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Republic Day 2025: ग्वालियर से भी है भारतीय संविधान का गहरा नाता, सोने वाली मूल प्रति आज भी हैं सुरक्षित, जानें-इसके बारे में

Original Constitution Copy: भारतीय संविधान की एक मूल प्रति आज भी ग्वालियर में सुरक्षित रखी गई है. इसे देखने का मौका साल में एक बार ही मिलता है. आइए आपको गणतंत्रता दिवस के अवसर पर इस मूल प्रति के बारे में बताते हैं. 

Republic Day 2025: ग्वालियर से भी है भारतीय संविधान का गहरा नाता, सोने वाली मूल प्रति आज भी हैं सुरक्षित, जानें-इसके बारे में
ग्वालियर में संविधान की मूल प्रति सुरक्षित

Gwalior Republic Day 2025: हम इस समय अपना गणतंत्र उत्सव (Republic Day 2025) मना रहे हैं. यह गणतंत्र हमें लंबे दशकों तक चले स्वतंत्रता आंदोलन और हजारों लोगों के बलिदान के बाद ही मिला. स्वंतत्र भारत को गणतंत्र के रूप में स्थापित करने का काम हमारे संविधान ने किया. इसके निर्माण के लिए देश के नेताओं, समाज सुधारक, न्यायवेत्ता, आदि ने देश भर घूम - घूमकर देश की जरूरतों, मान्यताओं और परिस्थितियों का वर्षों अध्ययन किया और लंबी कवायद के बाद 26 नवंबर 1949 को देश के लिए एक सर्वश्रेष्ठ संविधान (Constitution) का निर्माण किया. वैसे तो भारतीय संविधान हमारी संसद का हिस्सा है, लेकिन ग्वालियर से इसका नजदीकी रिश्ता हैं. ग्वालियर अंचल के लिए बड़े गौरव की बात है कि संविधान की मूल प्रति ग्वालियर में भी सुरक्षित है और आज गणतंत्र दिवस पर यह सबको देखने के लिए मिलती है. 

संविधान की मूल प्रति आज भी है सुरक्षित

संविधान की मूल प्रति आज भी है सुरक्षित

क्यों खास है संविधान की मूल प्रति 

ग्वालियर में महाराज बाड़ा स्थित केंद्रीय पुस्तकालय में आज भी भारतीय संविधान की एक मूल दुर्लभ प्रति पूरे सम्मान के साथ सुरक्षित रखी हुई है. इसे हर साल संविधान दिवस, गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर आम लोगों को दिखाने की व्यवस्था की जाती है. अब यह केंद्रीय पुस्तकालय डिजिटल हो चुका है. लिहाजा, इसकी डिजिटल कॉपी भी देखने को मिलती है. हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग अपने संविधान की इस मूल प्रति को देखने ग्वालियर पहुंचते हैं. 1927 में सिंधिया शासकों ने इस केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना कराई थी. तब यह मोती महल में स्थापित किया गया था. 

ऐसे ग्वालियर पहुंची संविधान की मूल प्रति 

आंग्ल भाषा में पूरी तरह हस्त लिखित गणतंत्र के इस महत्वपूर्ण दस्तावेज की कुल 11 प्रतियां तैयार की गयीं थी. इसकी एक प्रति संसद भवन में रखने के साथ नौ अन्य प्रतियां देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजने का फैसला तब संविधान सभा और संसद ने लिया था. इसका मकसद था कि लोग अपने संविधाना को देख सकें. लोगों का इससे भावनात्मक रिश्ता सदैव कायम रहे.  इसी निर्णय के तहत संविधान की एक मूल प्रति ग्वालियर के केंद्रीय पुस्तकालय में भेजी गयी थी. इसकी सुरक्षा और संरक्षण की खास व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई थी.  

संविधान सभा के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर

इसकी एक खास बात यह भी है कि इसकी सभी ग्यारह पाण्डुलिपियों के अंतिम पन्ने पर संविधान सभा के सभी 286 सदस्यों ने मूल हस्ताक्षर है. इसमें सबसे ऊपर पहला हस्ताक्षर देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के हैं. इनके अतिरिक्त संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. भीम राव आंबेडकर और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के भी हस्ताक्षर हैं. 

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सोने से की गयी है रूप सज्जा 

संविधान की इस पाण्डुलिपि की रूप सज्जा भी अद्भुत है. इसके पहले पन्ने को सोने से सजाया गया है. इसके अलावा, हर पृष्ठ की सज्जा और नक्काशी पर भी स्वर्ण पॉलिश से लिपाई की गयी है. संविधान की इस पाण्डुलिपि में भारत के गौरवशाली इतिहास की झलक भी मिलती है. इसके अलग-अलग पन्नों पर इतिहास के विभिन्न कालखंडों यानी मोहन-जोदड़ो, महाभारत काल, बौद्ध काल, अशोक काल से लेकर वैदिक काल तक मुद्राएं, सील और चित्र अंकित क्र इस बात को परिलक्षित किया गया है कि हमारी भारतीय संस्कृति, परम्पराएं, राज-व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्थाएं अनादिकाल से ही गौरवशाली और व्यवस्थित थी.  

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