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This Article is From Sep 09, 2023

रंग लाएगी छवि

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Diwakar Muktibodh
  • विचार,
  • Updated:
    September 09, 2023 7:05 pm IST
    • Published On September 09, 2023 19:05 IST
    • Last Updated On September 09, 2023 19:05 IST

छत्तीसगढ़ के पांचवें विधानसभा चुनाव की घडी जैसे जैसे नजदीक आते जा रही है, अनुमानों  का सैलाब बढ़ता जा रहा है. आम चर्चाओं में एक ही सवाल उठ रहा है कि किस पार्टी की सरकार बनेगी ? क्या कांग्रेस अपनी सत्ता कायम रखने में सफल रहेगी या भाजपा अप्रत्याशित रूप से चुनाव जीत जाएगी. लेकिन अनुमानों से परे कुछ ऐसे तथ्य हैं जो संकेत देते हैं कि भाजपा का ग्राफ निश्चितत: बढ़ेगा, कांग्रेस का घटेगा किंतु इसके बावजूद कांग्रेस अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहेगी. यानी 2018 के चुनाव में भाजपा की जैसी फज़ीहत हुई वह आगामी नवंबर में होने वाले चुनाव में नहीं होगी. करीब छह महीनों की सांगठनिक कवायद के बाद अब वह कांग्रेस को मजबूत चुनौती देने की स्थिति में आ गई है. पिछले विधानसभा चुनाव में वह सिर्फ 15 सीटों तक सिमट गई थी.उसका राज्य में लगातार तीन चुनाव जीतने का कीर्तिमान ध्वस्त हो गया था, पर अब यह आम चर्चा हैं कि प्रदेश में उसने अपनी पुरानी हैसियत पा ली है जो भूपेश बघेल के हाथों पिटने के बाद बिखरी हालत में साढे चार साल तक थी.

लेकिन कांग्रेस के लिए उसका इस तरह गिरकर खड़े होना चिंता का सबब है. दरअसल भाजपा के शीर्ष नेताओं जिनमें प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह व पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा शामिल हैं, ने छत्तीसगढ़ को अपेक्षाकृत अधिक गंभीरता से लिया है.

इसके दो प्रमुख कारण समझ में आते हैं -  पहला  2018 के चुनाव में देश में मोदी प्रभाव के बावजूद छत्तीसगढ़ में पार्टी की भयानक हार तथा दूसरा आगामी चंद महीनों में पांच राज्यों के चुनाव सम्पन्न होने के बाद मई 2024 होने वाले लोकसभा चुनाव. इन कारणों से भाजपा छत्तीसगढ़ सहित पांचों राज्यों को लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भी  देख रही है.इसीलिए वह इन राज्यों में वांछित परिणाम हासिल करने के लिए एड़ीचोटी का जोर एक कर रही है. उसके लिए ये राज्य इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें से केवल एक,मध्यप्रदेश में ही उसकी सरकार है. शेष में गैर भाजपा सरकारें. छत्तीसगढ़ व राजस्थान में कांग्रेस है, तेलंगाना में चंद्र शेखर राव की नेतृत्व वाली भारत राष्ट्रीय समिति (बीआरएस ) की सरकार है तथा मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट है. इन पांचों राज्यों में विधानसभा की कुल 679 सीटें हैं और लोकसभा की 73.

 रणनीतिक दृष्टि से यह संख्या महत्वपूर्ण है इसलिए भाजपा इन विधानसभा चुनावों को अपने लिए लोकसभा चुनाव के प्रतिबिंब के तौर पर देख रही है.राज्यों के चुनाव के परिणामों से उसे जनता का मिजाज भांपने और तदनुसार रणनीति बनाने में मदद मिलेगी.

