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This Article is From Oct 31, 2023

घोषणाओं में कितना दम

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Diwakar Muktibodh
  • विचार,
  • Updated:
    October 31, 2023 4:16 pm IST
    • Published On October 31, 2023 16:16 IST
    • Last Updated On October 31, 2023 16:16 IST

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के लिए चंद दिन ही शेष रह गए हैं.  07 नवंबर को राज्य की कुल 90 सीटों में से 20 के लिए मत डाले जाएंगे. इन सीटों में बस्तर की 12 एवं राजनांदगांव व कवर्धा जिले की 8 सीटें शामिल हैं. 20 सीटों में से 19 सीटें अभी कांग्रेस के पास है.  सिर्फ एक सीट राजनांदगांव भाजपा की है जहां से पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह विधायक हैं और इस बार भी वे इसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. यद्यपि शेष 70 सीटों के  लिए दूसरे व अंतिम चरण का मतदान 17 नवंबर को होगा लेकिन पहले चरण की इन 20 सीटों  पर पहले जैसा प्रदर्शन करना कांग्रेस के लिए लगभग नामुमकिन है. इसे तय मान सकते हैं कि कांग्रेस बस्तर की सभी 12 सीटें पुनः नहीं जीत सकती और न ही  राजनांदगांव-कवर्धा  के नतीजों को दोहरा सकती है. अर्थात पहले चरण के चुनाव में कांग्रेस को कुछ सीटों का नुकसान निश्चितप्रायः है. नुकसान कितनी सीटों का होगा , फिलहाल कहना मुश्किल है. पर यह बराबरी के बंटवारे का नहीं होगा. कांग्रेस के खाते में निश्चित रूप से अधिक सीटें आएंगी.

राज्य में चुनाव प्रचार पूरे शबाब पर है तथा दोनों प्रमुख पार्टियों के शीर्ष नेताओं, स्टार प्रचारकों के लगातार छत्तीसगढ़ दौरे हो रहे हैं. जनसभाएं ली जा रही हैं. दोनों पार्टियों के घोषणा-पत्र अभी जारी नहीं हुए हैं लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेताओं जिनमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सांसद राहुल गांधी, पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी व प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अलग-अलग अवसरों पर जन सभाओं में एलान कर दिया है कि प्रदेश में इस बार भी यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो वे जनता की भलाई के लिए क्या-क्या  करनेवाले हैं.

राहुल गांधी 28--29 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के दो दिवसीय प्रवास पर थे. यहां उन्होंने बस्तर के भानुप्रतापपुर व फरसगांव में जन सभाओं को संबोधित किया. इन सभाओं में उन्होंने किसानों की कर्ज माफी, किसानों से प्रति एकड 20 क्विंटल धान की खरीदी, साढ़े सत्रह लाख गरीबों को पक्का घर, मजदूरों का मानदेय प्रति वर्ष 7000 रूपए से बढा़कर दस हजार रूपए , धान खरीदी 2640 रूपयों से बढ़ाकर 3000 रूपए, सरकारी स्कूलों में प्री प्रायमरी से लेकर पीजी तक मुफ्त शिक्षा, तेंदू पत्ता संग्राहकों को प्रति वर्ष 4000 रूपए बोनस तथा जातीय जनगणना का वायदा किया.

राहुल गांधी के बाद 30 अक्टूबर को प्रियंका गांधी ने खैरागढ़ व बिलासपुर में चुनावी सभा की जहां उन्होंने जनता से आठ वायदे किए जिसमें हर वर्ग को  200 यूनिट तक बिजली मुफ्त तथा रसोई गैस रिफिलिंग में 500 रूपए सब्सिडी की घोषणा प्रमुख है. इनमें से कुछ संकल्प बीते महीनों में सरकार व संगठन की चुनावी तैयारियों के दौरान कार्यक्रमों में पहिले ही जाहिर किए जा चुके हैं. लेकिन किसानों को पुनः कर्ज माफी का वायदा वह बड़ा दांव था जिसने 2018 के चुनाव में कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचा दिया था. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने  23 अक्टूबर को सक्ती में आयोजित एक चुनावी सभा में यह दांव पुनः खेला. उन्होंने घोषणा की कि कांग्रेस के चुनाव जीतने पर इस दफे भी खेती किसानी के लिए सहकारी समितियों से लिया गया किसानों का तमाम ऋण माफ कर दिया जाएगा।

इन घोषणाओं के बाद यह देखना दिलचस्प रहेगा कि कांग्रेस के पास और ऐसे कितने ट्रम्प कार्ड हैं जो संकल्प पत्र के रूप में सामने आएंगे तथा मतदाताओं को विशेषकर किसानों , खेतीहर मजदूरों, आदिवासियों व अनुसूचित जाति व पिछड़े वर्ग के लोगों को ' भरोसे की सरकार ' पर पुनः भरोसा करने प्रेरित करेंगे. बहरहाल कांग्रेस के अब तक किए गए वायदे कितना असर दिखाएंगे, इसका आकलन तो नतीजे आने के बाद ही होगा पर आश्चयर्जनक बात यह है कि भाजपा ने अभी भी तक इस मामले में अपने पत्ते नहीं खोले हैं. जबकि बताया गया है कि उसे घोषणा पत्र के संदर्भ में नागरिकों की ओर से दो लाख से अधिक सुझाव प्राप्त हुए हैं.

