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This Article is From Jul 21, 2023

मध्य प्रदेश, जहां नदियों के साथ है विविध बोलियों का प्रवाह 

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Suryakant Pathak
  • विचार,
  • Updated:
    July 21, 2023 6:44 pm IST
    • Published On July 21, 2023 18:44 IST
    • Last Updated On July 21, 2023 18:44 IST

नदियां के साथ प्रवाह जुड़ा है और यह उसके अस्तित्व, उसकी निरंतरता, शाश्वतता का आधार होता है. नदियों के साथ जीवन प्रवाहित होता है, संस्कृति प्रवाहित होती है, भाषाएं और बोलियां प्रवाहित होती हैं. दुनिया का इतिहास देखें तो सभ्यताएं वहीं विकसित हुईं जहां नदियां बहती रहीं. भारतीय उप महाद्वीप में देखा जाए तो सिंधु घाटी की सभ्यता इसका एक प्रमुख उदाहरण है. कल-कल ... बहने वाली नदियां 'आज' को 'कल' की ओर ले जाती हैं. बीते कल, आज और आने वाले कल में पीढ़ियों के सफर का विस्तार होता है. यह सफर नदियों के साथ संस्कृतियां, जिंदगियां तय करती हैं. मध्य प्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक नदियां बहती हैं और इसलिए इसे नदियों का मायका भी कहा जाता है. नदियां इस प्रदेश के बड़े भू-भाग की दिनचर्या का हिस्सा हैं.    

मूल रूप से आदिवासियों की भूमि रहे मध्य प्रदेश की संस्कृति और सामाजिक बुनावट में व्यापक विविधता है और नदियां लोक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा हैं. मध्य प्रदेश में बहने वाली नर्मदा नदी देश की पांचवी सबसे बड़ी नदी है. इसका उद्गम राज्य के पूर्वी हिस्से में स्थित अनूपपुर जिले की मैकाल पर्वतमाला की अमरकंटक पहाड़ी से होता है और यह राज्य के पश्चिम की ओर प्रवाहित होते हुए गुजरात में प्रवेश करती है. गुजरात से गुजरकर यह खम्बात की खाड़ी में गिरती है.

नर्मदा को रेवा, संकरी, मेकलसुता, अमरकंठी और नामोदोस के नाम से भी पहचाना जाता है. कुल 1312 किलोमीटर का सफर तय करने वाली नर्मदा का मध्य प्रदेश में सफर 1077 किलोमीटर का होता है.

राज्य की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा में 20 से अधिक सहायक नदियों का समागम होता है. इनमें शक्कर, हिरन, बनास, चंद्रकेशर, तवा, कानर, बर्ना, तिन्दोली, मान, उरी, हथनी, बरनार, बजर, शेर, देव, गोई, गंजाल आदि प्रमुख नदियां हैं.

नर्मदा और इससे सटे हुए आसपास के इलाकों को देखें तो इसके उद्गम से लेकर विसर्जन स्थल तक काफी सांस्कृतिक विविधता दिखाई देगी लेकिन इसके साथ-साथ नर्मदा प्रत्येक सांस्कृतिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा भी दिखाई देगी. भाषाएं, बोलियां बदलती जाएंगी, लेकिन नर्मदा अपनी अलमस्त चाल में आगे बढ़ती रहेगी.  

narmada river

   
नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक और आसपास के क्षेत्र में बघेलखंडी और गोंडी बोलियां प्रचलन में हैं. डिंडोरी और मंडला जिलों से आगे बढ़कर जबलपुर पहुंचने पर नर्मदा अपने यौवन के साथ सौंदर्य के शिखर पर पहुंच जाती है. ऐसा सौंदर्य जो पूरी दुनिया को आकर्षित करता है. भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों को चीरकर बहने वाली नर्मदा धुंआधार के रूप में प्रकृति का संगीत पैदा करती है. इसके साथ-साथ नर्मदा के प्रवाह के साथ जन संस्कृति में बुंदेली (बुंदेलखंडी) का समागम हो जाता है.            

