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Holi Special: बुंदेलखंडी होली क्यों होती है खास? पर्यावरण-संस्कृति को बचाने के साथ पांच दिन चलता है फाग उत्सव

Bundelkhandi Holi: बुंदेलखंड की होली खुद में बहुत खास होती है. यहां टेसू के फूलों से नेचुरल रंग बनाए जाते हैं और चौपालों पर फाग गाए जाते हैं. आइए आपको बताते हैं कि इस होली में क्या खास होता है.

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Holi Special: बुंदेलखंडी होली क्यों होती है खास? पर्यावरण-संस्कृति को बचाने के साथ पांच दिन चलता है फाग उत्सव
फाग में पूरी तरह मस्त हो जाते हैं बुंदेली लोेग

Chhatarpur News: बुंदेलखंड (Bundelkhand) में हर साल की तरह इस साल भी होली (Holi 2024) पर्व की तैयारियां परंपरागत रूप से की गई हैं. छतरपुर में गांव-गांव में गोबर के कंडे, ओपल और बरूला बनाए जा रहे हैं. होली पर इन्हीं कंडों को जलाकर लोग परंपरागत रूप से होली का पर्व मनाते हैं. हर साल यहां पर पांच दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है. होलिका दहन (Holika Dahan) से लेकर रंग पंचमी तक बुंदेलखंड के गांवों की चौपालों में फाग गायन, होली मिलन समारोह से लेकर अन्य कार्यक्रम होते हैं. इस दौरान भाई-दूज का पर्व और पंचमी महोत्सव (Panchami Mahautsav) भी मनाया जाता है. बुंदेलखंड की होली लोगों को पर्यावरण संरक्षण और लोक संस्कृति के संरक्षण का संदेश देती है.

श्रृंगार रस से भरपूर होती है चौपालों की फाग

बुंदेलखंड इलाके में फागुन के महीने में गांव की चौपालों में फाग की अनोखी महफिलें जमती हैं, जिनमें रंगों की बौछार के बीच अबीर-गुलाल से सने चेहरों वाले फगुआरों के होली गीत (फाग) जब फिजा में गूंजते हैं तो ऐसा लगता है कि श्रृंगार रस की बारिश हो रही है. फाग के बोल सुनकर बच्चे, जवान व बूढ़ों के साथ महिलाएं भी झूम उठती हैं. छोटे बच्चे नगाड़ा बजाकर फाग शुरू होने का ऐलान करते दिखाई देते हैं तो वहीं महिलाएं भी इस मस्ती से पीछे नहीं रहती हैं. वे भी एक-दूसरे को रंग-अबीर लगाती हुई फाग के विरह गीत गाकर माहौल को और भी रोमांचक बना देती हैं.

पलाश के फूलों से खेली जाती है होली

सुबह हो या शाम, गांव की चौपालों पर सजने वाली फाग की महफिलों में केमिकल वाले रंगों की जगह टेसू के फूलों या महावरी रंगों का इस्तेमाल हमेशा से होता रहा है. समूचे बुंदेलखंड में दूसरे दिन दोज पर्व के दिन होली खेली जाती है. इस मौके पर होली का उत्साह देखते ही बनता है. किसानों को भी पर्व के बहाने ही सही थोड़े पल की राहत और सुकून मिल जाता है. समय के साथ बदलाव आने के बाद भी यहां के ग्रामीण जीवन में आज भी कोई बदलाव नहीं आया है. बुंदेलखंड में पर्वों को सांस्कृतिक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है. यहां होली पर्व की छटा तो फाल्गुन महीने के साथ ही शुरू हो जाती है.

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कुछ खास होती है यहां की होली

बुंदेलखंडी होली अपने आप में सबसे अनूठी रही है. ईसुरी का फाग गायन और टेसू के फूलों की होली की अब केवल यादें ही शेष रह गई हैं. लेकिन, इस इलाके में गांव वाले आज भी इस तरह ही होली मनाते हैं. ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार के साथ उड़ते हुए अबीर-गुलाल के साथ मदमस्त किसानों का बुंदेलखंडी होली गीत गाने का अंदाज-ए-बयां इतना अनोखा और जोशीला होता है कि श्रोता मस्ती में चूर होकर थिरकने और नाचने पर मजबूर हो जाते हैं.

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