यकीनन भाजपा दोहरे उद्देश्य के साथ मैदान में है और लगातार स्वयं को चुनावी दृष्टिकोण से मजबूत कर रही है. मध्यप्रदेश व राजस्थान में तो खैर ठीक है जहां मुख्यमंत्री पद के दावेदार छत्रपों की कमी नहीं है लेकिन छत्तीसगढ़ इस मामले में विपन्न हैं। प्रदेश में कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो भूपेश बघेल का मुकाबला कर सके. राष्ट्रीय स्तर पर जो कुछ है,नरेन्द्र मोदी व अमित शाह है. इसमें भी अमित शाह नेताओं व कार्यकर्ताओं को प्रभावित कम आतंकित ज्यादा करते है. दरअसल मुख्यमंत्री के रूप में डॉक्टर रमन सिंह के पंद्रह वर्षों के शासनकाल में सर्वाधिक नुकसान प्रदेश संगठन का हुआ. रमन के समकक्ष किसी नेता को पनपने नहीं दिया गया. एकाध वरिष्ठ नेता ने कोशिश की तो उसके पर कतर दिए गए.इसका नतीजा यह रहा कि नेताओं की दूसरी ताकतवर पंक्ति तैयार नहीं हो सकी. परिणामस्वरूप बीते साढ़े चार वर्षों में पार्टी पर अशक्त प्रतिपक्ष का तमगा चस्पा हो गया जो अब कुछ धुलता नज़र आ रहा है.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के 71 विधायक हैं. 2018 के चुनाव में  पार्टी को  प्रचंड बहुमत मिला था जिसकी खुद उसने कल्पना नहीं की थी. अब इस संख्या बल को कायम रखना ही बड़ी चुनौती है.  90 सीटों में से 15 तक सिमटी भाजपा को खोने के लिए कुछ नहीं है अलबत्ता उसे पाना ही पाना है.

अतः 2023 के चुनाव में उसकी सीटें बढ़ना तय है. समस्या कांग्रेस को है.कैसे पिछले कीर्तिमान को कायम रखते हुए सत्ता बचाई जाए. दोनों पार्टियां के घोषणा पत्र अभी जारी नहीं हुए हैं और न ही सभी सीटों पर उम्मीदवार तय हुए हैं. लेकिन जहां तक मुद्दों की बात है, दो धाराएं स्पष्ट नजर आ रही हैं. यकीनन कांग्रेस विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी. आधार होगा वे बहुतेरे कार्य जिनकी वजह से राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हुई और शहरी व ग्रामीण रोजगार का सृजन हुआ.

इसी क्रम में  किसानों को और अधिक राहत पहुंचाने की घोषणा मुख्यमंत्री पहले ही कर चुके हैं  जिसके अनुसार धान के मौजूदा समर्थन मूल्य में वृद्धि की जाएगी तथा उनसे पंद्रह की बजाए बीस क्विंटल धान खरीदा जाएगा.रसोई गैस सिलेंडर 500 रूपए में उपलब्ध कराने की बात भी कही जा चुकी है। स्पष्ट है कि कांग्रेस पुनःअपने संकल्प पत्र के जरिए आम जनता को आकर्षित करने की तैयारी में है। जबकि भाजपा में विचार मंथन चल रहा है. वैसे घोषित हो चुके आरोप-पत्र में उसने ईडी के छापों के जरिए सरकार में कथित रूप से व्यापक भ्रष्टाचार को बडे़ मुद्दे के रूप में उठा लिया है। इस सूची में कांग्रेस द्वारा शराब बंदी के वायदे के साथ अन्य में भी वादाखिलाफी के आरोप शामिल है. यद्यपि घोषणा पत्र के जरिए अभी वादों का पिटारा खुलना बाकी है लेकिन भ्रष्टाचार  कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जो भाजपा की किस्मत बदल दें.

जहां तक छवि का प्रश्न है , यह तुरूप का वह इक्का है जो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास है.वह  है - छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति व लोक परम्पराएं जो ग्रामीण जनजीवन का महत्वपूर्ण अंग है , उसका भावनात्मक आधार है। मुख्यमंत्री ने इसमें स्वयं की भागीदारी सुनिश्चित करके इसे जिस तरह समृद्ध किया है वह लोक के साथ साथ राजनीतिक दृष्टि से भी लाजवाब है। अपने 15 वर्षों के शासनकाल में रमन सिंह जिसकी कल्पना भी नहीं कर पाए थे वह भूपेश बघेल ने साढ़े चार साल में कर दिखाया है. व्यक्ति के रूप में भूपेश बघेल की छवि विशुद्ध रूप से ठेठ छत्तीसगढिय़ा की है जो परम्पराओं में जीता है, खेती किसानी व मजदूरी करता है, हल चलाता है,  भंवरा , गिल्ली डंडा खेलता है व गेडी भी चढ़ता है. समूचे भाजपा पर उनकी यह छवि भारी है और इस लिहाज से वह कांग्रेस की बहुसंभावित जीत का प्रमुख आधार भी है.

 दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखते है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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