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सरकार का दावा- 1 साल में भोपाल के कचरे को ठिकाने लगा देंगे, सवाल-पीड़ितों को राहत कब?

भोपाल गैस त्रासदी हर कदम पर त्रासद ही रही है.अब सरकार यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से 350 मीट्रिक टन जहरीले कचरे का निपटान इंदौर के पीथमपुर स्थित ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फैसिलिटी में करने जा रही है. परेशानी ये है कि यहां भी कचरे के निष्पादन के लिए किए गए परीक्षणों में से छह असफल ही रहे हैं. इस अभियान की चर्चा पूरे देश में है.

सरकार का दावा- 1 साल में भोपाल के कचरे को ठिकाने लगा देंगे, सवाल-पीड़ितों को राहत कब?

Bhopal gas Toxic waste:भोपाल गैस त्रासदी हर कदम पर त्रासद ही रही है.अब सरकार यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से 350 मीट्रिक टन जहरीले कचरे का निपटान इंदौर के पीथमपुर स्थित ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फैसिलिटी में करने जा रही है. परेशानी ये है कि यहां भी कचरे के निष्पादन के लिए किए गए परीक्षणों में से छह असफल ही रहे हैं. इस अभियान की चर्चा पूरे देश में है. ऐसे भोपाल गैस त्रासदी के शिकार लोगों की वर्तमान में स्थिति जानना जरूरी हो जाता है. सबसे पहले आप आंकड़ों को ही जान लीजिए जिस पर 40 साल बाद भी सरकारी एजेंसियां एकमत नहीं हैं. केन्द्र सरकार भोपाल गैस त्रासदी में मृतकों के आंकड़े को 5295 बताती रही है,मध्यप्रदेश सरकार 15342 और ICMR के मुताबिक इस हादसे में लगभग 25000 लोगों की मौत हुई. हालांकि अब प्रदेश सरकार का दावा है कि एक साल में कचरे का निष्पादन हो जाएगा.

संयुक्त राष्ट्र के ऑफर को अनसुना किया

बता दें कि साल  2014 में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने जहरीले कचरे का आंकलन करने की पेशकश की थी, लेकिन सरकार ने इसे अनसुना कर दिया. हज़ारों टन जहरीले कचरे की वजह से 4km से ज्यादा के इलाके का भूजल प्रदूषित हो गया, वहां आज भी हज़ारों बच्चे जन्मजात विकृति से पैदा हो रहे हैं.जानकार मानते हैं कि यूनियन कार्बाइड और डाउ केमिकल को प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle) के तहत जहरीले कचरे के निष्पादन के लिये भुगतान करना चाहिये, लेकिन इन कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जबकि कंपनी का दावा है कि वे भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं.

40 साल बाद भी असर जारी है

 दरअसल यूनियन कार्बाइड ने जो जहर उगला था वो सिर्फ 40 साल पहले नहीं, 40 साल बाद भी अपना असर दिखा रहा है. फ़ैक्ट्री के आस पास की बस्ती और कॉलोनी में पानी इतना दूषित है कि कई वो लोगों की जान ले चुका है. अभी भी यहां जो पानी आता है उससे बाल्टी- कूलर में सफ़ेद निशान और पपड़ी हफ्तों में जम जाती है. लोगों की शिकायत है शुगर के साथ कई लोगों को हार्ट अटैक का भी सामना करना पड़ा है. स्थानीय निवासी कमला बताती हैं कि  0 साल हो गए हैं पर आज भी खुजली होती है और काफी देर तक ठीक नहीं होती. यहीं के रहने वाले बाथम का कहना है कि जब से गैस निकली है तब से हम बहुत परेशान हैं. ना पानी सही आता है ना ही आराम से रह पाते हैं. इतने साल होने के बाद भी दवा खानी पड़ रही है. यहां आने वाला पानी दूषित है, इस से कई बीमारियां हो रही है. हमारे बच्चे को यह पानी पीने से अटैक आया था. पूरे कॉलोनी वाले परेशान है. मेरी पत्नी का पिछले 18 सालों से इलाज जारी है.

"बच्चे चल, बैठ और बोल नहीं पाते"

दरअसल यूनियन कार्बाइड कंपनी से दो किलोमीटर की दूरी पर बसे बृज विहार कॉलोनी में लोगों ने घर तो ख़रीदे हैं लेकिन कई अपने घर में तालाबंद कर कहीं और किराये से रह रहे हैं. उनका कहना है कि  यहां रहने पर उनके बच्चे और पूरे परिवार की तबियत अक्सर ख़राब ही रहती थी. इसी कॉलोनी की रहने वाली चंद्रमा देवी बताती हैं कि जब यह हादसा हुआ तो उनका परिवार इसका शिकार हुआ. बे बताती हैं कि अभी भी दर्द होता है, आंखों में जलन, ब्लड प्रेशर और सांस फूलने की शिकायत रहती है. पानी दूषित हो जाने से पेट में दर्द और जलन होती थी. हमें अलग जगहों से पानी भरना पड़ता है. मेरा पोता 6 साल का हैं, पर आज भी ठीक से चलने,बैठने और बोलने में दिक्कत होती है. 

कचरे को नष्ट करने का फैसला हो चुका है, बदलेगा नहीं: मंत्री

हादसे के वक्त कांग्रेस की सरकार थी और अब 20 साल से प्रदेश में बीजेपी का शासन है. लेकिन, 40 सालों से लोगों को इंसाफ नहीं मिला. जहरीला कचरा नहीं हटा. हालांकि प्रदेश के गैस राहत और पुनर्वास मंत्री कुंवर विजय शाह का इस मुद्दे पर कुछ और ही कहना है. वे कहते हैं-  मेरे मंत्री बनने के बाद, हमने कचरे के लिए भारत सरकार से बजट लिया. हम केंद्र के साथ मिलकर प्रयास कर रहे हैं और उसी के सहयोग से काम कर रहे हैं. मेरे मंत्री बनने से पहले ही इसके क्रियान्वयन के लिए निविदाएं जारी की गई थीं. हमारी अपेक्षा है कि सारा कचरा एक साल के भीतर जलाया जाए. कचरे के नष्ट करने के संबंध में एक निर्णय है, और हम इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते. बहरहाल स्थिति ये है कि भोपाल गैस त्रासदी के बाद जो बच गये वो सालों बाद भी तिल तिल कर मरने को मजबूर हैं. उनके ही पैसे, उनके ही नाम पर कचरे में फेंके जा रहे हैं. जब निपटारे की बात आई है तो वो भी उनकी सेहत पर बुरा असर डाल सकती है. 
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