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छत्तीसगढ़: कड़े मुकाबले में भाजपा

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Diwakar Muktibodh
  • विचार,
  • Updated:
    March 15, 2024 3:03 pm IST
    • Published On March 15, 2024 15:03 IST
    • Last Updated On March 15, 2024 15:03 IST

छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों के संदर्भ में यदि पिछले आंकड़ों पर गौर करें तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव 2024 में भी तस्वीर कुछ खास बदलने वाली नहीं है. नया राज्य बनने के बाद यहां चार चुनाव हुए हैं 2003, 2009, 2014 व  2019. इन चारों चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने कांगेस के पुराने वैभव को समाप्त कर दिया था. पहले चुनाव में भाजपा ने 11 में से 10,  दूसरे में भी 10, तीसरे में 9 औऱ चौथे में 11में से 8 सीटें जीती थीं.

2014 व 2019 के चुनाव में मोदी लहर ने जो असर दिखाया था, उसमें अब राम की महिमा भी जुड गई है. राम नाम और मोदी गारंटी के जप के साथ भाजपा प्रदेश के करीब एक करोड़ 35 लाख मतदाताओं को जिनमें महिलाएं अधिक हैं, अपने पक्ष में कितना प्रभावित कर पाएगी, फिलहाल कहना मुश्किल है, परंतु उसकी कोशिश इस बार सभी 11 सीटें जीतने की होगी.

अब  सवाल है क्या पूर्व मुख्य मंत्री भूपेश बघेल भी चुनाव हार जाएंगे? बघेल राजनांदगांव से लड़ रहे हैं. पिछले चारों चुनावों में यह सीट भाजपा के आधिपत्य में रही है. पूर्व मुख्य मंत्री रमन सिंह, उनके बेटे अभिषेक सिंह यहां के सांसद रहे हैं और अब यह संतोष पांडे के पास है जिन्हें भाजपा ने पुनः टिकट दी है.

कांग्रेस की पहली सूची में छत्तीसगढ़ की छह लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम शामिल किए गए थे. शेष पांच अभी तय नहीं हो पाए. पर कांग्रेस सभी निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के खिलाफ जमकर मुकाबला करने की तैयारी में हैं.  वैसे भी दो सीटें कोरबा व बस्तर उसके पास है.

पिछले विधान सभा चुनाव में जिन लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है, उनमें कांकेर, महासमुंद, राजनांदगांव व जांजगीर-चांपा है.

यानी इन क्षेत्रों में यदि वह विधान सभा चुनाव परिणामों को  दोहराने में सफल रहती है तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस 2019 के मुकाबले 2024 में अपनी संख्या में आशाजनक वृद्धि कर सकती है.

रायपुर लोकसभा

नवंबर 2023 में हुए विधान सभा में भाजपा ने रायपुर संसदीय क्षेत्र की 9 में से 8 सीटें जीती हैं. यहां कांग्रेस कुल प्राप्त वोटों की दृष्टि से भाजपा से 2 लाख 54 हजार वोट से पीछे है. कांगेस ने एकमात्र सीट भाटापारा की जीती थी, वो भी महज 11 हजार 316 मतों से. यानी कांग्रेस की जीत लगभग असंभव है. भारी मतों का अंतर एक कारण तो है ही, लेकिन दूसरा प्रमुख कारण है भाजपा ने यहां से राजनीति के पहुंचे हुए खिलाड़ी व लोकप्रिय नेता बृजमोहन अग्रवाल को मैदान में उतारा है जो सरकार के वरिष्ठ मंत्री भी है. रायपुर से लगातार आठ बार चुनाव जीतने वाले इस नेता ने पिछला विधान सभा चुनाव 67 हजार से अधिक वोटों से जीता था. उन्हें टक्कर देने कांग्रेस ने युवा नेता व पूर्व विधायक विकास उपाध्याय को टिकट दी है.

उपाध्याय 2023 के विधान सभा चुनाव में रायपुर पश्चिम से 41 हजार 129 वोटों से हार गए थे. अब जीत की न्यूनतम संभावना के बावजूद विकास उपाध्याय यदि कोई करिश्मा कर जाए तो वह इस चुनावी दौर का  सबसे बड़ा उलटफेर होगा, क्योंकि रायपुर लोकसभा क्षेत्र भाजपा का अभेद्य गढ़ है.

महासमुंद लोकसभा

दूसरी सीट महासमुंद 2009, 2014 और 2019 से भाजपा के कब्जे में है. 2023 के विधान  सभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस ने बराबरी की हिस्सेदारी की. 8 में से दोनों ने 4-4 सीटें जीती थीं. आठों विधान सभा में भाजपा को कुल 6 लाख 87 हजार 909 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 6 लाख 37 हजार 392 वोट हासिल हुए. इस प्रकार कांग्रेस यहां 50 हजार 517 वोटों से पीछे हैं.

उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय अजीत जोगी 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी चंदूलाल साहू से मात्र 1217 मतों से हारे थे. इस बार बीजेपी ने ओबीसी समुदाय से ही रूप कुमारी चौधरी को टिकट दी है. उनके खिलाफ कांग्रेस ने भी इसी वर्ग के कद्दावर नेता और बघेल सरकार में गृह मंत्री रहे ताम्रध्वज साहू को खड़ा किया है. चूंकि भाजपा और कांग्रेस के बीच वोटों का फासला काफी कम है लिहाज़ा कांग्रेस यहां और बेहतर कर सकती है.

कांकेर लोकसभा

कांकेर वह लोकसभा क्षेत्र है जहां 2019 के चुनाव में कांग्रेस के बीरेश ठाकुर भाजपा के सोहन पोटाई से केवल 6914  वोटों से हारे थे, जबकि नोटा मेंही 26713 वोट पड़े थे. इसके पूर्व  2009 व 2014 के दोनों चुनाव  भी बीजेपी ने जीते थे पर वोट प्रतिशत का अंतर दो तीन फीसदी से अधिक नहीं था.  

2023 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को पीछे कर दिया. 8 में से 5 सीटें कांग्रेस ने जीती थी. संसदीय क्षेत्र के हिसाब से कांग्रेस को यहां 82 हजार 300 की बढ़त हासिल है. यानी यह सीट भी कांग्रेस के लिए संभावना पूर्ण है.

महत्व की एक बात यह भी है कांकेर विथान सभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी शंकर ध्रुव भाजपा के आशाराम नेता से मात्र 16 वोटों से हारे थे. बीजेपी ने कांकेर से  पूर्व विधायक भोजराज नाग को टिकट दी है. बस्तर में धर्मांतरण के खिलाफ एक योद्धा के रूप में उन्हें जाता है. इस सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार अभी तय नहीं हुआ है.

राजनांदगांव  लोकसभा

छत्तीसगढ़ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण सीट बन गई है राजनांदगांव, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव लड़ेंगे. उनके खिलाफ वर्तमान सांसद संतोष पांडेय पर भाजपा ने पुनः भरोसा जताया है. यह सीट भी भाजपा की परम्परागत सीट है. लोक सभा के पिछले चारों चुनाव उसने जीते हैं.

वर्तमान विधान सभा अध्यक्ष डाक्टर रमनसिंह ने 1999 के चुनाव में मोतीलाल वोरा को करीब 27 हजार वोटों से हराया था. अब भूपेश बघेल के सामने चुनौती है कि वे कांग्रेस के 25 वर्षों के सूखे को खत्म करें.  

पिछले विधान सभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र में भी  सीटों के मामले में कांग्रेस ने बढ़त हासिल की.  8 में से 5 सीटें उसने अवश्य जीती, लेकिन आठों क्षेत्रों में कुल प्राप्त मतों में वह भाजपा से 30 हजार 599 मतों से पीछे रही. भाजपा को कुल 7 लाख 5 हजार 375 वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 6 लाख 74 हजार 776 वोट. चूंकि 30 हजार  का अंतर ऐसा नहीं है कि पाटा न जा सके. इसलिए भूपेश बघेल जैसे जमीनी नेता की संभावना उज्ज्वल प्रतीत होती है.

जांजगीर-चांपा लोकसभा

नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत का विधान सभा क्षेत्र सक्ती उस जांजगीर-चांपा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत है, जहां कांग्रेस ने सभी आठों विधान सभा सीटें जीती हैं. कांग्रेस को इस संसदीय क्षेत्र की विधान सभा सीटों में कुल  6 लाख 78 हजार 451 मत मिले थे और उसने भाजपा से 1 लाख 51 हजार 645 वोटों की बढ़त हासिल की. भाजपा की वोट संख्या थी 5 लाख 26 हजार 806. विधान सभा चुनाव परिणाम के परिप्रेक्ष्य में जांजगीर-चांपा भी कांग्रेस को खुश होने का मौका दे सकती है.

बस्तर लोकसभा

बस्तर लोकसभा का 2019 का चुनाव परिणाम दिलचस्प था. यद्यपि यहां कांग्रेस के दीपक बैज 38 हजार 982 वोटों से चुनाव जीत गए थे, किंतु भाकपा ने 38 हजार और बसपा ने 30 हजार से अधिक वोट प्राप्त करके समीकरण को बिगाड़ दिया था. मजे की बात यह है कि बस्तर के 41 हजार 667 मतदाताओं ने किसी भी प्रत्याशी को पसंद नहीं किया.

