Ustad Allauddin Khan: भारतीय शास्त्रीय संगीत (Indian Classical Music) का जिक्र हो और किसी घराने की बात न हो ऐसा भला हो सकता है क्या? ऐसा ही एक घराना है “मैहर” (Maihar Gharana), जिसकी नींव रखी थी भारतीय संगीत के भीष्म पितामह कहे जाने वाले उस्ताद अलाउद्दीन खां (Ustad Allauddin Khan) ने. उस्ताद अलाउद्दीन खां ने संगीत क्षेत्र में योगदान दिया और उन्होंने मैहर कॉलेज ऑफ म्यूजिक (Maihar College of Music) की स्थापना की. उन्हें 1952 में संगीत नाटक अकादमी ने सम्मानित किया. इतना ही नहीं भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी नवाजा. अलाउद्दीन खां का 6 सितंबर 1972 को निधन हो गया और इस तरह से भारतीय शास्त्रीय संगीत का फनकार जुदा हो गया.
''मध्यप्रदेश के गौरव'' की इस कड़ी में हम आपको विख्यात सरोद वादक अलाउद्दीन खाँ साहब के बारे में बता रहे हैं। ‘'पद्म विभूषण,'' ''पद्म भूषण'' सहित अनेक सम्मानों से सम्मानित इस प्रतिभाशाली कलाकार ने संगीत जगत को अनेक नवीन राग दिए। pic.twitter.com/nDMNjDQGYw
— Culture Department Madhya Pradesh (@culturempbpl) January 10, 2024
ऐसा था जीवन
बाबा अलाउद्दीन खां ने अपने पूरे जीवन में कई संगीतकारों को सुना और उनसे सीखा भी. वे जहां भी गए और जो भी चीज उन्हें प्रेरित करती थी तो वे उसे अपना लेते थे. संगीत पर उनकी पकड़ का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि मैहर घराने ने ही बारूद की जगह बंदूकों से संगीत निकालने की अनोखी कला को विकसित किया.
मैहर घराने की स्थापना
रामपुर के संगीतकारों का उन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपनी खुद की एक शैली विकसित कर ली, जिसे बीनकार घराने की ध्रुपद शैली के अलाप ने पूरा किया. आगे चलकर उस्ताद अलाउद्दीन खां ने भारतीय संगीत के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की नींव रखी. इस घराने का नाम मैहर राज्य की वजह से पड़ा, जहां उन्होंने अपना अधिकतर जीवन बिताया था.
मशहूर फिल्मकार संजय काक ने उस्ताद अलाउद्दीन खां पर एक डाक्यूमेंट्री भी बनाई. इस डॉक्यूमेंट्री को जिसने भी देखा वो उस्ताद अलाउद्दीन खां का मुरीद हो गया. उस्ताद अलाउद्दीन खां सिर्फ गायक और वादक ही नहीं थे, बल्कि ढोल बजाने में भी कमाल थे. वे पखावज और तबला बजाने में भी माहिर थे. संगीत के अलावा उनका दूसरा प्यार बेगम मदीना थीं. प्रेम इतना कि उस्ताद अलाउद्दीन खां ने अपनी पत्नी मदीना बेगम के नाम पर एक नया राग ‘मदनमंजरी राग' रच डाला. बताया जाता है कि शुरुआत में तो उन्हें इस राग का नाम समझ नहीं आया था, बाद में उन्होंने काफी सोचने के बाद इसे मदनमंजरी नाम दिया.
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