वैसे तो अस्पताल मरीजों के उपचार के लिए होते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सरकारी अस्पतालों (Government hospitals) को खुद ही इलाज की जरूरत है. भीषण गर्मी के बीच जिले में बढ़ी बीमारियों के बीच अस्पतालों में मरीजों के इलाज की उचित व्यवस्था तक नहीं है. अस्पताल में पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण मरीज फर्श पर ही लेट कर ही इलाज कराने को मजबूर हो रहे हैं. वहीं फर्श पर मरीजों का इलाज होने के चलते उन्हें दूसरे मरीजों से भी इन्फैक्शन फैलने का डर सता रहा है. अस्पतालों में मिलने वाली सुविधाओं की खस्ताहाल के कारण मरीजों और परिजनों को परेशानियों की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है.
400 बिस्तर का अस्पताल, फिर भी समस्या बरकरार
कहने के लिए तो सीधी के जिला अस्पताल 400 बिस्तर का अस्पताल है. इसके बावजूद भी मरीज को बेड की सुविधा नहीं मिल रही है. सीधी जिले के खंड स्तर पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी संचालित हो रहे हैं, इसके बावजूद मरीज की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ रही है कि यहां के हाल बेहाल हो गए हैं. मरीज अस्पताल के बने बरामदे में ही बोतल और इंजेक्शन लगवाने को मजबूर हैं. इतना ही नहीं इस भीषण गर्मी में तपती फर्श पर बिना चादर और कंबल के ही मरीज लेटे हुए नजर आ रहे हैं. ऐसे में मानवीय संवेदनाएं भी लगातार प्रभावित हो रही हैं.
बता दें कि ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले गरीब तबके के लोग 24 घंटे इसी फर्श पर लेट कर उपचार कराने को मजबूर दिखते हैं.
मरीजों को जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा
जिला अस्पताल में भर्ती मरीज और उनके परिजनों को अब जनप्रतिनिधियों से व्यवस्था सुधार की अपेक्षा है. अस्पताल में मौजूद मरीजों ने कहा कि जिला अस्पताल में वार्ड और बेड की संख्या बढ़ाई जाए, ताकि हमें फर्श पर लेट कर उपचार कराने को मजबूर ना होना पड़े और हमें भी बेहतर उपचार सुविधा मिल सके.
आज फर्श पर 24 घंटे बिना कंबल-चादर के मरीजों के पड़े रहना शासन की व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े कर रही है. हर दिन यहां सैकड़ों की संख्या में मरीज फर्श पर लेटकर उपचार कराते हैं. भीषण गर्मी में वैसे भी लोगों का जीवन संकट में है और बीमार व्यक्ति यहां स्वास्थ्य सुधार के बजाय और दूसरी बीमारी हो जा रही है.
जिले के सांसद, विधायक भी जिला अस्पताल की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं. ऐसे में अस्पताल की स्थितियां दिनबदिन बदहाल होते जा रही है.
गंभीर मरीजों के लिए नीचे नहीं है व्यवस्था
अस्पताल में भर्ती होने के लिए आने वाले गंभीर मरीजों के उपचार व्यवस्था के लिए प्रथम तल पर जाना होता है ऐसे में समय भी लगता है और परेशानी भी होती है.
मरीजों के परिजनों ने कहना है कि अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर ही गंभीर मरीजों की उपचार की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि आने-जाने में परेशानी कम हो और गंभीर मरीजों को वार्ड में जल्दी शिफ्ट भी किया जा सके.
बता दें कि कई दशक पहले बने इस जिला अस्पताल का कायाकल्प हुआ, लेकिन आवश्यकता के अनुरूप इसका विकास नहीं हो सका, जिसका खामियाजा मरीजों और उनके परिजनों को भुगतना पड़ रहा है.
आईसीयू एवं एसएनसीयू के सिर्फ एक बार्ड
जिला अस्पताल में गंभीर मरीजों की संख्या उपचार के लिए बढ़ती है ऐसे में एक ही वार्ड आईसीयू के रूप में संचालित हैं और एक वार्ड एसएनसीयू के रूप में संचालित है मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण अन्य मरीज भर्ती नहीं हो पाते हैं. निर्धारित बेड के आधार पर ही यहां मरीज भर्ती किए जाते हैं. ऐसे में अन्य मरीजों को बाहर दूसरे अस्पतालों का रुख करना पड़ता है. यदि यहां आईसीयू और एसएनसीयू के वार्ड में वृद्धि हो जाए तो मरीजों को काफी सुविधा मिलेगी और स्थानीय स्तर पर ही उनका उपचार हो सकेगा.
दिनों दिन बढ़ रही मरीजों की संख्या: सिविल सर्जन
एनडीटीवी से बातचीत करते हुए सिविल सर्जन डॉ एस बी खरे ने बताया कि गर्मी के चलते उल्टी दस्त के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. वहीं मरीजों की संख्या बढ़ने से बेड की कमी हो रही है. पहले से ही बेड मरीजों से भरे हुए हैं. ऐसे में नए आने वाले मरीजों को मजबूरी में फर्श पर ही बोतल इंजेक्शन लगाना पड़ता है. यदि यहां वार्डों की संख्या बढ़ जाए तो मरीजों को बेड मिलने लगेंगे और उपचार सुविधा भी बेहतर हो जाएगी.