बताया जाता है कि इनकी समीक्षा व चयन का कार्य लगभग पूरा हो गया है. फिर भी पार्टी की खामोशी समझ से परे है. सिर्फ़ रायपुर पश्चिम के भाजपा प्रत्याशी व व पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने 22 अक्टूबर को मीडिया से बातचीत में कहा था कि यदि भाजपा सरकार सत्ता में आई तो गरीबों को  75 हजार रुपए में आवास दिया जाएगा जिन्हें कांग्रेस सरकार अभी सवा चार लाख में दे रही है.

आवास के संदर्भ में ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने भी 27 अक्टूबर को मुंगेली में आयोजित भाजपा संकल्प चिंतन शिविर में  कहा कि सरकार बनने पर सबसे पहले राज्य के 17 लाख आवासहीन गरीबों को आवास देने का  काम किया जाएगा. आवास के इस एक मुद्दे को छोड़कर भाजपा ने वायदों के मामले में कांग्रेस को काउंटर करने की कोशिश नहीं की. कांग्रेस की कर्ज माफी पर भी उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. कांग्रेस के जनप्रिय वायदों के जवाब में भाजपा अपने तरकश  में से ऐसे कौन से ऐसे तीर निकालेगी जो नहले पर दहले साबित होंगे, यह देखना होगा. चूंकि राज्य में 7 नवंबर को प्रथम चरण का मतदान है लिहाज़ा आजकल में दोनों पार्टियों के आधिकारिक घोषणा पत्र सामने आ सकते हैं. पर प्रतीत होता है कि भाजपा कुछ तो लुभावने वायदे करेगी। अब यह अलग बात है कि राज्य के मतदाता किस पर कितना विश्वास जताएंगे. फिर भी वायदे तथा घोषणाएं एक हद तक मतदाताओं को प्रभावित तो करते ही हैं। पिछला चुनाव इसका बड़ा उदाहरण है.

जहां तक बीस सीटों की बात है, बस्तर संभाग की 12 सीटों में कांग्रेस को कोंडागांव, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, अंतागढ़ व भानुप्रतापपुर में कठिन चुनौती का सामना करना पड रहा है. लेकिन जिस धर्मांतरण के मुद्दे पर भाजपा को भरोसा था, वह केवल नारायणपुर को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में निष्प्रभावी है. बस्तर की शेष सीटों पर कांग्रेस की स्थिति मजबूत मानी जा रही है. यह भी निश्चित प्रतीत होता है कि बस्तर में भाजपा का खाता इस बार एक से अधिक सीटों पर खुलेगा. पिछला चुनाव उसने सिर्फ दंतेवाड़ा में जीता था जो उपचुनाव में कांग्रेस के पास सरक गया.

राजनांदगांव व कवर्धा जिले की आठ सीटों पर भी कांग्रेस- भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है . कवर्धा में कांग्रेस के बडे़ नेता मोहम्मद अकबर को घेरने के लिए भाजपा ने  साम्प्रदायिक कार्ड की जो ट्रिक अपनाई है, उसका फलीभूत होना नामुमकिन ही है.

चुनावी मुद्दों के संदर्भ में देखें तो कांग्रेस ने ग्राम्य विकास , खुशहाल किसान व आदिवासी उत्थान को अपने प्रचार के केन्द्र में रखा है. जबकि भाजपा ने संस्थागत भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बनाते हुए सरकारी योजनाओं की तथाकथित दुर्गति तथा शासन प्रशासन द्वारा स्थानीय  स्तर पर नागरिक सुविधाओं से संबंधित समस्याओं की अनदेखी को अपना हथियार बना रखा है.

पहले चरण के चुनाव के प्रमुख चेहरों में  राजनांदगांव से भाजपा के रमन सिंह, कवर्धा से  कांग्रेस से मोहम्मद अकबर तथा चित्रकोट से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के बारे में वर्तमान माहौल को देखते हुए कहा जा सकता है कि उन्हें विरोधियों के विरुद्ध अपना मैच जीतने में विशेष कठिनाई नहीं होगी। फिर भी मतदान की तिथि के करीब आते-आते किसी का भाग्य यदि पलट जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

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