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सावधान ! कहीं पन्ना रिपीट न हो बांधवगढ़ में, बाघों पर बढ़ते खतरे को लेकर उठी CBI जांच की मांग

टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में बाघों पर खतरा बढ़ता जा रहा है, वह भी वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से..ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट ये अंदेशा जता रहे हैं. उन्होंने तो इस पूरे मामले की CBI जांच तक की मांग कर दी. उनका कहना है कि स्थिति कहीं साल 2009 के पन्ना टाइगर रिजर्व जैसी न हो जाए जब पन्ना से बाघों का पूरी तरह से सफाया हो गया था.

सावधान ! कहीं पन्ना रिपीट न हो बांधवगढ़ में, बाघों पर बढ़ते खतरे को लेकर उठी CBI जांच की मांग

Tiger in Madhya Pradesh: टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में बाघों पर खतरा बढ़ता जा रहा है, वह भी वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से..ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट (Wildlife Activist) ये अंदेशा जता रहे हैं. उन्होंने तो इस पूरे मामले की CBI जांच तक की मांग कर दी. उनका कहना है कि स्थिति कहीं साल 2009 के पन्ना टाइगर रिजर्व (Panna Tiger Reserve) जैसी न हो जाए जब पन्ना से बाघों का पूरी तरह से सफाया हो गया था. दरअसल मध्यप्रदेश के वन विभाग (Forest department) की एक खास रिपोर्ट के हवाले से NDTV ने चौंकाने वाला खुलासा किया था. रिपोर्ट में राज्य में बाघों की मौतों में चिंताजनक बढ़ोतरी और जांच में लापरवाही के साथ खामियों का जिक्र है. इसमें सिर कटे बाघ का शव मिलने का भी जिक्र है. 

वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की है. दुबे ने कहा-

मध्यप्रदेश के माथे पर एक काला धब्बा साल 2009 में लग चुका है. उस वक्त पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों का पूरी तरह से सफाया हो गया था. तब की जांच रिपोर्ट में हमने देखा था कि तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव मलय राव ने लिखा था कि अंतरराष्ट्रीय तस्कर मध्यप्रदेश में सक्रिय हैं. इसके अलावा फील्ड डायरेक्टर ने भी लिखा था कि वन अधिकारी बाघों के शिकार में शामिल हैं. यही स्थिति आज बांधवगढ़ में हो रही है जो पहले पन्ना में हो चुका है. 

अजय दुबे

वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट

अजय दुबे का मानना है कि बाघों के शिकार और वन्यजीव मामलों में विशेषज्ञता रखने वाली सीबीआई को इस मामले की जांच करनी चाहिए क्योंकि जब वन अधिकारी शामिल होते हैं, तो हम निश्चित रूप से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं कर सकते. दुबे ने आगे बताया कि शहडोल डिवीजन में बाघों की मौत की जांच में एक सिंडिकेट माफिया, बाहरी शिकारी और स्थानीय वन अधिकारियों की संलिप्तता की बात सामने आई है। जब भी जंगल के अंदर शिकार होता है, वन विभाग की खुफिया विफलता शिकारियों के लिए काम को सफल बनाने में मदद करती है. शहडोल में तैनात पूर्व फील्ड डायरेक्टर या पूर्व सीसीएफ लापरवाह थे. कोई भी गंभीर छापेमारी नहीं की गई. जिसकी वजह से पकड़े गए शिकारियों को अपर्याप्त सबूतों के कारण दोषी ठहराया नहीं जा सका. कोर्ट ने वैज्ञानिक सबूतों की कमी के कारण आरोपियों को बरी कर दिया. दरअसल पूरा मामला गहन जांच की मांग करता है.

दूसरी तरफ  वन एवं पर्यावरण मंत्री रामनिवास रावत से जब NDTV ने मामले प्रतिक्रिया चाही तो उन्होंने कार्रवाई का आश्वासन दिया है. उन्होंने कहा कि आपने मुझे जानकारी दी है, मैं रिपोर्ट मंगवाकर उचित कार्रवाई करूंगा. 

बता दें कि वन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 6 मार्च, 2024 को, वन संरक्षक के प्रभार में प्रधान मुख्य वन संरक्षक शुभ रंजन सेन ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और इसके आसपास के वन मंडलों में बाघों की मौतों और शिकार की घटनाओं का खुलासा करते हुए एक आदेश जारी किया.आदेश में इन मामलों के निपटान में गंभीर लापरवाही को उजागर किया गया, जिससे 2021 से 2023 तक बाघों की मौतों की जांच के लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया। NDTV ने इस समिति की रिपोर्ट कॉपी मौजूद है.

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