
पंडवानी शैली में गायन की जब भी बात होती है तो जो सबसे पहला नाम सामने आता है वो है- तीजनबाई का. उन्होंने दुनियाभर में इस गायन शैली को मशहूर किया. अब उन्हीं के नक्शेकदम पर चल कर उनकी ही शिष्या ऊषा बारले इस शानदार गायन शैली को आगे बढ़ा रही हैं. तीजन पद्मभूषण से सम्मानित हुई हैं तो ऊषा को भी सरकार ने इसी साल पद्मश्री से सम्मानित किया है. महज सात साल की उम्र से पंडवानी गीतों को गा रही ऊषा फिलहाल दुर्ग में रहती हैं और 45 सालों से देश ही नहीं बल्कि विदेश के 12 देशों में अपनी कला को पेश कर चुकी हैं.

यह ऊषा की शख्सियत का कमाल ही है कि देश के गृहमंत्री अमित शाह भी उनसे मिलने उनके घर पहुंचे थे. खुद प्रधानमंत्री मोदी भी उनकी तारीफ कर चुके हैं.
2 मई 1968 को भिलाई में जन्मी उषा बारले ने महज 7 साल की उम्र में इस गीत को सीखना शुरू कर दिया था. उनके पहले गुरु उनके फूफा थे लेकिन बाद में उन्होंने तीजन बाई से इस कला की बारीकियां सीखीं. परिस्थितियों की वजह से वे चौथी क्लास से आगे नहीं पढ़ पाईं. शुरू में उनके परिवार को उनका गाना गाना पसंद नहीं था, खासकर उनके पिता को. एक दिन तो गुस्से में उनके पिता ने भिलाई के शारदा पारा स्थित कुएं में फेंक दिया. इत्तेफाक से कुएं में पानी कम था तो ऊषा बच गईं. बाद में उनके परिजनों ने बाल्टी और रस्सी की मदद से उन्हें बाहर निकाला. इन परिस्थितियों के बावजूद ऊषा ने हार नहीं माना और गायन को जारी रखा. मेहनत का फल दिखा और हर गुजरते वक्त के साथ उनकी कला निखरती गई. अब तक वे भारत के अलावा न्यूयॉर्क, लंदन और जापान सहित 12 देशों में एक हजार बार कार्यक्रम की प्रस्तुति दे चुकी हैं.

वे छत्तीसगढ़ के समाजिक मुद्दों को लेकर भी सक्रिय रहती हैं. साल 1998 में विद्याचरण शुक्ल के नेतृव में मध्यप्रदेश शासनकाल में छत्तीसगढ़ प्रदेश बनाने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर में धरना प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस ने ऊषा बारले समेत अन्य लोगो को गिरफ्तार किया था. जाहिर है ऊपा जैसी शख्सियत पर छत्तीसगढ़ को गर्व है.
ऊपा बारले को मिले सम्मान
- छत्तीसगढ़ भुईयां सम्मान
- चक्रधर सम्मान
- मालवा सम्मान
- दाऊ महासिंग चंद्राकर सम्मान
- मिनीमाता सम्मान
- 2006 गणतंत्र दिवस पर सम्मान
- पद्मश्री सम्मान