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Ground Report : ज़रा सोचिए ! जिन्हें पीने का पानी नहीं नसीब, कैसे काटते होंगे ज़िंदगी ? 

Nal Jal Yojna MP : NDTV के रिपोर्टर संजय दूबे ने जब लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सब इंजीनयर आर. के. राजपूत से बात की तो उन्होंने दावा किया कि पिसुआ और बांदाखेड़ा में नल-जल योजना चालू है. हालांकि उनके जवाबों से उनकी उलझन और विभाग की उदासीनता छुप नहीं पाई.

Ground Report : ज़रा सोचिए ! जिन्हें पीने का पानी नहीं नसीब, कैसे काटते होंगे ज़िंदगी ? 
Ground Report : ज़रा सोचिए ! जिन्हें पीने का पानी नहीं नसीब, कैसे काटते होंगे ज़िंदगी ? 

नल-जल योजना.... जिसका मकसद हर गांव के परिवार को साफ पीने का पानी उपलब्ध कराना है मगर नर्मदापुरम के कई आदिवासी गांवों में यह योजना केवल कागजों में ही सिमटकर रह गई है. ऐसा नहीं है कि अधिकारियों को इस बारे में पता नहीं है. लेकिन बावजूद इसके आदिवासियों के हालातों को किसी को सरोकार नहीं हैं. इसी को लेकर NDTV ने एक ग्राउंड रिपोर्ट की. इस खबर में हम आपको सतपुड़ा की गोद में बसे इन गांवों की वास्तविक स्थिति दिखाएंगे. विनोरा, मोहगांव, मटकुली, पिसुआ, बांदाखेड़ा, टेकापार और छर्रई - ये वो गांव हैं जो नर्मदापुरम जिला मुख्यालय से लगभग 120 किलोमीटर दूर स्थित हैं. यहां पहुंचते-पहुंचते नल-जल योजना का प्रभाव खत्म हो जाता है. कुछ स्थानों पर पाइप बिछाए गए हैं लेकिन पानी तो छोड़िए... उनमें से हवा भी नहीं निकलती.

विनौरा और मोहगांव के क्या है हालात ?

विनौरा गांव में लगभग 62 परिवार रहते हैं जो सभी आदिवासी हैं. इन्हें जंगल से विस्थापित कर यहां बसाया गया है. पूरे गांव के लिए एकमात्र हैंडपंप ही सहारा है. मोहगांव की बात करें तो यहां भी लगभग 40 घर हैं लेकिन यहां भी नल-जल योजना अब तक नहीं पहुंच पाई है.

आगे बढ़ने पर सतपुड़ा के जंगलों से सटे सबसे बड़े गांव मटकुली पहुंचे. यह एक बड़ी पंचायत है, जहां आसपास के आदिवासी खरीदारी करने आते हैं. मटकुली में लगभग डेढ़ करोड़ रुपये की लागत से नल-जल योजना शुरू की गई थी, लेकिन वास्तविकता यह है कि यहां केवल नल और टूटे-फूटे पाइप ही देखने को मिलते हैं. 

बांदाखेड़ और पिसुआ में गंदा पानी पीने को मजबूर

बांदाखेड़ा गांव की स्थिति भी दयनीय है. यहां पाइप तो डाले गए हैं लेकिन पानी कहीं नजर नहीं आता. पिसुआ गांव में पहुंचने पर हैंडपंप से पानी भरते ग्रामीणों ने बताया कि पानी लाल रंग का और स्वाद में खारा है. इसके बावजूद यह उनकी मजबूरी बन चुका है.

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टेकापार और छर्रई में बोरवेल का पता नहीं

हमारी टीम टेकापार गांव पहुंची, जो नर्मदापुरम और छिंदवाड़ा जिलों की सीमा पर स्थित है. यहां इतनी लापरवाही बरती गई कि बोरवेल में केसिंग तक नहीं डाली गई. इसके कारण मोटर बोरवेल में ही फंस गई. ग्रामीणों का आरोप है कि ठेकेदार ने पक्की सड़क को खोदकर पाइपलाइन बिछा दी लेकिन पानी तो नहीं मिला, उल्टा सड़क भी खराब हो गई.

छर्रई गांव के लिए लगभग एक किलोमीटर दूर ट्यूबवेल खोदा गया था लेकिन बिजली बिल बकाया होने के कारण बिजली विभाग ने लाइन काट दी. अब ग्रामीण नदी से पानी लाने को मजबूर हैं. 

अधिकारियों ने इसे लेकर क्या कहा ?

NDTV के रिपोर्टर संजय दूबे ने जब लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सब इंजीनयर आर. के. राजपूत से बात की तो उन्होंने दावा किया कि पिसुआ और बांदाखेड़ा में नल-जल योजना चालू है. हालांकि उनके जवाबों से उनकी उलझन और विभाग की उदासीनता छुप नहीं पाई.

❝ हम कुछ इलाकों में रोज पानी दे रहे हैं. दिक्कतें हैं... लेकिन हम उन्हें सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. ❞ - अधिकारी

गौरतलब है कि नर्मदापुरम जिले में कुल 858 नल-जल योजनाएं कागज़ों में मंज़ूर हैं. विभाग की मानें तो, 354 ग्रामीण इलाकों में ये योजनाएं पूरी हो चुकी हैं. पिपरिया विकासखंड में कुल 112 योजनाएं स्वीकृत हैं, जिनमें से सरकारी फाइलों में 44 को पूरा बताया गया है. लेकिन हकीकत तो ये है कि जब तक अधिकारी आंकड़ों से खेलते रहेंगे... ग्रामीण अपनी मूलभूत आवश्यकता जैसे साफ़ पानी के लिए जूझते रहेंगे.

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