
What is Paras Patthar Mystery: पारस पत्थर... इस नाम को आपने कई बार सुना होगा. किसी ने इसे जादुई पत्थर कहा तो किसी ने चमत्कारी पत्थर. सिर्फ भारतीय परंपरा में ही नहीं, बल्कि पश्चिमी सभ्यताओं में भी इस पत्थर का जिक्र मिलता है. इस रहस्यमयी पारस पत्थर का इतिहास मध्य प्रदेश से भी जुड़ा हुआ है. इस पत्थर को हासिल करने के लिए मध्य प्रदेश के रायसेन के किले में कई बार खूनी जंग हुई और खून की नदियां बहाई गईं थी.
पारस पत्थर के लिए रायसेन किला पर 14 हमले
पारस पत्थर के लिए मध्य प्रदेश के रायसेन किला को कई बार तबाह किया गया. दरअसल, 12वीं सदी से लेकर 16वीं शताब्दी तक मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस किले पर 14 बार हमले किए. हर आक्रमण के दौरान किले में हजारों लोगों का खून बहा. इतना ही नहीं इस किले में कई बार रानियों ने जौहर भी किया.
राजाओं की हार के बाद कई बार रानियों ने किले में किए जौहर
राजा पूरनमल और शेरशाह सूरी की जंग के बाद इस किले में रानियों ने जौहर किया था. जब हार और जंग में पति पूरनमल की हत्या के बाद रानी रत्नावली ने सैकड़ों रानियों के साथ जौहर किया था. वहीं पूरममल को हराने के बाद रायसेन किले पर शेरशाह सूरी ने शासन किया. हालांकि कुछ साल तक सूरी ने शासन चलाया. बता दें कि शेरशाह को ये किला इतना भाया कि इसकी सुरक्षा के लिए उसने अफगानिस्तान से तोपें मंगवा लीं.
वहीं पारस पत्थर की तलाश करते करते शेरशाह इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन तब से लेकर अब तक वो पारस पत्थर ना तो किसी के हाथ लगा और ना ही पूरे किले में इसका पता चला. आखिर परमार राजा ने वो चमत्कारी पत्थर कहां छिपा दिया?
राजा परमार ने कराया था रायसेन किले का निर्माण, जानें इसका इतिहास
बता दें कि रायसेन किले को 10 से 11 शताब्दी के दौरान रायसेन के राजा परमार रायसिंह ने बनवाया था. उस वक्त दुर्ग में लगभग 15 से 20,00 सैनिक राजा और उसकी प्रजा रहा करती थी. किले के निर्माण के समय पानी की उपलब्धता के लिए यहां पर चार बड़े तालाब बनाए गए थे.
पारस पत्थर का चमत्कारी रहस्य
पारस पत्थर के बारे में कहा जाता है कि ये वो पत्थर है जिसे छूते ही लोहा भी सोना बन जाता है. माना जाता है कि भोपाल से 50 KM दूर रायसेन के किले में ये पत्थर आज भी मौजूद है. हालांकि इसका कोई प्रमाण अभी तक नहीं मिला है.
क्या है रायसेन किले में पारस पत्थर का रहस्य?
इतिहासकारों के मुताबिक, रायसेन के किले में पारस पत्थर को लेकर कई बार युद्ध हुए थे. जब राजा परमार को लगा कि वो युद्ध हार जाएंगे तो उन्होंने पारस पत्थर को किले में मौजूद तालाब में फेंक दिया था. इसके बाद राजा ने किसी को नहीं बताया कि पत्थर कहां छिपा है, लेकिन माना जाता है कि पत्थर आज भी इसी किले में मौजूद है. वहीं पारस पत्थर की तलाश में आज भी लोग इस किले में आते हैं और इसकी खुदाई करते हैं, लेकिन ये पत्थर आज तक किसी के हाथ नहीं लगा और ये आज भी रहस्यमयी बना हुआ है.