नोटा के ये वोट बताते हैं कि राजनीतिक जागरूकता के मामले में बस्तर की आदिवासी जनता शहरियों से कम नहीं है. इस समय भाजपा 5 एसेम्बली सीटों पर काबिज है, जबकि कांग्रेस केवल तीन सीटें बस्तर, बीजापुर व कोंटा ही जीत पाई थी.

1998 से बस्तर लोकसभा सीट भाजपा जीतती रही है. बीजेपी ने इस बार नये चेहरे महेश कश्यप को टिकट दी है. कांग्रेस अभी तक अपना उम्मीदवार तय नहीं कर पाई है. बिलासपुर, रायगढ़  व सरगुजा में भी कांग्रेस प्रत्याशी के नाम घोषित नहीं हुए हैं.

2019 के चुनाव में ये तीनों सीटें भाजपा ने जीती थीं. बिलासपुर लोकसभा की 8 में से 6  विधान सभा सीटें, रायगढ़ की 8 में से 4 और सरगुजा की सभी 8 सीटें भाजपा के पास है.

बिलासपुर, रायगढ़, सरगुजा दुर्ग  लोकसभा

बिलासपुर लोकसभा में भाजपा ने पिछला चुनाव करीब एक लाख चालीस हजार से, रायगढ़ 66 हजार से और सरगुजा 1 लाख 57 हजार 873 वोटों से जीता था. ये सीटें भी भाजपा की परम्परागत सीटें है. बिलासपुर 1996 से ,रायगढ़ 1999 और सरगुजा 2004 से लगातार भाजपा के आधिपत्य में है, लेकिन दुर्ग का मिलाजुला इतिहास रहा है. 2004 में कांग्रेस, 2009 में बीजेपी, 2014 में पुनः कांग्रेस व 2019 में बीजेपी ने यह सीट जीती. भाजपा सरकार के सांसद विजय बघेल यहां से पार्टी के उम्मीदवार हैं. उन्होंने पिछला चुनाव 3 लाख 91 हजार 978 वोटों से जीता था. इस बार उनके खिलाफ कांग्रेस ने नये चेहरे के रूप में राजेंद्र साहू को उतारा है, अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि दुर्ग संसदीय सीट पर पुरानी परंपरा कायम रहेगी या उसमें ब्रेक लगेगा.

वैसे अभी इस लोकसभा क्षेत्र की 9 में से 7 सीटों पर भाजपा के विधायक हैं, जबकि कांग्रेस केवल दो. 2019 लोकसभा और 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की बंपर जीत के आधार पर कहा जा सकता है कि विजय बघेल को  2024 में भी बेहतर नतीजे देगा.

कोरबा लोकसभा

ध्यान आकर्षित करने वाली एक और लोकसभा सीट है कोरबा. राज्यसभा सदस्य सरोज पांडे को भाजपा ने यहां से टिकट दी है. मौजूदा सांसद है कांग्रेस की ज्योत्स्ना महंत, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत की पत्नी. परिसीमन के बाद 2008 में यह सीट अस्तित्व में आई थी. 2009 का पहला चुनाव कांग्रेस ने जीता. 2014 का बीजेपी ने और 2019 का पुनः कांग्रेस ने. सरोज पांडे दुर्ग की हैं. 2009 में इसी सीट से वे लोकसभा में पहुंची थीं. किंतु पार्टी ने उनका क्षेत्र बदलकर उन्हें ज्योत्स्ना महंत के सामने खड़ा कर दिया है. ज्योत्स्ना महत ने पिछला चुनाव मात्र 26  हजार 349 वोटों से जीता था. उसकी मुसीबत यह है कि पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को 8 में से केवल एक सीट पर जीत मिल पाई थी.

6 भाजपा ने जीतीं व एक गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने. इस क्षेत्र में इस पार्टी का खासा प्रभाव है और वह चुनाव परिणाम को प्रभावित करती रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी गोंगपा ने 37 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे. इस लिहाज से इस सीट को बचाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा.

बहरहाल चुनाव सिर पर हैं. इन पंक्तियों के लिखें जाने तक 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा नहीं हुई है. छत्तीसगढ़ में एक ब्रेक के बाद पुनः भाजपा की सरकार है. लोकसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, कहना मुश्किल है. पर छत्तीसगढ़ में मोदी-शाह के विश्वास को ठेस न पहुंचने देने की जिम्मेदारी साय सरकार की कंधों पर है.

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