जबलपुर से नरसिंहपुर और होशंगाबाद जिले तक नर्मदा संस्कृति में बुंदेली बोली समाहित है. बुंदेली प्रदेश के सबसे बड़े हिस्से में बोली जाती है. बुंदेली बोली के और बुंदेलखंड के बारे में दोहा है- ''भैंस बंधी है ओरछा, पड़ा होशंगाबाद, लगवैया है सागरे, चपिया रेवा पार..'' यानी कि उत्तरी मध्य प्रदेश के ओरछा और इससे सटे उत्तर प्रदेश के जिलों से लेकर मध्य प्रदेश के दक्षिण-मध्य में स्थित होशंगाबाद तक बुंदेलखंडी बोली जाती है.

प्रदेश में बुंदेली बोली के भी विभिन्न स्वरूप हैं जो कि दतिया,गुना, शिवपुरी, मुरैना, सागर, छतरपुर, दमोह, पन्ना, विदिशा, रायसेन, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, सिवनी, छिंदवाड़ा, भोपाल और बालाघाट जिलों में प्रचलित हैं.       

होशंगाबाद से आगे बढ़कर नर्मदा खंडवा और खरगोन जिलों से गुजरती है. इस इलाके को निमाड़ कहा जाता है और यहां की बोली निमाड़ी है. निमाड़ी धार, देवास, बड़बानी, झाबुआ और इंदौर जिले के कुछ इलाकों में भी बोली जाती है.

नर्मदा की कई बार परिक्रमा करने वाले जबलपुर के प्रकृति प्रेमी अमृतलाल वेगड़ के अनुसार- ''नर्मदा तट के छोटे से छोटे तृण और छोटे से छोटे कण न जाने कितने परव्राजकों, ऋषि-मुनियों और साधु-संतों की पदधूलि से पावन हुए होंगे. यहां के वनों में अनगिनत ऋषियों के आश्रम रहे होंगे. वहां उन्होंने धर्म पर विचार किया होगा, जीवन मूल्यों की खोज की होगी और संस्कृति का उजाला फैलाया होगा.''

मध्य प्रदेश में नर्मदा के अलावा तवा नदी बहती है जिसका उद्गम होशंगाबाद जिले के पर्यटन स्थल पचमढ़ी से है. यह 117 किलोमीटर प्रवाहित होने के बाद नर्मदा का हिस्सा बन जाती है. यह नर्मदा की सबसे बड़ी सहायक नदी है. इस नदी के साथ भी बुंदेली बोली का प्रवाह है. चंबल नदी इंदौर जिले के महू की जानापाव पहाड़ी से निकलती है और 965 किलोमीटर (मध्य प्रदेश में 320 किलोमीटर) का सफर तय करके यमुना नदी में मिलती है. इंदौर, रतलाम, श्योपुर और मुरैना जिले में बहने वाली इस नदी के आसपास मालवी, बुंदेली और ब्रज भाषा बोली जाती है. यह चित्तौड़गढ़ में राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा बनाती है और इटावा पहुंचकर यमुना में मिल जाती है.

इंदौर जिले की काकरीबर्डी पहाड़ी से निकलने वाली क्षिप्रा नदी 195 किलोमीटर बहती है और इसका चंबल में संगम होता है. देवास, उज्जैन, रतलाम और मंदसौर जिले में प्रवाहित होने वाली क्षिप्रा के साथ मालवी बोली और संस्कृति अपने पूरे ओज में दिखाई देती है.  इसके अलावा इंदौर की ही रालामंडल की पहाड़ियों से निकलने वाली खान नदी क्षिप्रा में मिलती है. भोपाल के पास सीहोर जिले में पार्वती नदी का उद्गम है. यह नदी चंबल में मिलती है.  इन दोनों नदियों के किनारे भी मालवी बोली प्रचलित है. 

narmada river


काली सिंध नदी का उद्गम देवास जिले के बागली गांव में है. चंबल में समाहित होने वाली काली सिंध 461 किलोमीटर लंबी है जिसमें से इसका मध्य प्रदेश में 150 किलोमीटर लंबा हिस्सा है. देवास, शाजापुर, राजगढ़ से होकर यह राजस्थान के झालावाड़ और फिर कोटा पहुंचती है. यह नदी भी मालवी बोली को साथ लेकर प्रवाहित है.    

