
Suicide Case: भिंड के आलमपुर नगर परिषद में पदस्थ एक चपरासी ने वेतन न मिलने और लगातार मानसिक प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली. मृतक की पहचान आशिफ अली खान वार्ड क्रमांक 8 निवासी के रूप में हुई है. वह गुरुवार रात ड्यूटी से लौटने के बाद घर पर अपने कमरे में सोने चला गया था, लेकिन सुबह देर तक न उठने पर जब परिजनों ने दरवाजा खोला तो उसका शव कमरे में मिला. पुलिस ने मौके पर पहुंचकर जेब से 4 पेज का सुसाइड नोट बरामद किया है, जिसमें आशिफ ने अपनी मौत की पूरी कहानी लिखी है.
सुसाइड नोट में लिखा दर्द
आशिफ ने सुसाइड नोट में लिखा है कि “मुझे खून की उल्टियां हो रही थीं, इलाज कराने के लिए रुपए नहीं थे, इसलिए बीमारी घरवालों से छिपाए रखी. बेटियों को छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा, लेकिन दर्द बहुत है, अब जाना पड़ेगा."
आगे लिखा है कि “मुझे नगर परिषद द्वारा दिसंबर 2023 से वेतन नहीं दिया गया. उल्टा बहुत प्रताड़ित किया गया. मैंने घर-घर घूमकर राजस्व की वसूली की, फिर भी सैलरी रोक दी गई. मेरी चार बेटियां हैं, उनका खर्च कैसे उठाऊं? टेंशन में पेट दर्द और खून की उल्टी की शिकायत हो गई, लेकिन घरवालों को नहीं बताया. मैं कोर्ट से स्टे ले आया था, तब भी वेतन नहीं दिया गया. अगर मैं गलत था तो शेष चार कर्मचारी सलामत, महेंद्र, देवेंद्र और अख्तर वेग मिर्जा को सैलरी किस आधार पर दी गई? मैंने राहुल बाबू जी से भी बात की, पर किसी ने नहीं सुनी... कौन मरना चाहता है, लेकिन मजबूरी सब कराती है.”
नगर परिषद प्रशासन में हड़कंप
सुसाइड नोट सामने आने के बाद आलमपुर नगर परिषद प्रशासन में हड़कंप मच गया. आनन-फानन में अधिकारियों ने मृतक के परिजनों को एक महीने का वेतन भुगतान कर दिया.
पुलिस जांच शुरू
आलमपुर थाना पुलिस ने मर्ग कायम कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और मामले की जांच शुरू कर दी है.
बताया गया कि आशिफ 2016 से नगर परिषद में विनियमित कर्मचारी के रूप में काम कर रहा था. बताया जा रहा है कि आशिफ सहित पांच कर्मचारियों की नियुक्ति पर तत्कालीन सीएमओ प्रमोद बरुआ ने आपत्ति लगाई थी. इसके बाद उनका वेतन 20 हजार से घटाकर 5 हजार रुपए कर दिया गया था. वेतन कटौती से परेशान होकर आशिफ ने कोर्ट की शरण ली थी, जिसके बाद दिसंबर 2023 में उसका वेतन पूरी तरह रोक दिया गया था. आशिफ अली खान की आत्महत्या ने नगर परिषद के कामकाज और वेतन वितरण प्रणाली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. कर्मचारियों का कहना है कि “जब एक गरीब कर्मचारी को उसका हक तक नहीं मिलता, तो वह आखिर करे भी तो क्या?
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