वयंभू कहलाते हैं.
भक्त बनाते हैं उल्टा स्वस्तिक
मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है. दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामना पूरी करवाने के लिए गणपति की शरण में आते हैं. वैसे तो हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार, मांगलिक कार्यों में सीधा स्वास्तिक मंगल और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है लेकिन जब ये ही स्वास्तिक उल्टा कर दिया जाए तो अमंगल का प्रतीक माना जाता है. जबकि सिद्धि विनायक गणेश मंदिर में भगवान गणेश की पार्श्व भाग पर भक्तगण मंगल के लिए अमंगल का प्रतीक उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि उल्टा स्वास्तिक बनाने से मनोकामना पूरी हो जाती है. मान्यता है कि जब मनोकामना पूरी हो जाती है तो भक्त उसके बाद सीधा स्वास्तिक बनाकर भगवान का धन्यवाद भी करते हैं.