नर्मदा के उद्गम अमरकंटक से ही सोन नदी भी निकलती है. यह अपने 780 किलोमीटर लंबे सफर में मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार में प्रवाहित होकर गंगा में मिलती है. यह नदी मध्य प्रदेश में 509 किलोमीटर बहती है. प्रदेश में इस नदी के साथ रहने वाले लोग गोंडी और बघेलखंडी भाषा संस्कृति में रचे-बसे हैं.  

टोंस नदी या तमस नदी सतना जिले के कैमूर से निकलती है और उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के निकट सिरसा में गंगा में मिल जाती है. इस 320 किलोमीटर लंबी नदी के किनारे बघेलखंडी बोली लोक संस्कृति का हिस्सा है.  

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा बनाने वाली बेतवा नदी रायसेन जिले में विंध्यांचल पर्वतमाला से निकलती है. बेतवा 540 किलोमीटर का सफर तय करके उत्तर प्रदेश के हमीरपुर के पास यमुना में मिल जाती है.

सांची और विदिशा जैसे ऐतिहाासिक नगरों में बहने वाली बेतवा के इलाके में बुंदेली संस्कृति रची-बसी है. इसी क्षेत्र के विदिशा जिले के सिरोंज में सिंध नदी का उद्गम है. करीब 470 किलोमीटर बहने वाली सिंध उत्तर प्रदेश में यमुना नदी में समाहित होती है

.केन नदी कटनी जिले से निकलती है और उत्तर प्रदेश में यमुना में मिल जाती है. इस नदी का सफर  472 किलोमीटर लंबा है जिसमें से 292 किलोमीटर का हिस्सा मध्य प्रदेश में है. दमोह, पन्ना जिलों से होकर उत्तर प्रदेश के बांदा पहुंचने वाली इस नदी का पूरा सफर बुंदेलखंड में तय होता है. 

धार जिले के सरदारपुर से निकले वाली माही नदी मालवा अंचल के रतलाम जिले से राजस्थान में प्रवेश करती है और फिर गुजरात में बहती है. यह 543 किलोमीटर लंबी नदी देश की एक मात्र ऐसी नदी है जो कर्क रेखा को दो बार काटती है. 

मध्य प्रदेश के दक्षिणी हिस्से में सिवनी जिले से बेनगंगा नदी का उद्गम होता है. यह 570 किलोमीटर प्रवाहित होने के बाद महाराष्ट्र के वर्धा में गोदावरी नदी में मिल जाती है. महाराष्ट्र से सटे इलाके में बहने वाली इस नदी के किनारे बुंदेली, गोंडी और छत्तीसगढ़ी के अलावा मराठी भी बोली जाती है.    

नदियां लोगों में हमेशा जिज्ञासाएं जगाती हैं, आकर्षित करती हैं. नदियों के कल-कल में आनंद का प्रवाह मिश्रित है. इनके तटों पर बसे लोगों में व्याप्त परंपरा की निरंतरता नदी के कल-कल के साथ ध्वनित होती रहती है. इन्हीं ध्वनियों के साथ बोलियां, परंपराएं दमकती हैं और अपनी क्षेत्र विशेष की लोक संस्कृति से परिचित कराती हैं. चाहे दैवीय आख्यान हों या लोकश्रुतियों की धारा, लोक कलाएं हों या वाचिक परंपराएं नदियां सब जगह मौजूद हैं. यह शाश्वत प्रवाह ही लोक जीवन की पहचान है.

लेखक- सूर्यकांत पाठक

सूर्यकांत पाठक पिछले 30 साल से पत्रकारिता कर रहे हैं और इन्होंने इस दौरान देश के कई शहरों में प्रिंट, टीवी और रेडियो के अलावा डिजिटल माध्यमों में काम किया. वे विभिन्न विषयों पर लिखते हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं

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